कभी प्रदेश के थे सिरमौर…अब ढूंढ रहे हैं अपना ठोर
भोपाल, रवीन्द्र जैन।
मध्यप्रदेश में इतिहास गवाह है कि मुख्य सचिव की कुर्सी पर रहते ही अधिकारी अपने रिटायमेंट के बाद की सुख-सुविधाओं की व्यवस्था कर लेता है। सरकार कांग्रेस की रहे या भाजपा की, पूर्व मुख्य सचिवों ने रिटायर होने के बाद भी वर्षों तक सरकारी सुविधाओं का जमकर दोहन किया है, लेकिन पहली बार ऐसा हो रहा है कि प्रदेश के 4 पूर्व मुख्य सचिव काफी हैरान-परेशान हैं। किसी के पीछे ईडी पड़ गया है तो किसी की विभागीय जांच की फाइल खोली जा रही है। एक पूर्व मुख्य सचिव को सुविधाओं से वंचित किया तो वे सरकार पर ही बरस रहे हैं। एक पूर्व मुख्य सचिव सरकारी सुविधाओं का लाभ लेकर भी सरकार को आंखें दिखा रहे थे। इन्हें सरकार ने औकात दिखाकर घर भेज दिया है।
आर. परशुराम
1 मई 2012 से सितंबर 2013 तक मुख्य सचिव रहे। रिटायर होते ही इन्हें राज्य निर्वाचन आयोग का आयुक्त बनाया गया। बाद में इन्होंने सुशासन संस्थान के महानिदेशक के रूप में सरकारी सुविधाओं का जमकर भोग किया। शिवराजसिंह चौहान के चौथी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद एक बैठक में इन्होंने सरकार को आंख दिखाने की कोशिश की तो उसी दिन सरकार ने इनसे त्याग पत्र मांगा और घर भेज दिया। फिलहाल सरकारी सुविधाओं से वंचित होकर वे सरकार को मन ही मन कोस रहे हैं।
एंटोनी डिसा
अक्टूबर 2013 से अक्टूबर 2016 तक प्रदेश के मुख्य सचिव रहे एंटोनी डिसा को रिटायर होते ही रेरा का चेयरमैन बना दिया गया। यहां इन्होंने सरकार की सुख-सुविधाओं का जमकर लाभ लिया। पिछले दिनों सरकार ने इनका कार्यकाल घटाकर इन्हें पदमुक्त किया तो कुछ दिन तो चुप रहे, लेकिन 2 दिन पहले गृहराज्य लौटने से पहले इन्होंने सरकार को जमकर कोसा। डिसा का कहना है कि सरकार ने नियम विरुद्ध तरीके से उन्हें हटाया है। हालांकि वे भी इस पद का उपयोग रिटायरमेंट के बाद कर रहे थे।
एसआर मोहंती
जनवरी 2019 से लेकर 16 मार्च 2020 तक मुख्य सचिव रहे सुधिरंजन मोहंती भी आजकल परेशान हैं। उन्हें उम्मीद थी कि रिटायरमेंट के बाद विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष की कुर्सी मिलेगी, लेकिन अचानक कमलनाथ सरकार जाने के बाद कुर्सी तो मिली नहीं, उलटे शिवराज सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में शपथ पत्र देकर इनकी विभागीय जांच शुरू करने की कवायद शुरू कर दी है। सरकारी सुख-सुविधाओं से वंचित मोहंती ने मुख्यमंत्री से मिलकर उनके खिलाफ शुरू की गई जांच को गैर-कानूनी बताया है।
एम. गोपाल रेड्डी
16 मार्च 2020 से 24 मार्च 2020 तक मात्र 9 दिन मुख्य सचिव रहे एम. गोपाल रेड्डी इस समय सबसे बड़े संकट से गुजर रहे हैं। मप्र के ई-टेंडर घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय की टीम ने इनके हैदराबाद स्थित निवास पर छापा मारा। खबर है कि ईडी इन्हें गिरफ्तार करना चाहती थी, लेकिन अचानक कोरोना पॉजिटिव होने के कारण फिलहाल वह बचे हुए हैं। गोपाल रेड्डी पर आरोप है कि कमलनाथ सरकार के समय उन्होंने ई-टेंडर घोटाले में फंसी कंपनियों के कालेधन को इधर से उधर किया था।
सुख भोगने की आदत
मध्यप्रदेश के जितने भी बड़े आईएएस अफसर होते हैं, वे रिटायरमेंट के पहले अपनी नई पोस्टिंग के बारे में सोचना शुरू कर देते हैं। इनमें मुख्य सचिव तो सर्वेसर्वा रहकर अपने लिए सुख-सुविधाओं के माध्यम तय कर लेते हैं। दरअसल इन अफसरों को सरकारी सुख भोगने की आदत हो जाती है, इसलिए वे गाड़ी-बंगला बनाए रखने के लिए नए पदों की खोज करते रहते हैं। कुछ लोग चुनाव आयोग में जाकर बैठ जाते हैं तो कुछ रेरा जैसी संस्थाओं और विद्युत नियामक आयोग के पद पर अपना भविष्य तय कर लेते हैं। दरअसल यह सभी पोस्ट गैर-सरकारी होती हैं और इन पर रिटायरमेंट के बाद काबिज रहा जा सकता है।
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