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कौन है माता शाकंभरी, जानिए पौराणिक कथा

January 28, 2021

पौष मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से शाकम्भरी नवरात्र शुरू होते हैं। यह पौष मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को खत्म होते हैं। इस दिन को शाकम्भरी जयंती के नाम से जाना जाता है। आज शाकम्भरी जयंती मनाई जा रही है। इसी तिथि पर ही मां दुर्गा ने मां शाकम्भरी का अवतार मानव कल्याण के लिए लिया था। तो आइए जानेत हैं कि इस दिन मां दुर्गा के सौम्य स्वरूप यानी मां शाकम्भरी को कैसे प्रसन्न किया जा सकता है।

मान्यता है कि मां दुर्गा ने धरती से अकाल और गंभीर खाद्य संकट से पृथ्वी को निजात दिलाने के लिए शाकम्भरी माता का अवतार लिया था। जब इनकी पूजा की जाती है तो उन्हें सब्जियों और फल चढ़ाए जाते हैं। इन्हें सब्जियों और फलों की देवी कहा जाता है। इस दिन व्यक्ति अगर अपने सार्म्थयनुसार गरीबों को अन्न, कच्ची सब्जी, फल व जल दान करता है तो इससे देवी दुर्गा प्रसन्न होती है।

मां शाकम्भरी का दूसरा शक्तिपीठ राजस्थान में ही सांभर जिले के पास स्थित है। यह शाकम्भर के नाम से स्थित है। शाकम्भरी माता को सांभर की अधिष्ठात्री देवी कहा जाता है। इसके अलावा यहां की सांभर झील को भी शाकम्भरी देवी के नाम से जाना जाता है। आइए जानते हैं इस शक्तिपीठ के बारे में।

महाभारत के अनुसार, यह क्षेत्र असुर राज वृषपर्व के साम्राज्य का एक भाग था। यहां शुक्राचार्य जो असुरों के कुलगुरु कहे जाते हैं, निवास करते थे। यही वो जगह थी जहां पर शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी का विवाह नरेश ययाति के साथ हुआ था। इनकी पुत्री यानी देवयानी को समर्पित एक मंदिर स्थित है। यह झील के पास है। यहीं पर शाकम्भरी देवी को समर्पित एक मंदिर मौजूद है। मान्यता है कि यहां पर देवी की प्रतिमा अपने आप यानी स्वत: ही प्रकट हुई थी।



अन्य कथाओं के अनुसार, शाकम्भरी देवी चौहान राजपूतों की रक्षक देवी मानी जाती हैं। वन-संपदा को लेकर जब सांभर प्रदेश के लोग परेशान हो गए थे तब शाकम्भरी माता ने यहां स्थित वन को बहुमूल्य धातुओं के एक मैदान में परिवर्तित कर दिया। लेकिन इस वरदान को श्राप समझा जाने लगा। तब लोगों ने इस वरदान को वापस लेने की प्रार्थना की। मान्यता है कि इसके बाद देवी ने सभी धातुओं को नमक में बदल दिया था। यहां शाकम्भरी देवी के मंदिर के अलावा पौराणिक राजा ययाति की दोनों रानियों देवयानी और शर्मिष्ठा के नाम पर एक विशाल सरोवर एवं कुंड भी विद्यमान है। ये प्रमुख तीर्थस्थलों में बेहद

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