वॉशिंगटन। Asia में चीन की बढ़ती दादागिरी को मात देने के लिए अमेरिका अब सटीक मार करने वाली मिसाइलों का जाल बिछाने जा रहा है। इसके लिए अमेरिकी सेना अगले छह साल में 27.4 बिलियन डॉलर (27.4 billion dollars) की राशि खर्च कर इंडो पैसिफिक थिएटर कमांड (Indo-Pacific Theater command )को स्थापित करेगा। पैसिफिक डिटरेंस इनिशिएटिव (Pacific Deterrence Initiative) के तहत बनने वाले इस थिएटर कमांड को लेकर यूएस इंडो पैसिफिक कमांड ने एक विस्तृत प्रपोजल अमेरिकी कांग्रेस को सौंपा है। जिसे अगर मंजूरी मिल जाती है तो अमेरिकी सेना चीन को उसके ही इलाके में घेरने के लिए मिसाइलों की एक लंबी चेन स्थापित करेगी। इसमें कई ऐसे देश भी शामिल हो सकते हैं, जहां अमेरिकी सेना पहले से मौजूद है। बताया जा रहा है कि इन देशों के अलावा प्रशांत महासागर में स्थित अमेरिका का गुआम नेवल बेस भी चीन को घेरने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
जापानी मीडिया निक्केई एशिया ने अपनी रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी सेना के दस्तावेजों में बताया गया है कि संयुक्त राज्य के भविष्य के लिए सबसे बड़ा खतरा पारंपरिक रुकावटों का बढ़ना है। एक वैध और सुरक्षित रक्षा क्षमता के बिना चीन इस इलाके में अमेरिकी हितों के खिलाफ दबाव बना सकता है। इंडो-पैसिफिक का सैन्य संतुलन अधिक प्रतिकूल होने के कारण अमेरिका को इसका अतिरिक्त जोखिम उठाना पड़ सकता है। ऐसे में अमेरिका के दुश्मन एकतरफा तरीके से यथास्थिति को बदलने का प्रयास कर सकते हैं। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि भविष्य के जोखिमों को देखते हुए अमेरिकी कांग्रेस सेना के लिए इस बजट को मंजूरी दे दे। जिसके तहत अगले 6 सालों में अमेरिकी सेना अपनी रक्षात्मक और आक्रामक तैयारियों को और ज्यादा तेज करेगी।
इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अमेरिका के दुश्मनों को काउंटर करने के लिए फर्स्ट आईलैंड चेन के रूप में अंतरराष्ट्रीय डेटलाइन के पश्चिम में मिसाइलों के सटीक-स्ट्राइक नेटवर्क के साथ एक इंट्रीग्रेटेड ज्वाइंट फोर्स की स्थापना की जाएगी। जिसमें एयर मिसाइल डिफेंस सिस्टम को सेना की छोटी छोटी टुकड़ियों के साथ सेकेंड आईलैंड चेन के रूप में बनाया जाएगा। फर्स्ट आईलैंड चेन में ताइवान, ओकिनावा और फिलीपींस सहित कई ऐसे द्वीप समूह भी शामिल हैं, जिन्हें चीन पहली रक्षा पंक्ति के रूप में देखता है। इस क्षेत्र में चीनी सेना अपनी एंटी एक्सेस और एरिया डिनाएल पॉलिसी के तहत अमेरिकी सेना को साउथ चाइना सी में अक्सर परेशान करती रहती है। अमेरिकी सेना के जंगी जहाज और टोही विमान जब भी इस क्षेत्र में घुसने की कोशिश करते हैं तो चीनी सेना उसे अपनी सीमा में बताकर खदेड़ने की कोशिश करती है।
