– रंजना मिश्रा
दुनिया में हर चार में से एक व्यक्ति को ब्रेन स्ट्रोक का खतरा रहता है, यानी हर चौथा व्यक्ति ब्रेन स्ट्रोक के खतरे के दायरे में है। ब्रेन स्ट्रोक यानी ब्रेन अटैक के शिकार होने वाले 20% लोग 40 वर्ष से कम उम्र के होते हैं। दुनिया में ब्रेन स्ट्रोक मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण है। मौत का पहला सबसे बड़ा कारण दिल की बीमारी है। भारत में हर वर्ष 18 हजार लोग ब्रेन स्ट्रोक का शिकार हो जाते हैं।
स्ट्रोक का मतलब है लकवा मारना, इसे पक्षाघात भी कहते हैं। स्ट्रोक तब होता है जब मस्तिष्क की कोई नस फट जाती है और खून बह जाता है या खून का थक्का जम जाता है या जब मस्तिष्क तक रक्त पहुंचने में रुकावट होती है, इस स्थिति में ब्रेन टिशू में ऑक्सीजन और रक्त पहुंच नहीं पाता। ऑक्सीजन के बिना ब्रेन सेल्स और टिशू यानी मस्तिष्क की कोशिकाएं और ऊतक क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और जल्दी ही खत्म होने लगते हैं।
कोरोना से बढ़ा खतरा
ब्रेन स्ट्रोक का खतरा बढ़ाने वाली पहली वजह है कोरोना वायरस का संक्रमण, दूसरी वजह है लाइफ स्टाइल और तीसरी वजह है गर्दन की मसाज, डॉक्टर इस समस्या को बार्बर चेयर स्ट्रोक या ब्यूटी पार्लर स्ट्रोक कहते हैं। कोरोना वायरस से रिकवर होने के बाद बहुत सारे मरीज दिमाग के सुस्त पड़ने की शिकायत कर रहे हैं। कई लोगों को फोकस न कर पाने और चीजों को ठीक से न समझ पाने की समस्या हो रही है, इस समस्या को ब्रेन फॉग का नाम दिया गया है। हालांकि डॉक्टर अभीतक यह तय नहीं कर पाए हैं कि कोरोना के संक्रमण से रिकवर हुए मरीजों में यह लक्षण कितने दिनों तक रहेंगे, लेकिन यह जरूर समझा जा सकता है कि ऐसा क्यों हो रहा है। कोरोना वायरस के शिकार मरीजों में ब्लड क्लॉट यानी खून के जमने की समस्या हो सकती है। इसके अलावा कोरोना वायरस के मरीजों को आइसोलेशन यानी अकेले में रहना पड़ता है और एक ऐसी बीमारी से जूझना पड़ता है जिसका इलाज अभी बहुत कठिन है, यह अनिश्चितता भी दिमाग पर बुरा असर डालती है और दिमाग ठीक से काम नहीं कर पाता। कोरोना संक्रमण के दौरान दिमाग बहुत कमजोर हो जाता है।
ब्रेन स्ट्रोक की दूसरी वजह है खराब लाइफस्टाइल। खराब लाइफस्टाइल की लिस्ट में मोबाइल को पहले नंबर पर रखा जाना चाहिए। अमेरिका की नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ की एक रिपोर्ट के मुताबिक 50 मिनट से ज्यादा मोबाइल फोन का इस्तेमाल ब्रेन एक्टिविटी को तेज कर सकता है। मोबाइल दिमाग की शांति को भंग करके उसे एंग्जाइटी यानी तनाव देने का काम करता है। इसके अलावा धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों में, जंक फूड अधिक खाने वालों में, डायबिटीज वाले लोगों में, जिनका ब्लड प्रेशर हाई हो और व्यायाम न करने वाले लोगों में ब्रेन स्ट्रोक का खतरा ज्यादा होता है।
