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Foreign Ministry ने Rihanna, Greta और Malala की सनसनीखेज और गलत टिप्पणियों को किया खारिज

February 03, 2021

नई दिल्ली । भारत ने देश में चल रहे किसान आंदोलन के बारे में कुछ विदेशी शख्सियतों के बयानों को खारिज करते हुए कहा कि कुछ निहित स्वार्थी तत्व विरोध की आड़ में  अपना एजेंडा थोप रहे हैं तथा किसान आंदोलन को पटरी से उतारने में लगे हैं।

विदेश मंत्रालय की ओर से जारी एक तीखे प्रेस वक्तव्य में कहा गया कि नामी-गिरामी विदेशी हस्तियों तथा अन्य लोगों को इन सनसनीखेज बयानों से बाज आना चाहिए जो न तो सही हैं और न ही जिम्मेदाराना। विदेश मंत्रालय की ओर से संभवतः पहली बार बुधवार को ट्विटर पर दो हैशटैग भी शुरू किए गए- #इंडियाटूगेदर (एकजुट भारत) और #इंडियाअगेंस्टप्रोपेगेंडा (दुष्प्रचार के खिलाफ भारत)। बयान में कहा गया कि भारत के गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) का शर्मनाक घटनाक्रम सबके सामने है। भारतीय संविधान को अंगीकार करने के राष्ट्रीय समारोह को धूमिल किया गया और राजधानी में हिंसा और तोड़फोड़ की गई। कुछ निहित स्वार्थी लोगों ने अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थऩ की मुहिम चलाई। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रतिमा को दुनिया के अनेक स्थानों में अपवित्र किया गया। यह भारत और पूरी दुनिया के लिए बहुत चिंता की बात है।



उल्लेखनीय है कि पॉप स्टार रिहाना (Rihanna), पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा टुमबर्ग (Greta Thunberg) और पाकिस्तानी मूल की सामाजिक कार्यकर्ता मलाला (Malala) ने किसान आंदोलन (Farmer Protest) के समर्थन में सोशल मीडिया पर ट्वीट के जरिए समर्थन व्यक्त किया है। भारत में उनके ट्वीट पर तीखी प्रतिक्रिया हुई है। अब विदेश मंत्रालय ने इस संबंध मं एक आधिकारिक बयान जारी कर आपत्ति व्यक्त की है।

विदेश मंत्रालय (Foreign Ministry) ने किसान आंदोलन के बारे में टिप्पणी करने वालों को सलाह दी कि वह इस मामले में कुछ बोलने से पहले तथ्यों की जानकारी तथा पूरे मामले की सही समझ हासिल करें। नामी-गिरामी और अन्य लोगों द्वारा हैशटैग के जरिए सोशल मीडिया पर सनसीखेज बातों को प्रचारित करना न तो तथ्य परक है, न ही जिम्मेदाराना। विदेश मंत्रालय ने कृषि कानूनों के लिए अपनाई गई लोकतांत्रिक प्रणाली का ब्यौरा देते हुए कहा कि देश की संसद में पूरी बहस और विचार विमर्श के बाद कृषि क्षेत्र में सुधारपरक कानून बनाए गए। इन सुधारों के जरिए किसानों को विस्तृत बाजार तक पहुंच तथा उपज बिक्री के विकल्प दिए गए। कृषि कानून कृषि क्षेत्र को आर्थिक और पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ बनाने का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

नए कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन का जिक्र करते हुए बयान में कहा गया कि देश के कुछ हिस्सों में किसानों के एक बहुत छोटे हिस्से को इन सुधारों को लेकर कुछ आपत्तियां हैं। किसान आंदोलनकारियों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने किसान नेताओं के साथ बातचीत की एक प्रक्रिया शुरू की थी। अब तक बातचीत के 11 दौर हो चुके हैं। केंद्र सरकार ने इन कानूनों को स्थगित रखने की पेशकश की है। स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी सरकार की इस पेशकश को दोहराया है। बयान में कहा गया कि किसान आंदोलन और विरोध प्रदर्शनों को देश की लोकतांत्रिक राजनीति और परंपरा के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि गतिरोध को खत्म करने के लिए सरकार और किसान संगठनों की ओर से कितने प्रयास किए गए हैं।

किसान आंदोलन से निपटने के लिए पुलिस की भूमिका का जिक्र करते हुए बयान में कहा गया कि पुलिस बल ने अपनी ओर से अत्यधिक संयम का परिचय दिया। सैकड़ों पुरुष और महिला पुलिसकर्मी शारीरिक हमलों का निशाना बने। कुछ पुलिसकर्मी छुरेबाजी का शिकार हुए और गंभीर रूप से घायल हुए।

 

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