यह जुलानिया मेडम कौन हैं
मप्र में जल संसाधन विभाग के एक बड़े ठेकेदार की पार्टनर के रूप में किसी जुलानिया मेडम का नाम जबर्दस्त सुर्खियों में आ गया है। भोपाल के मंत्रालय से लेकर नर्मदा भवन तक जुलानिया मेडम की तलाश शुरू हो गई है। दरअसल इस सप्ताह भाजपा के एक जिम्मेदार विधायक दिनेश राय मुनमुन ने विधानसभा में आरोप लगाया है कि जल संसाधन विभाग की पेंच परियोजना में हजारों करोड़ का भ्रष्टाचार करने वाले ठेकेदार की पार्टनर कोई जुलानिया मेडम हैं। विधायक की यह बात विधानसभा के पटल पर आ गई है। मीडिया ने भी इसे प्रमुखता से छापा है। यह संयोग है कि जल संसाधन विभाग में लंबे समय तक रहे एक आईएएस अधिकारी का सरनेम भी जुलानिया है। राज्य सरकार और केन्द्र सरकार की जांच एजेंसियां आजकल जल संसाधन विभाग के ठेकों को लेकर पड़ताल करने में लगी हैं। अब जांच के दायरे में जुलानिया मेडम भी आ गई हैं।
अफसर या माफिया !
मप्र में आजकल किसी को भी माफिया कहने का फैशन सा हो गया है। अभी तक विधानसभा में प्रदेश के अधिकारियों को माफिया नहीं बताया जाता था। लेकिन इस विधानसभा सत्र में कांग्रेस के एक दिग्गज विधायक ने प्रदेश के नौकरशाहों को माफिया कह डाला। दरअसल यह मामला गंभीर है। भोपाल-इंदौर एक्सप्रेस वे के निर्माण को लेकर आईएएस अधिकारी 3-4 हजार करोड़ का बजट बनाकर बैठे हैं। कांग्रेस विधायक सज्जनसिंह वर्मा का मानना है कि यह फिजूल खर्ची है। मात्र 300 करोड़ रुपए खर्च करके मौजूदा रोड़ को ही सिक्स लेन किया जा सकता है। सज्जन वर्मा ने सदन में आरोप लगाया कि प्रदेश के नौकरशाह माफिया की तरह काम कर रहे हैं। इन नौकरशाहों ने इंदौर-भोपाल के प्रस्तावित एक्सप्रेस वे के आसपास जमीनें खरीद ली हैं, इसलिए वे इस पर अड़े हुए हैं, जबकि एक्सप्रेस वे बनने से भोपाल-इंदौर के बीच मात्र 15 मिनट की बचत होगी। अब मीडिया तलाश रहा है कि प्रस्तावित एक्सप्रेस वे के आसपास पिछले 2-3 साल में जमीनों के सौदे किस-किस ने किये हैं।
मंत्री हैं पर काम नहीं
प्रदेश के अधिकांश राज्य मंत्री दुखी और परेशान हैं। दरअसल वे मंत्री तो हैं लेकिन उनके पास काम नहीं है। अधिकांश केबिनेट मंत्रियों ने अपने राज्य मंत्रियों के बीच काम का बंटवारा नहीं किया है। यही कारण है कि राज्य मंत्रियों के पास न तो कोई काम है और न ही कोई फाईलें पहुंच रही हैं। कुछ राज्य मंत्री भाजपा संगठन तो कुछ राज्य मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के दरबार में अपना दुखड़ा सुना चुके हैं। इसी तरह शिवराज सिंह चौहान के चौथे कार्यकाल को लगभग एक साल पूरा होने जा रहा है। लेकिन अभी तक जिलों में प्रभारी मंत्री न होने से भाजपा कार्यकर्ताओं में गुस्सा बढ़ता जा रहा है। दरअसल अधिकांश जिलों में प्रभारी मंत्री न होने से जिला प्रशासन अपनी इच्छा से काम कर रहा है अथवा कलेक्टर ने जिले के किसी एक भाजपा विधायक को पकड़ रखा है। प्रभारी मंत्री न होने से जिलों में विकास कार्यों की ढंग से समीक्षा भी नहीं हो पा रही है।
निशाने पर वरिष्ठ आईएएस
