दोहा। कतर अपने देश के श्रमिक कानूनों में फिर से बड़ा बदलाव करने जा रहा है। कतर की शूरा काउंसिल ने सरकार को लेबर लॉ में बड़े पैमाने पर बदलाव करने की सिफारिशें सौंपी हैं। अगर इन्हें लागू कर दिया जाता है तो दुनियाभर के करीब 26 लाख श्रमिकों की मुश्किलें बढ़ जाएंगी। प्राकृतिक गैस के सबसे बड़े निर्यातक कतर में करीब 10 लाख भारतीय कामगार रहते हैं। पिछले साल ही कतर ने श्रमिक कानूनों में सुधार किया था, लेकिन अगर शूरा काउंसिल की सिफारिशें मान ली जाती हैं तो पिछले सुधार अपनेआप रद्द हो जाएंगे।
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, कतर की शूरा काउंसिल ने अपनी सिफारिशों में कहा है कि प्रवासी मजदूरों को तीन बार ही कंपनी बदलने की अनुमति दी जानी चाहिए। पिछले साल लागू किए गए सुधारों में इसकी संख्या निश्चित नहीं थी। यह भी कहा गया है कि एक साल में किसी एक कंपनी के 15 फीसदी से ज्यादा कर्मचारी अपनी नौकरी को बदल नहीं सकते हैं।
कतर में शूरा काउंसिल एक सलाहकार परिषद है। जो अलग-अलग मामलों में सरकार को अपना सुझाव देती है। इसके प्रमुख कतर के श्रम मंत्री यूसुफ बिन मोहम्मद अल-ओथमैन फखरो हैं। पिछले साल जब कतर ने अपने श्रम कानूनों में ढील दी थी तो वहां की कई बड़ी कंपनियों ने इसका विरोध जताया था। जिसके बाद इन बदलावों की सिफारिश की गई है।
भारत से हर साल बड़ी संख्या में लोग कतर में नौकरी के लिए जाते हैं। जब कतर ने अपने श्रमिक कानूनों में ढील दी थी तब इसका सबसे बड़ा फायदा भारतीय कामगारों को मिला था। अब अगर नया कानून अमल में आ जाता है तो इन कामगारों की चिंता बढ़ जाएगी। माना जा रहा है कि अब कतर आने वाले कामगारों को कम से कम 2 साल एक कंपनी में काम करना ही होगा।
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