शनिश्चरी अमावस्या कल यानी कि 13 मार्च शनिवार को है। हिंदू धर्म में शनिश्चरी अमावस्या की विशेष महिमा है। शनिश्चरी अमावस्या के दिन शनि देव की पूजा करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं। इस दिन पितरों की भी पूजा की जाती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शनिश्चरी अमावस्या के दिन शनि देव की पूजा करने और कुछ विशेष उपाय करने से कुण्डली में शनि दोष और शनि की साढ़े-साती या ढैय्या की चाल से बचा जा सकता है। जिन जातकों की कुण्डली में शनि की साढ़े-साती या ढैय्या होती हैं उन्हें जीवन में कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है और काम में भी कई बाधाएं आती हैं। आइए जानते कुछ कि शनिश्चरी अमावस्या पर किन कामों को करने से शनि की साढ़े-साती या या ढैय्या की चाल से छुटकारा मिल सकता है।
शनिश्चरी अमावस्या पर साढ़े-साती से बचने के लिए करें ये काम
1. शनि अमावस्या के दिन शाम के समय ‘ऊं शं शनैश्चराय नम:’ मंत्र का मन ही मन जाप करें और सरसों के तेल के दिए जलाएं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ऐसा करने से शनि दोष दूर होता है।
2. ज्योतिषियों के अनुसार, अगर आपकी कुंडली में शनि दोष की वजह से बाधा आ रही है तो आप शमी का पेड़ लगाइए। मान्यताओं के अनुसार, पेड़ के पास सरसों के तेल का दिया जलाएं और शनि देव के मंत्र – ऊँ शं यो देवि रमिष्ट्य आपो भवन्तु पीतये, शं योरभि स्तवन्तु नः’ का जाप करें।
3. यदि जातक की कुण्डली में शनि की साढे-साती या ढैय्या की चाल की वजह से जीवन में परेशानियां आ रही हैं तो जातक को शनि स्रोत पढ़ना चाहिए। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शनिश्चरी अमावस्या के दिन शनि यंत्र धारण करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
शनि स्त्रोत:
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम:।।
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते।।
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च।।
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते।।
तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।
देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:।।
प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल:।।
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