मप्र के एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी कई लोगों के निशाने पर हैं। इस अधिकारी के खिलाफ लोकायुक्त संगठन में कथित भ्रष्टाचार को लेकर दो एफआईआर दर्ज थीं। अधिकारी ने अपने प्रभाव का उपयोग कर दोनों एफआईआर से अपना नाम हटवा लिया है। इसके बाद अधिकारी कई लोगों के निशाने पर आ गए हैं। एक एफआईआर वरिष्ठ पत्रकार ने कराई थी। पत्रकार को जैसे ही पता चला कि एफआईआर से अधिकारी का नाम हटा दिया गया है तो वह आजकल आग बबूला घूम रहा है। पत्रकार ने लोकायुक्त की इस कार्रवाई के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की तैयारी शुरू कर दी है। फिलहाल यह मामला रोचक होता जा रहा है।
मीडिया से दुखी वीडी शर्मा
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा मीडिया के कुछ ऐसे पत्रकारों से दुखी हैं जो बिना सिर पैर की खबरें बनाकर उन्हें बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं। दरअसल व्यापम की कृषि विस्तार अधिकारी परीक्षा में हुई अनियमितताओं का ठीकरा शर्मा पर फोडऩे की असफल कोशिश की जा रही थी। इस परीक्षा में सफल विद्यार्थियों के फोटो शर्मा के साथ छापकर यह बताने की कोशिश हो रही थी कि गड़बड़ी शर्मा के इशारे पर हुई है। इसी बीच भाजपा मीडिया प्रभारी ने इन्हीं छात्रों की फोटो कांग्रेस के पूर्व मंत्री के साथ जारी कर शर्मा के खिलाफ चल रही मुहिम की हवा निकाल दी। वीडी शर्मा का कहना है कि व्यापमं की इस परीक्षा से उनका दूर-दूर का वास्ता नहीं है। मीडिया को खबर छापने से पहले छानबीन तो करना चाहिए।
क्यों झुके अरूण यादव?
गोड़सेवादी विचारधारा के पूर्व पार्षद को कांग्रेस की सदस्यता देने के मुद्दे पर पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरूण यादव ने कमलनाथ के खिलाफ आरपार की लड़ाई लडऩे की तैयारी की थी। लेकिन अचानक अरूण यादव को अपने पांव पीछे खींचने पड़े। अरूण यादव ने स्वयं पहल कर इस मामले में कमलनाथ को सफाई दी। फिलहाल यह मामला पूरी तरह टॉय-टॉय फिस्स हो गया है। दरअसल गोडसे की विचारधारा तो बहाना थी, असली हमला कमलनाथ पर करना था। लेकिन इसी बीच अचानक खंडवा से भाजपा सांसद नंदकुमार सिंह चौहान के निधन के कारण खंडवा सीट खाली हो गई है। अरूण यादव इस सीट से चुनाव लडऩा चाहते हैं। वे जानते हैं कि कमलनाथ को नाराज करके टिकट मिलना मुश्किल है तो उन्होंने तत्काल अपनी रणनीति बदली और कमलनाथ से समझौता करने में ही भलाई समझी है।
और अंत में…
कमलनाथ सरकार के आने के पहले तक शिवराज सिंह चौहान के बेहद करीबी रहे एक आईएएस अधिकारी आजकल न केवल लूप लाईन चल रहे हैं बल्कि खबर है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उनसे बेहद नाराज हैं। दरअसल प्रदेश में कमलनाथ सरकार आने के बाद इस अधिकारी ने गिरगिट की तरह न केवल रंग बदला बल्कि कमलनाथ सरकार में जमकर मलाई कूटी थीं। आजकल यह अधिकारी फिर से मुख्यमंत्री के नजदीक पहुंचने के लिए एक पत्रकार को सीढ़ी बनाने की कोशिश कर रहे हैं। अधिकारी दफ्तर में कम और पत्रकार के घर ज्यादा नजर आते हैं। लेकिन लगता नहीं है कि मुख्यमंत्री आसानी से इस अधिकारी को नजदीक आने देंगे।
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