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ये पॉलिटिक्स है प्यारे

March 01, 2021

कहीं ये 2023 के विधानसभा की तैयारी तो नहीं
राऊ विधानसभा ( Rau Vidhan Sabha) का कांग्रेस ( Congress) के पास ही रह जाना भाजपा ( BJP)  नेताओं को अभी भी खल रहा है। कुछ कह रहे हैं कि मधु वर्मा को पर्याप्त समय नहीं मिला, नहीं तो हमारा एक और विधायक आ जाता। हालांकि मधु ने अभी भी राऊ सीट नहीं छोड़ी है और हर छोटे-बड़े आयोजन में वे आ-जा रहे हैं, लेकिन जीतू भी कम नहीं हैं। उनकी सक्रियता भी आने वाले दिनों में यहां से दावेदारी के संकेत दे रही है। अब दोनों नेताओं के बीच अधिकारों की जंग शुरू हो गई है, जिसका परिणाम पिछले दिनों नए पदाधिकारियों की नियुक्ति के रूप में देखने को मिला। जिराती ने मधु वर्मा (Madhu Verma) के लोगों का न केवल विरोध किया, बल्कि यह भी बता दिया कि भले ही वे भोपाल चले गए हैं, लेकिन अभी भी राऊ में उनका अधिकार है। माना जा रहा है कि दोनों ही मिशन 2023 के लिए कमर कसकर तैयार बैठे हैं।
न ताई और न भाई, अधूरा रह गया मंच
ताई समर्थक सुधीर देडग़े (Sudhir Dedge) ने दो नंबर में सुभाष नगर के प्राचीन शिव मंदिर में देवी अहिल्या प्रतिमा (Devi Ahilya Statue) लगाने के बहाने अपना मंच जमाया, लेकिन मंच अधूरा रह गया। कल प्रतिमा का अनावरण अण्णा महाराज द्वारा करवाया गया। कार्यक्रम में ताई समर्थक ही मंच पर नजर आए, जिनमें एक पूर्व पार्षद भी थीं। दावा किया गया था कि दो नंबरी भाजपा नेता और जनप्रतिनिधि कार्यक्रम में शामिल होंगे, लेकिन पितृ पर्वत के कार्यक्रम के कारण एक भी इसमें शामिल नहीं हुआ। ताई भी नहीं आईं। हालांकि इस कार्यक्रम के पीछे इसी क्षेत्र में रहने वाले महाराष्ट्रीयन नेताओं ने अपनी दावेदारी जताने में भी कसर नहीं छोड़ी।
दादा के पीछे लगे कांग्रेसी
कांग्रेस के दादा, यानी राजेश चौकसे (Rajesh Chowkse)। दादा को पिछले दिनों नगरीय निकाय चुनाव के लिए बनाई गई कमेटी में सदस्य बनाया गया था, लेकिन कुछ कांग्रेसियों को ये हजम नहीं हुआ। दो नंबर में पहले मोहन सेंगर आगे रहते थे, वो अब भाजपा में चले गए, लेकिन उनकी जगह भरने के लिए चौकसे को आगे लाया गया। इसको लेकर कुछ कांग्रेसियों ने ऊपर तक शिकायत कर दी कि चौकसे को कमेटी में नहीं लिया जाना था। हालांकि दादा का तो कुछ नहीं बिगड़ा, लेकिन कांग्रेस में चल रही गुटबाजी और सामने आ गई।
दो नंबर में नहीं जाना चाहता कोई
भाजपा के नगर संगठन और दो नंबरियों में जिस तरह का अबोला चल रहा है, उससे वहां निगम चुनाव का प्रभारी बनने को कोई तैयार नहीं हुआ। आखिर में तय हुआ कि हरप्रीत बक्षी को वहां भेजा जाए और अब बक्षी को प्रभारी बनाकर भेज दिया गया है। अब बक्षी वहां क्या कर पाएंगे यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन दो नंबर की राजनीति में पत्ता खडक़ता भी है तो किसके इशारे पर, ये सब जानते हैं और बक्षी को ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। उन्हें तो बस जी दादा कहकर ही काम चलाना है।
जिराती का बैठक में आना हजम नहीं हुआ
पिछले दिनों हुई क्राइसिस मैनेजमेंट समिति की बैठक में पहली बार एक नया चेहरा भी दिखाई दिया, वो था पूर्व विधायक जीतू जिराती का। जिराती किस हैसियत से बैठक में शामिल हुए, इस पर वहां मौजूद लोग भी चौंके। हालांकि पूछने की हैसियत किसी की भी नहीं हुई। वहीं कांग्रेस का एक भी जनप्रतिनिधि और शहर या जिलाध्यक्ष बैठक में नहीं पहुंचा। इनको लेकर आश्चर्य इसलिए भी नहीं हुआ कि पहले से ही कांग्रेसियों ने बैठक से दूरी बनाकर रख रखी है और कोरोना को लेकर शहर के बारे में लिए जाने वाले फैसलों को वे दूर से ही मान रहे हैं।
भाजपा में महापौर प्रत्याशी के लिए जिस तरह से हर दिन नए-नए नियम और शर्तें आ रही हैं, उसने उन नेताओं की चिंता बढ़ा दी है,जो सबसे पहले दावेदारों की सूची में शामिल थे। टिकट तय करने वाले नेताओं के लगातार जो बयान सामने आ रहे हैं, उससे लग रहा है कि इंदौर में संगठन, संघ और शिवराज की पसंद ही चलने वाली है और इसके लिए कोई चौंकाने वाला नाम सामने आने वाला है।
-संजीव मालवीय

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