– श्रीराम माहेश्वरी
किसी भी देश में स्वस्थ गणतंत्र के लिए मजबूत लोकतांत्रिक व्यवस्था का होना बहुत जरूरी है। समतामूलक सिद्धांत के आधार पर सभी वर्ग और धर्म के लोगों के जब तक समान मौलिक अधिकार नहीं होंगे, तब तक हमारा गणतंत्र सुदृढ नहीं कहा जा सकता है। गणतंत्र दिवस के मौके पर तिरंगा फहराया जाता है। राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान गाए जाते हैं। हर्षोल्लास के बीच लोगों में राष्ट्रीयता की भावना जागृत होती है। इन अच्छाइयों के साथ ही समाज में कुछ असामाजिक तत्व जाति और धर्म के नाम पर लोगों को बांटने में लगे रहते हैं। वे नहीं चाहते कि देश मजबूत बने। पिछले साल शाहीन बाग का आंदोलन और दिल्ली के दंगे इसके उदाहरण हैं। दुखद पहलू यह भी है कि आतंकवाद और नक्सलवाद ने देश को खंडित करने का लगातार कुत्सित प्रयास किया है। जातिवाद और तुष्टीकरण की राजनीति ने लोगों को एकजुट करने के बजाय बांटने का काम किया है। इन सबके बावजूद हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था मजबूत हुई है। कई क्षेत्रों में हमने विकास किया है। विश्व के अनेक देशों में भारतीयों ने देश का मान बढ़ाया है।
डॉ भीमराव अंबेडकर ने कहा है- ‘अकेले राजनीतिक लोकतंत्र से काम नहीं चलता है। हमें सामाजिक लोकतंत्र भी कायम करना होगा। सामाजिक लोकतंत्र ऐसी व्यवस्था है, जिसमें आजादी समानता एवं बंधुत्व के सिद्धांतों पर पूरी तरह अमल होता है। हमारे देश की सामाजिक व्यवस्था असमानता की नींव पर खड़ी है। इस व्यवस्था का अंत किए बगैर हमारे देश में सामाजिक लोकतंत्र फल- फूल नहीं सकता।’ डॉ आंबेडकर ने अपने कथन में सामाजिक लोकतंत्र की पुरजोर वकालत की है। उनका मानना है कि सभी धर्म और सभी वर्ग के नागरिकों का इस देश में समान अधिकार है। हमारे संविधान में सभी नागरिकों के मौलिक अधिकारों की विस्तृत व्याख्या की गई है, जबकि हमारा समाज आज भी अल्पसंख्यकवाद और बहुसंख्यकवाद की संकीर्ण मानसिकता में उलझा हुआ है । यही हमारे सामाजिक लोकतंत्र की कमजोर कड़ी है।
प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा है-‘ हम देश के अल्पसंख्यकों को यह आश्वासन देना चाहते हैं कि उनके साथ किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाएगा। उनके धर्म, भाषा और संस्कृति पूरी तरह सुरक्षित रहेंगे। देश के समस्त नागरिकों को हमारा आश्वासन है कि हम गरीबी व अभावों को तथा उनके साथ जुड़े भुखमरी और बीमारी को पूरी तरह समाप्त करने का प्रयास करेंगे । शोषण का अंत हमारा लक्ष्य है।’ नेहरू जी ने यहां पर अल्पसंख्यकों को उनके धर्म, भाषा और संस्कृति की रक्षा का वचन दिया है। यहां विचारणीय तथ्य है कि उन्होंने बहुसंख्यक नागरिकों के विषय में नहीं बोला। जबकि यहां सभी नागरिकों के धर्म, भाषा और संस्कृति की रक्षा करने का वचन दिया जाना चाहिए था। ऐसे शब्द राजनीतिक हितों की पूर्ति तो कर सकते हैं, परंतु सभी धर्म के लोगों को एकजुट नहीं कर सकते हैं। जाहिर है कि देश में कुछ नेताओं के द्वारा एक वर्ग विशेष के लोगों को तुष्ट किया जाता रहा है । विभाजनकारी राजनीति जातिवाद को बढ़ावा देती रही है। आजादी के पहले और बाद में भी हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई लोगों को आपस में बांटा जाता रहा है। कुछ कारणों से कालांतर में आदिवासियों और दलितों के बीच भी खाई और चौड़ी हुई है । कुछ विभाजनकारी ताकतें आज भी देश में सक्रिय हैं । हमें इनसे सावधान और सजग रहने की जरूरत है।
यह सच है कि भारत में रहने वाले प्रत्येक नागरिक पहले भारतीय हैं। बाद में उनकी जाति या पंथ आना चाहिए, जबकि यहां मतगणना जाति के आधार पर होती रही है। स्वस्थ लोकतंत्र के लिए व्यक्ति की नागरिकता को ऊपर रखा जाना चाहिए। उसकी राष्ट्रीयता की भावना सर्वोपरि होना चाहिए। तभी हम सच्चे अर्थों में लोगों में समानता, सहिष्णुता, भाईचारा, परस्पर प्रेम, आदर, बंधुत्व की भावना को सार्थक कर सकते हैं। इसके लिए हमें सभी नागरिकों को समान अवसर दिए जाने की नीति बनाना होगी। सवर्णों और दलितों के बीच हुई गलतफहमियों को दूर करना होगा । अल्पसंख्यक और बहुसंख्यकवाद को दूर करना होगा। समाज को खंडित करने वाली ताकतों को पहचानना होगा।
देश में आज भी वर्ग- संघर्ष की घटनाएं होती रहती हैं। दंगे होते रहते हैं। इन घटनाओं के नाम पर कुछ पार्टियां और संस्थाएं सक्रिय होकर देश को समय-समय पर अस्थिर करने का प्रयास करती हैं। हाल ही में अमेरिका में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के समर्थक यूएस कैपिटल में घुस गए थे । यह घटना लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सीधी चोट है । अमेरिका पुराना लोकतांत्रिक देश है । वहां मजबूत लोकतंत्र है। ऐसी घटनाएं देश को कमजोर करती हैं।
भारत में आतंकवाद और नक्सलवाद की समस्या रही है। तमाम कोशिशों के बाद भी इसे पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सका है। मजबूत लोकतंत्र के लिए हमें पूंजीवाद के बजाय समाजवाद की ओर लौटना होगा। शहरों के साथ साथ गांवों के विकास पर ध्यान देना होगा। महिला सशक्तिकरण और युवाओं को आगे बढ़ाने पर ध्यान देना होगा। देश को आत्मनिर्भर भारत बनाना होगा। विदेशी उत्पादों के बजाय स्वदेशी उत्पादों को प्राथमिकता देनी होगी। जातिवाद के बजाय समान नागरिक नीति पर बल देना होगा । यदि ऐसा करने में हम सफल हो जाते हैं, तो निश्चय ही हमारा गणतंत्र मजबूत हो सकेगा।
( लेखक ‘नेचर इंडिया’ भोपाल के संपादक हैं। )
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