भोपाल।नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसान शनिवार को देश भर में चक्का जाम कर रहे है। लेकिन उनके ऐलान के बाद से पूरे देश में सुरक्षा के विशेष इंतजाम किए गए। साल 2010 में मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल भी किसानों के एक ऐसे ही आंदोलन का गवाह बना था, जब किसानों ने बिना किसी चेतावनी के यहां के चप्पे-चप्पे पर अपना हक जमा लिया था। हालत यह हो गई कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chouhan) को भी अपने निवास से वल्लभ भवन तक पहुंचने के लिए कई रास्ते बदलने पड़े थे।
किसानों ने 2 दिन तक भोपाल के हर इलाके पर अपना नियंत्रण बनाए रखा। इस दौरान प्रशासन को मजबूरी में स्कूल-कॉलेज बंद करने पड़े। परीक्षाएं स्थगित हो गईं। एयरपोर्ट और अस्पताल जाने वाले भी नहीं पहुंच पाए। मुख्यमंत्री शिवराज को अपने निवास जाने के रास्ते में मुश्किलें आईं। उन्हें उस दिन पीटीआरआई से मानव संग्रहालय होते हुए कई रास्ते बदलकर वल्लभ भवन आना पड़ा था।
RSS से जुड़े भारतीय किसान संघ की की कुल 183 मांगें थीं। गावों में कम से कम 12 घंटे बिजली और किसानों के खिलाफ बिजली चोरी के मामले वापस लेना उनकी प्रमुख मांगों में शामिल थे। वे उद्योगों के लिए अधिग्रहण के मामलों में कंपनी में शेयर की भी मांग कर रहे थे। किसान इतने उग्र थे कि उन्होंने कई बड़े पत्रकारों को भी यह कहकर अपने बीच से भगा दिया।
किसानों ने मुख्यमंत्री से बात करने तक से इनकार कर दिया था। बीजेपी सरकार के साथ समस्या थी कि सड़कों पर बैठे किसान उसके अपने ही सहयोगी संगठन के थे। किसानों के साथ सरकार की अंतिम बैठक उस समय गृह मंत्री रहे उमाशंकर गुप्ता के घर पर हुई थी। जानकार बताते हैं कि किसानों और सरकार के बीच मध्यस्थ की भूमिका एक बड़े पत्रकार ने ही निभाई थी।
किसान आंदोलन के सबसे बड़े नेता शिवकुमार शर्मा कक्काजी (kakkaji) थे। कक्काजी उस समय भारतीय किसान संघ (Indian Farmers Association) के अध्यक्ष थे। किसानों से समझौता होने के बाद भी कक्काजी सरकार और बीजेपी के निशाने पर आ गए। उस समय प्रदेश अध्यक्ष रहे प्रभात झा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कक्काजी पर ब्लैकमेलिंग और होशंगाबाद से लोकसभा का टिकट मांगने के आरोप लगाए। थोड़े दिनों बाद बरेली गोली कांड के बाद उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। जेल में ही थे, तभी उन्हें किसान संघ से बाहर कर दिया गया। जेल से बाहर निकलने के बाद कक्काजी ने किसानों का अलग संगठन बनाया।
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