अमेरिकी सेना की सेकेंड आइलैंड चेन में प्रशांत महासागर के पश्चिम में दक्षिण-पूर्वी जापान से गुआम और दक्षिण में इंडोनेशिया तक फैला हुआ है। इन जगहों पर स्थिति अमेरिकी एंटी डिफेंस सिस्टम और सेना की छोटी छोटी टुकड़ियां चीनी हरकतों का जवाब देने के लिए सेकेंड स्ट्राइक कैपिबिलिटी की भूमिका निभाएंगी। जिसे लेकर इंडो-पैसिफिक कमांड ने इसी महीने कांग्रेस को 2022 से 2027 तक के लिए एक निवेश योजना प्रस्तुत की है। साल 2022 के लिए के लिए इस प्रस्ताव में 4.7 बिलियन डॉलर की ग्रांट मंजूर करने की सिफारिश की गई है। जो वर्तमान साल यानी 2021 में में इस क्षेत्र के लिए मंजूर किए गए 2.2 बिलियन डॉलर के बजट का लगभग दोगुना है। अमेरिका रूस से निपटने के लिए हर साल 5 बिलियन डॉलर की राशि खर्च करता है, अब उसे चीन से भिड़ने के लिए भी लगभग इतना ही धन खर्च करना होगा।
वाशिंगटन स्थित थिंक टैंक अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट में एक भाषण में, यूएस इंडो-पैसिफिक कमांड के कमांडर एडवर्ड फिलिप डेविडसन ने कहा कि हम अगले 6 साल को लेकर चिंतित हैं। हमें डर है कि इस दौरान चीन यथास्थिति को बदलने का प्रयास कर सकता है, जैसा कि हम ताइवान में देख रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह सामान्य रूप से समझने वाली बात है कि आज से लेकर 2026 के बीच क्षेत्र में यथास्थिति को व्यापक रूप से जबरन बदलने के लिए चुन सकता है। मैं तो यह कहूंगा कि उस स्थिति में परिवर्तन स्थायी हो सकता है। ऐसे में अमेरिका के लिए इस पूरे इलाके में रणनीतिक गणित बदल सकती है।
दस्तावेज के अनुसार, इस योजना को चीन के हालिया रक्षा कार्यक्रमों को देखकर तैयार किया गया है। इस रिपोर्ट में अमेरिकी सेना ने आवश्यकताओं के अनुसार संभावित ऐक्शन लेने के लिए अपनी तैयारियों को पहले से ही पूरा करने पर जोर दिया है। इस दस्तावेज में बताया गया है कि हमें अपनी तैयारी इस स्तर की करनी है कि किसी भी संभावित दुश्मन के हमले के समय हमारी सेना उसे विफल करने के लिए तैयार हो। इस प्रस्ताव में उन देशों के साथ भी विचार विमर्श किया जाएगा, जो इस कार्यक्रम में शामिल हैं। दक्षिण कोरिया पहले ही अमेरिकी सेना को मिसाइल को तैनात करने से रोक चुका है। उधर जापान ने भी पिछले साल अमेरिका को अपने देश में मिसाइलों को तैनात नहीं करने दिया था। ऐसे में अमेरिका के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने दोस्तों को मनाने की है।
इंटरमीडिएट रेंज न्यूक्लियर फोर्सेज ट्रीटी का सदस्य होने के कारण अमेरिकी मिसाइल क्षमता को काफी नुकसान पहुंचा है। इंटरमीडिएट रेंज मिसाइलों के मामले में चीन की ताकत ज्यादा है। चीन के पास जमीन से हमला करने वाली 1250 मध्यम दूरी की मिसाइले हैं। जबकि, इस क्षेत्र में अमेरिका के पास ऐसी क्षमता लगभग ना के बराबर है। इंटरमीडिएट-रेंज न्यूक्लियर फोर्सेस संधि के कारण अमेरिका ने जमीन से लॉन्च होकर 500 किमी और 5500 किमी के बीच मार करने वाली मिसाइलों के विकास रोक दिया था। अब यह समझौता 2019 में समाप्त हो गया है, जिसके बाद अमेरिकी सेना फिर से मिसाइलों के अपने कार्यक्रम को शुरू करने जा रही है।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved