नई दिल्ली । सड़क से गुजरने वाले हर बाइक सवार में मुझे अपने बेटे का अक्स दिखाई देता है। किसी और का बेटा हादसे का शिकार न हो, इसलिए मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ इस चौराहे पर मुस्तैद रहता हूं। भरी आंखों से बुजुर्ग गंगाराम अपनी कहानी बयां करते हैं। हमेशा व्यस्त रहने वाले सीलमपुर चौक से कभी गुजरना हो तो ट्रैफिक पुलिस की ढीली-ढाली वर्दी पहने 75 वर्षीय बुजुर्ग हाथ में डंडा लिए ट्रैफिक कंट्रोल करते हुए दिखेंगे। वही गंगाराम हैं।
साहिबाबाद के एकता विहार में रहने वाले गंगाराम बताते हैं कि उनकी बी-ब्लॉक सीलमपुर में टीवी रिपेयरिंग की दुकान थी। अक्सर पुलिसकर्मी उनकी दुकान पर वायरलेस सेट आदि ठीक कराने आ जाते थे। बेटा मुकेश (40) भी उनके साथ ही काम करता था। ट्रैफिक पुलिस के जवानों से अच्छे संबंधों से उत्साहित होकर उन्होंने 32 साल पहले ट्रैफिक वार्डन के लिए फार्म भर दिया। आईकार्ड बन गया। शुरुआत में वे सुबह और शाम बिना वेतन ट्रैफिक कंट्रोल करने लगे। यहां से सुबह 10 बजे सीधे दुकान पहुंचकर खोलते थे।
करीब आठ साल पहले उनके बेटे मुकेश को सीलमपुर चौक पर एक ट्रक ने टक्कर मार दी। उन्होंने बेटे को लेकर छह माह इधर-उधर चक्कर लगाए, लेकिन उसकी मौत हो गई। इकलौते बेटे के सदमे में गंगाराम की पत्नी ममता देवी भी गुजर गईं। गंगाराम ने बहू रमा देवी की एक निजी अस्पताल में नौकरी लगवाई। इसके बाद वे खुद सुबह आठ से रात साढ़े आठ बजे तक सीलमपुर चौक पर मुफ्त में सेवा देने लगे। किसी तरह उन्होंने दो पोतियों का विवाह किया। 17 वर्षीय पोता अभी पढ़ाई कर रहा है। इतना कुछ होने के बाद भी गंगाराम का हौसला कम नहीं हुआ है। वे मजबूत जज्बे के साथ अपने काम पर मुस्तैद हैं।
सीएम अरविंद केजरीवाल ने भी किया सम्मानित
गंगाराम की कुर्बानी और जज्बा देखकर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने गांधी नगर में एक कार्यक्रम के दौरान उन्हें पगड़ी पहनाकर सम्मानित किया। इसके अलावा, 15 अगस्त और 26 जनवरी पर होने वाले कार्यक्रमों में उनको बुलाकर कई बार सम्मानित किया गया। गंगाराम बताते हैं कि एक बार ट्रैफिक पुलिस के संयुक्त आयुक्त और डीसीपी ने चौक पर गाड़ी रोकी और उनके पास पहुंचे। संयुक्त आयुक्त ने अपनी कैप उतारी और गंगाराम को पहनाकर उनको सैल्यूट किया। गंगाराम ने बताया कि तब उनको बहुत अच्छा लगा। गंगाराम के पास ढेरों ट्रॉफियां और प्रशस्ति पत्र हैं।
अब अच्छे लगते हैं गाड़ियों की आवाज और हॉर्न
ट्रैफिक पुलिस के जवान उनकी थोड़ी-बहुत मदद कर देते हैं। बहू की सैलरी से घर का खर्चा चलता है। उनका खाना-पीना सब कुछ यहीं सीलमपुर चौक पर हो जाता है। पिता की तरह मान देने वाले जवान उन्हें अपने घर से लाकर खाना खिलाते हैं। गंगाराम बताते हैं कि अब उन्हें गाड़ियों की आवाजें और हॉर्न सुनना अच्छा लगता है। इलाके के लोग यहां से गुजरते हुए उनका हालचाल लेते हुए जाते हैं। कुछ लोग तो उनके साथ सेल्फी भी खींचते हैं। वाहन चालक उनका कहना भी मानते हैं।
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