कैनबरा । चीन (China) की पिपल्स रिपब्लिक ऑफ चायना ( People’s Republic of China) ना सिर्फ विश्व की सबसे बड़ी जलशक्ति (world’s largest water power) बन चुका है बल्कि वो लगातार न्यूक्लियर पनडुब्बी, एयरक्राफ्ट कैरियर, फाइटर जेट्स, लड़ाकू जहाज, न्यूक्लियर बैलिस्टिक मिसाइल्स, लार्ज कोस्ट गार्ड कटर्स और पोलर आइस ब्रेकर ( nuclear submarines, aircraft carriers, fighter jets, fighter ships, nuclear ballistic missiles, large coast guard cutters and polar ice breakers) का निर्माण कर रहा है। अमेरिकी रक्षामंत्रालय ने चीन की इस मिलिट्री शक्ति और प्लानिंग को लेकर दुनिया को चेतावनी जारी कर की है । इतना ही नहीं नाटो (NATO) ने चीन को दुनिया के लिए खतरा बताया है ।
जिसके बाद अब चीन को समंदर में पीछे धकेलने का अभियान शुरू हो चुका है और क्वाड के साथ यूरोपीय देश भी आए हैं। फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन भी चीन के खिलाफ (Britain, France Germany against China) एकसाथ आ गये हैं और इसी के साथ कहा जा सकता है कि आने वाले वक्त में चीन की मुसीबत बढ़ने वाली है और संभव है कि बहुत जल्द समंदर में लड़ाई भी शुरू हो जाए। चीन के खिलाफ ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी ने अपने वारशिप्स अमेरिका को मदद करने के लिए साउथ चायना सी में भेज दिए हैं।
गौरतलब है कि समूचे साउथ चायना सी पर चीन अपना अधिकार समझता है जबकि अमेरिका समेत विश्व के कई बड़े देश और साउथ चायना सी में आने वाले छोटे छोटे देश अंतर्राष्ट्रीय समुन्द्री कानून के तहत साउथ चायना सी में स्वतंत्र समुन्द्री कानून लागू करने के पक्ष में हैं, लिहाजा अब साउथ चायना सी में लड़ाई के हालात बनने लगे हैं। ऑस्ट्रेलियाई वेबसाइट न्यूज.कॉम.एयू में जेमी सीडल ने एक आर्टिकिल के जरिए कहा है कि ‘राजनीतिक प्रयासों के साथ साथ लड़ाई की सुगबुगाहट, अंतर्राष्ट्रीय फोरम एक साथ आ चुका है और चीन की आक्रामकता के खिलाफ यूरोपीय देशों ने प्रतिक्रिया देनी शुरू कर दी है’
इस संबंध में जापान इंटरनेशन सिक्योरिटी कॉमेंटेटर हिरोकी अकीता ने कहा है कि ‘इंडो-पैसिफिक रीजन के लिए ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के वारशिप्स रवाना हो चुके हैं, जिसकी वजह से इंडो-पैसिफिक में चीन की तरफ से प्रतिक्रिया दी जा सकती है, और नये टेंशन की शुरूआत हो सकती है लेकिन, इसका एक पॉजिटिव पक्ष ये है कि ताइवर स्ट्रेट और साउथ चायना सी में चीन की विस्तारवादी नीति को इससे नुकसान होगा’। उन्होंने कहा है कि ‘इस लड़ाई में यूरोपीय देशों के जुड़ने का मतलब ये है कि चीन के मिलिट्री एक्शन के खिलाफ बाड़ेबंदी शुरू हो चुकी है’। साउथ चायना सी में फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी के वारशिप्स उस वक्त भेजे गये हैं, जब चीन की नेवी विश्व की सबसे बड़ी नेवी बन चुकी है।
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