भोपाल । इस साल महाशिवरात्रि का पर्व 11 मार्च को मनाया जाएगा। इस दिन हरिद्वार में कुम्भ का शाही स्नान होगा और एक अप्रैल से महाकुंभ की शुरुआत होगी। आमतौर पर हर 12 साल के बाद महाकुंभ होता है लेकिन इस बार बृहस्पति की आकाशीय स्थिति के कारण 11 साल बाद ही महाकुम्भ का आयोजन होने जा रहा है।
भोपाल की राष्ट्रीय अवार्ड प्राप्त विज्ञान प्रसारक सारिका घारू ने हिन्दुस्थान समाचार से मंगलवार को बताया कि जुपिटर (बृहस्पति) को सूर्य की एक परिक्रमा करने में 11.86 साल लगते हैं। इस तरह हर 12 साल में 47 दिन का अंतर आ जाता है। सातवें और आठवें कुम्भ के बीच यह अंतर बढ़ते-बढ़ते लगभग एक साल हो जाता है। ऐसे में हर आठवां कुम्भ 11 वर्ष बाद ही हो जाता है।
सारिका ने कुम्भ के समय निर्धारण की गणनाविधि समझाने के लिए एक नदी के किनारे गृहों और राशियों की एक घड़ी लगाई, जिसमें उन्होंने घंटे के कांटे पर जुपिटर तो मिनट के कांटे पर सूर्य को परिक्रमा करते दिखाया। कुम्भ की इस घड़ी के चलित मॉडल की मदद से सारिका ने समझाया कि आमतौर पर हर 12 साल बाद किसी एक स्थान पर होने वाले कुम्भ का निर्धारण आकाश में दिखने वाले बृहस्पति (जुपिटर) और सूर्य की स्थिति के आधार पर तय होता है। जिस प्रकार किसी घड़ी में घंटे एवं मिनट के दो कांटे समय तय करते हैं, इसके 12 घंटे बाद कांटे अपनी पहली अवस्था में आ जाते हैं। इसी प्रकार लगभग हर 12 साल बाद जुपिटर और हर 12 माह बाद सूर्य आकाश में अपने पहले स्थान पर आ जाता है। इनके 12 साल बाद लौटकर अपने स्थान पर आने पर हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक के कुम्भ को तय किया गया था।
हरिद्वार का कुम्भ तब होता है जब आकाश में बृहस्पति कुम्भ तारामंडल में और सूर्य मेश तारामंडल के सामने आते दिखते हैं। इस बार जुपिटर 11वें साल में ही कुम्भ तारामंडल के पास पहुंच रहा है और अप्रैल माह में सूर्य मेष तारामंडल में रहेगा, इसलियेे हरिद्वार में कुंभ का आयोजन 2010 में होने के बाद 11वें वर्ष में ही एक साल पहले होने जा रहा हैं। उन्होंने बताया कि इसके पहले 1927 में कुम्भ होने के बाद अगला कुम्भ 12 साल बाद यानी 1939 में होना था लेकिन वह 11वें साल 1938 में ही हो गया था।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved