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वित्त मंत्री की पंचायत मंत्री को सलाह… फिजूलखर्ची रोकें, गड़बड़ी वाली व्यवस्था को फिर लागू नहीं करें

March 19, 2021

  • पंचायतों का ऑडिट 1.81 करोड़ से बढ़ाकर 26.05 करोड़ में कराने का मामला

भोपाल। प्रदेश सरकार एक ओर जहां कर्ज लेकर काम चला रही है। वहीं दूसरी ओर सरकार के मंत्री हैं कि आर्थिक संकट के दौर में भी फिजूलखर्ची से बाज नहीं आ रहे हैं। ताजा मामला पंचायत एवं ग्रामीण विकास का है। जहां विभाग के मंत्री महेन्द्र सिंह सिसौदिया ने प्र्रदेश में पंचायतों के ऑडिट निजी एजेंसियों से 25 से 30 गुऩा बढ़ाकर 26 से 40 करोड़ रुपए में कराने की मंजूरी दे दी है। जबकि पंचायतों के ऑडिट का यही काम पिछले साल 1.81 करोड़ में हुआ था। ऑडिट के लिए विभाग ने ई-टेंडर जारी किए हैं। जिस पर वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा ने आपत्ति की है। देवड़ा ने पत्र लिखकर पंचायत मंत्री महेंद्र सिंह सिसौदिया को सलाह दी है कि वे अनावश्यक खर्च से बचें। दरअसल, क्लस्टर वार मंथली फायनेंशियल ऑडिट की व्यवस्था प्रदेश में वर्ष 2015 से 2017 तक रही, लेकिन यह खर्चीली थी और इसमें गड़बडिय़ां मिली थीं। इसके बाद इसे बंद कर दिया गया था। ई-टेंडर की एक शर्त पर 17 सीए फर्मों ने भी पंचायत विभाग के एसीएस मनोज श्रीवास्तव को पत्र लिखकर आपत्तियां भेजी हैं। यह शर्त है कि 2015 से 2017 के बीच काम कर चुकीं सीए फर्म ही टेंडर में शामिल हो सकती हैं। बता दें कि यह टेंडर तीन माह पहले दिसंबर में भी जारी हुआ था, जिस पर वित्त मंत्री ने आपत्ति जताई थी। फिर इसे निरस्त कर दिया गया था, लेकिन 5 मार्च को फिर से टेंडर निकाला गया है। अब वित्त मंत्री ने फिर से आपत्ति जताई है। देवड़ा ने पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री को पत्र लिख कर सुझाव दिया है कि क्लस्टर वार ऑडिट व्यवस्था के मामले में सोच-समझ कर फैसला लें, जब कोई काम काफी कम राशि में बेहतर हो रहा है तो ज्यादा राशि खर्च वाली विवादित व्यवस्था को क्यों अपनाया जा रहा है।

जुलानिया ने पकड़ी थी गड़बड़ी
पंचायतों के ऑडिट कराने के नाम पर करोड़ों की गड़बड़ी हो रही थी। ऑडिट करने वाली सीए फर्म सिर्फ पंचायतों की सूची देती। तय बिंदुओं के आधार पर सीएम फर्मों ने आज तक पूरी रिपोर्ट नहीं दी। सीएम फर्म पंचायत संचालनालय के जरिए मिलीभगत से अपना भुगतान कराने में सफल हो जाते हैं। पिछले सालों में पंचायत ऑडिर्ट की जो रिपोर्ट सौंपी थी, उनकी जांच कर ली जाए तो बड़ा फर्जीवाड़ा उजागर हो सकता है। विभाग के तत्कालीन अपर मुख्य सचिव आरएस जुलानिया ने यह गड़बड़ी पकड़ी थी। ऑडिट व्यवस्था को तत्काल बंद कर दिया था। अब पंचायत मंत्री इस भ्रष्ट और खर्चीली व्यवस्था को फिर से लागू करने पर तुले हैं। सूत्रों ने बताया कि यह मामला मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के संज्ञान में भी पहुंच गया है।

जुलानिया ने खत्म की थी क्लस्टर वार व्यवस्था
क्लस्टरवार ऑडिट व्यवस्था पहली बार वर्ष 2015-16 में अपनाई गई थी। वर्ष 2016-17 में इसे जारी रखा गया। तब 22.48 करोड़ रुपए खर्च आया था। लेकिन, ऑडिट फर्मों ने वक्त पर रिपोर्ट पेश किए बिना सिर्फ पंचायतों की लिस्ट देकर करोड़ों रुपए का भुगतान पा लिया था। तब इसमें गड़बड़ी के आरोप लगे थे। कई फर्मों ने बिना शर्त पूरी किए और रिपोर्ट सौंपे ही मिलीभगत से भुगतान करा लिया था। इस गड़बड़ी के उजागर होने पर तत्कालीन एसीएस आरएस जुलानिया ने क्लस्टर वार व्यवस्था को खत्म कर 2017-18 से जिलावार ऑडिट व्यवस्था लागू कर दी थी। इससे खर्च घटकर सिर्फ 2.50 करोड़ रुपए पर आ गया।

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