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    Uttarakhand : तीरथ सिंह रावत की ताजपोशी से पार्टी को संतुलन की आस

  • March 10, 2021

    देहरादून । विधानसभा चुनाव (Assembly elections) की दहलीज पर खड़ी भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने नए सीएम (Chief Minister) के चयन में संघ पृष्ठभूमि को ही सर्वोच्च प्राथमिकता दी। मनोनीत मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत (Tirath Singh Rawat) के पक्ष में उनकी बेदाग छवि, सादगी और सभी के साथ अच्छे संबंध के अलावा पार्टी संगठन और उत्तराखंड के मिजाज की गहरी समझ जैसे कई कारण रहे। भले ही उनका करिश्माई व्यक्तित्व नहीं रहा है, लेकिन भाजपा-संघ के लिए उनकी स्थिति 100 कैरेट सोने जैसी रही है, जिसने राजी-नाराजगी होने के बावजूद कभी अपनी विचारधारा से दूर होने की सोची ही नहीं।

    प्रचंड बहुमत की कमान संभालने के लिए एक बार फिर भाजपा हाईकमान ने अपने भरोसेमंद कार्यकर्ता पर ही भरोसा जताया। तीरथ सिंह रावत ऊपरी तौर पर सीएम की रेस में कहीं नहीं दिख रहे थे, लेकिन उनकी मजबूत दावेदारी बेहद खामोशी से पार्टी हाईकमान को दिख रही थी। 2017 में प्रचंड बहुमत मिलने के बाद तमाम दिग्गजों की दावेदारी को दरकिनार करते हुए पार्टी ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को चुना था तो संघ के स्वयंसेवक की उनकी पहचान सबसे प्रभावी साबित हुई थी। इस बार तीरथ सिंह रावत के साथ भी यही बात हुई। अन्यथा, सतपाल महाराज, डाॅ. हरक सिंह रावत जैसे कई नेता पार्टी में मौजूद हैं, जिनका प्रोफाइल तीरथ-त्रिवेंद्र के मुकाबले ज्यादा बड़ा रहा है।

    भाजपा के भीतर की मौजूदा परिस्थिति में तीरथ (Tirath) पर पार्टी हाईकमान यह भरोसा जता रहा है कि वह असंतुष्टों को भी मना लेंगे। फिर कैबिनेट मंत्री डाॅ हरक सिंह रावत जैसे नेता भी क्यों न हो, जिनके साथ तीरथ (Tirath) के रिश्ते कभी अच्छे नहीं रहे हैं और दोनों के बीच चुनावी भिड़ंत भी हो चुकी है। कार्यवाहक मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत (Trivendra Singh Rawat) के स्तर पर भले ही डाॅ. धन सिंह रावत (Dr. Dhan Singh Rawat) का नाम सीएम के लिए आगे बढ़ाया गया, लेकिन तीरथ को भी उनकी पसंद बताया जा रहा है। भाजपा (BJP) के प्रदेश अध्यक्ष रहने से पहले तीरथ (Tirath) अस्सी के दशक में संघ के प्रचारक रह चुके हैं। इस नाते उत्तराखंड में जगह-जगह संगठन की नब्ज को वह जानते हैं। उत्तराखंड राज्य निर्माण के बाद अंतरिम सरकार में शिक्षा मंत्रालय तीरथ संभाल चुके हैं। ऐसे में सरकार का हिस्सा होकर काम करने का भी उनका अनुभव है।

    तीरथ (Tirath) जैसे नेता को पार्टी हाईकमान यदि पसंद करता है तो उसकी बड़ी वजह भाजपा-संघ के साथ उनके अटूट संबंध को माना जा सकता है। कई बार तीरथ पार्टी के फैसले से मायूस भी हुए, लेकिन संगठन की लक्ष्मण रेखा को कभी नहीं लांघा। ज्यादा पुरानी बात नहीं है। वर्ष 2017 विधानसभा चुनाव के दौरान सिंटिंग एमएलए रहते हुए भी चैबट्टाखाल सीट पर भाजपा ने उनका टिकट काटकर सतपाल महाराज को दे दिया था। तीरथ ने पार्टी के निर्णय को स्वीकार किया। यह अलग बात है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने गढ़वाल सीट पर उन्हें उम्मीदवार घोषित करके दिल्ली पहुंचा दिया।

    तीरथ-धन सिंह की जोड़ी के रहे जलवे
    तीरथ सिंह रावत (Tirath Singh Rawat) भाजपा में आने से पहले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रमुख पदाधिकारी रहे हैं। उन्हें राष्ट्रीय सचिव तक बनाया गया था। विद्यार्थी परिषद के जमाने से कैबिनेट मंत्री डाॅ. धन सिंह रावत के साथ उनकी जोड़ी मशहूर रही है। गढ़वाल विश्वविद्यालय के मुख्यालय क्षेत्र में दोनों ने जमकर छात्र राजनीति की। इस दौरान एक छोटे से कमरे में दोनों साथ-साथ लंबे समय तक रहे। तीरथ सिंह रावत (Tirath Singh Rawat) के सीएम बनने के बाद एक बार फिर दोनों की जोड़ी के साथ-साथ काम करने की स्थिति बनेगी।

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