प्रदेशों के आयोगों का आंकड़ा सात तक नहीं पहुंचा
नई दिल्ली। केंद्र सरकार (Central Government), सभी प्रदेशों को ग्रांट एवं दूसरी आर्थिक मदद देती रहती है। प्रदेशों के लिए विभिन्न मदों के तहत जो राशि स्वीकृत की जाती है, उसमें केंद्रीय वित्तीय आयोग ( Central Financial Commission) द्वारा की गई सिफारिशें बहुत अहम होती हैं। राज्य सरकारें एक मामले में बड़ी चूक कर रही हैं। इस चूक के कारण उनके खजाने (Treasury) पर संकट आ सकता है।
राज्यों को मिलने वाली कई तरह की आर्थिक सहायता या ग्रांट पर कैंची चलने के आसार बन रहे हैं। वित्तीय आयोग के गठन को लेकर अधिकांश प्रदेश बुरी तरह पिछड़ रहे हैं। सरकार 15वें वित्तीय आयोग का गठन कर चुकी है, जबकि 25 से ज्यादा राज्य ऐसे हैं जो अभी तक पांचवें या छठे वित्तीय आयोग तक ही पहुंच सके हैं। असम (Assam), बिहार, पंजाब और राजस्थान में ही छठे वित्तीय आयोग गठित किया गया है। बाकी राज्यों में अभी तक दूसरा, तीसरा या चौथा आयोग ही गठित हो पाया है। पूर्ववर्ती जम्मू और कश्मीर एवं तेलंगाना (Telangana) में केवल एक ही वित्तीय आयोग का गठन हो सका है। केंद्र के 15वें वित्तीय आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्तीय आयोग के गठन में विफल रहने वाले राज्यों में स्थानीय निकायों व दूसरी मदों के लिए अनुदान की अनुशंसा न करें। जिस तरह से केंद्र सरकार वित्तीय आयोग गठित करती है, वैसे ही हर पांच साल बाद राज्यों में वित्तीय आयोग गठित करने का प्रावधान है।
बता दें कि संविधान के अनुच्छेद 243-1(1) से लेकर 243-1(4) के अनुसार, जिस तरह से केंद्र सरकार (Central Government) वित्तीय आयोग गठित करती है, वैसे ही हर पांच साल बाद राज्यों में वित्तीय आयोग गठित करने का प्रावधान है। वित्तीय आयोग ही यह सिफारिश करता है कि राज्यों की संचित निधि का वर्धन कैसे किया जाए। राज्य अपने वित्तीय आयोग की अनुशंसा से स्थानीय निकायों एवं दूसरी मदों के लिए आर्थिक मदद मुहैया करा सकता है।
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