भोपाल। मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी उज्जवला योजना पर महंगाईकी मार पडऩे लगी है। रसोई गैस के लगातार बढ़ते दाम और घटती एवं बंद होती सब्सिडी की वजह से ग्रामीण क्षेत्र में उज्जवला योजना के हितग्राही अब रिफलिंग कराने से तौबा करने लगे हैं। महंगाई की मार झेल रहे गरीब परिवार अब अब सिलेंडर हटाकर चूल्हा जलाने लगे हैं। लॉकडाउन और कोरोना की वजह से आर्थिक संकट का सामना कर रहे गरीब परिवारों को रिफलिंग में भारी परेशानी हो रही है। उज्जवला योजना के तहत प्रदेश में करीब 40 लाख से ज्यादा हितग्राही है। कई जिलों में आधी से ज्यादा हितग्राही रिफलिंग से दूर हैं। अकेले टीकमगढ़ जिले का आंकड़ा बेहद चौकाने वाला है। यहां उज्जवला योजना के 1.48 लाख हितग्राही थे। एक आंकड़े के अनुसार टीकमगढ़ में 85 फीसदी लोग उज्जवला के सिलेंडर रिफलिंग नहीं करा रहे हैं। रसोई गैस महंगी होने एवं सब्सिडी बंद होने की वजह से 15 फीसदी हितग्राही ही रिफलिंग कराने की स्थिति में हैं। ये ऐसे हितग्राही हैं जो शहरी गरीबों की श्रेणी में आते हैं। गांवों में गरीब अब चूल्हे पर रोटी बनाने को मजबूर हैं। इसके लिए पहले की तरह बाकायदा लकड़ी एवं गोबर के कंडों को जलाया जा रहा है। सरकार का सपना था कि गरीबों को चूल्हे के धुएं से मुक्त करने का, लेकिन महंगाई ने उन्हें फिर से धुएं में धकेल दिया है।
सब्सिडी घटाई, बंद की
लॉकडाउन के दौरान सरकार ने गैस की सब्सिडी कम कर दी। रसाई गैस के दाम लगातार बढ़ रहे हैं, लेकिन हितग्राहियों के खातों में 50-60 रुपए की सब्सिडी आ रही है। सिलेंडर महंगा होने की वजह से हितग्राही रिफलिंग नहीं कर रहे हैं। यह आंकड़ा सरकार के लिए परेशानी बढ़ाने वाला है।
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