ब्रेन स्ट्रोक होने की तीसरी वजह है गर्दन की गलत तरीके से की गई मालिश। यदि गर्दन की मसाज गलत तरीके से की जाए तो सीधे अस्पताल में भर्ती होने की नौबत आ सकती है। दिमाग जितना सेहतमंद होगा शरीर भी उतना ही स्वस्थ रहेगा, क्योंकि दिमाग के द्वारा ही पूरे शरीर को नियंत्रित (कंट्रोल) किया जाता है। डॉक्टरों की सलाह के अनुसार गर्दन की मसाज से बचना चाहिए, जरूरत हो तो हल्की मालिश करानी चाहिए बहुत जोर से नहीं।
कैसे पहचानें
ब्रेन स्ट्रोक को पहचानने के दो फार्मूले हैं। एक फार्मूला जिसे डॉक्टर बीईएफएएसटी (बी फास्ट) का नाम देते हैं। बी का मतलब है बैलेंस यानी अगर व्यक्ति शरीर से बैलेंस खो देता है, ई का मतलब है आइज यानी अगर व्यक्ति को एक या दोनों आंखों से दिखना बंद हो जाए, एफ का मतलब है फेस यानी अगर चेहरे की मांसपेशियां कमजोर पड़ रही हैं, ए का अर्थ है आर्म यानी अगर बाजुओं में कमजोरी महसूस हो रही है, एस का मतलब है स्पीच यानी अगर जुबान लड़खड़ाने लगे और टी का मतलब है टाइम यानी तब मरीज को जल्द से जल्द डॉक्टर के पास दिखाने के लिए जाना चाहिए, क्योंकि ये ब्रेन स्ट्रोक के लक्षण हो सकते हैं। दूसरा फार्मूला है एसटीआर फार्मूला। एस का मतलब है स्माइल यानी बेहोशी से उठे व्यक्ति को स्माइल करने के लिए कहें, टी का मतलब है टॉक यानी व्यक्ति से कुछ आसान वाक्य बोलने के लिए कहें, आर का मतलब है रेज यानी व्यक्ति से दोनों हाथ ऊपर उठाने के लिए कहें। ये तीनों बातें बहुत ही महत्वपूर्ण हैं और अगर इन तीनों चीजों को करने में व्यक्ति को तकलीफ हो रही है तो तुरंत उसे डॉक्टर के पास ले जाएं।
बचाव के उपाय
पजल सॉल्व करने और शतरंज जैसे खेल खेलने से दिमाग हमेशा एक्टिव (सक्रिय) रहता है, ऐसे खेल दिमागी कसरत का काम करते हैं। व्यायाम यानी एक्सरसाइज तन और मन दोनों को फिट रखती है। यदि 35 से 40 वर्ष की उम्र तक कोई व्यायाम ना किया हो तो वॉकिंग यानी सैर करने से व्यायाम की शुरुआत की जा सकती है। सप्ताह में 5 दिन 30 मिनट की वॉक जरूर करें। अगर युवा हैं तो अपनी पसंद और फिटनेस लेवल के हिसाब से जिम, स्विमिंग, रनिंग, साइकिलिंग या किसी भी खेलकूद को व्यायाम के रूप में चुन सकते हैं।
पर्याप्त मात्रा में पानी जरूर पीना चाहिए, ये दिमाग को तरोताजा रखने में मदद करता है। यदि हाई ब्लडप्रेशर हो तो नियमित दवाई लेते रहना चाहिए, क्योंकि बीच-बीच में दवा छोड़ने पर भी ब्रेन स्ट्रोक का खतरा बहुत बढ़ जाता है। डायबिटीज़ के रोगियों को भी अपना शुगर लेवल हमेशा काबू में रखना चाहिए क्योंकि शुगर लेवल में बहुत ज्यादा बदलाव दिमाग की सेहत के लिए खतरनाक होता है। सदैव ताजा एवं स्वास्थ्यप्रद भोजन करना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि सदैव खुश रहें। छोटी-छोटी खुशियां स्वास्थ्य का बड़ा खजाना खोल सकती हैं, जबकि चिंता चिता तक पहुंचाने का काम कर सकती है।
(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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