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सुपर पावर बनने की दौड़ में कहां खड़ा है भारत

January 10, 2021

– विक्रम उपाध्याय

कोविड के बाद की अर्थव्यवस्था कैसी होगी? कौन सुपर पावर बनेगा, किसकी अर्थव्यवस्था तबाह होगी? यह बहस विभिन्न मंचों पर चल रही है। चीनी अर्थशास्त्री विशेषकर इस बहस को हवा दे रहे हैं। यह कहा जा रहा है कि इस दशक के अंत तक चीन दुनिया का सबसे बड़ा अर्थतंत्र होगा। ब्रिटेन स्थित सेंटर फाॅर इकोनाॅमिक्स एंड बिजनेस रिसर्च का दावा है कि कोविड पर जल्दी काबू पाने के कारण चीन 2028 तक अमरीका और यूरोप से बहुत आगे निकल जाएगा। इसी संस्था ने यह भी भविष्यवाणी की है कि चीन और अमेरिका के बाद भारत 2030 तक तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। यानी सुपर पावर बनने की दौड़ में भारत भी पीछे नहीं है।

दुनिया की 10 बड़ी अर्थव्यवस्था पर नजर डालें तो पाएंगे कि अभी भी अमेरिका 21.43 खरब डाॅलर की जीडीपी के साथ बाकी सभी देशों के मुकाबले काफी आगे है। चीन अभी भी अमेरिकी जीडीपी के मुकाबले लगभग आधे 14.34 खरब डाॅलर की जीडीपी के साथ दूसरे नंबर पर है। इसी आंकड़े का आकलन यदि प्रति व्यक्ति जीडीपी के साथ करें तो पाएंगे कि अमेरिका चीन से मीलों आगे है। अमेरिका का प्रतिव्यक्ति जीडीपी 65,298 डाॅलर है तो चीन का प्रति व्यक्ति जीडीपी 10,262 डाॅलर है। जापान और जर्मनी भी प्रति व्यक्ति जीडीपी के मामले में चीन से बहुत आगे हैं। जापान का प्रतिव्यक्ति जीडीपी 40,247 डाॅलर है तो जर्मनी का 46,445। इन्हीं आंकड़ों को भारत के संदर्भ में देखें तो तस्वीर ज्यादा चमकदार नहीं लगती। भारत का जीडीपी 2.87 खरब डाॅलर का है और प्रति व्यक्ति जीडीपी केवल 2,100 डाॅलर है। यानी सुपर पावर बनने की दिशा में भारत को अभी भी लंबा सफर तय करना है।

अमरीकी अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी खासियत उसकी टेक्नोलाॅजी और सर्विस सेक्टर है। फाइनेंस, रियल एस्टेट, इंश्योरेंस, प्रोफेशनल एवं बिजनेस सर्विसेज उसकी जान है। अमेरिका एक खुली अर्थव्यवस्था है, जहां पूरी दुनिया से निवेश आता है। दुनिया की प्राइम करेंसी डाॅलर होने के कारण अमेरिका अपने कर्जे को ठीक से ढंग से संभाल पाता है। आर्थिक पावर के साथ-साथ दुनिया का सबसे बड़ा मिलिट्री पावर होने के कारण भी अमेरिका सुपर पावर के रूप में अपनी बादशाहत बरकरार रखने में कामयाब रहा है। लेकिन धीरे-धीरे अमेरिका अब कई चुनौतियों से घिर भी गया है। सामाजिक रोष अमेरिका में बहुत बढ़ गया है। रूस और चीन से उसे आर्थिक और सामरिक टक्कर मिल रही है।

चीन ने पिछले चार दशक में काफी तरक्की की है। जीडीपी के मामले में दुनिया का दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था चीन बन चुका है और वह अमेरिका को पीछे छोड़ने की होड़ में पूरी तरह शामिल हो चुका है। चीन ने कृषि और उद्योग दोनों क्षेत्रों में पूरी दुनिया में आगे निकल चुका है। वह इस समय दुनिया का सबसे बड़ा एक्सपोर्टर है। पर कोविड के कारण उसकी चुनौतियां बहुत बढ़ गई हैं। रूस को छोड़ दुनिया के सभी बड़े देशों का चीन के प्रति रुख नकारात्मक हो गया है। अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया और भारत के साथ लगभग उसकी दुश्मनी हो चुकी है। जाहिर है चीन का निर्यात बुरी तरह प्रभावित होने वाला है। कोरोना के मामले में पूरी दुनिया चीन को शक की नजर से देख रही है और यही उसके सुपर पावर बनने में बहुत बड़ी बाधा बनने वाला है।

चीन की अर्थव्यवस्था इस समय बहुत दबाव में है। कई साल तक लगातार दो अंकों में वृद्धि दर हासिल करने वाला चीन अब पिछड़ रहा है। कोविड से पहले भी चीन की पिछले तीन साल में औसत वृद्धि दर 6 प्रतिशत की रही। हालांकि चीन यह दावा कर रहा है कि कोविड पर जल्दी काबू पाने के कारण वह दुनिया की पहली अर्थव्यवस्था बन गया है जिसकी पाॅजिटिव ग्रोथ रेट है। चीन ने दावा किया है कि 2020-21 में उसकी वृद्धि दर 7 प्रतिशत से भी अधिक होगी। लेकिन कई ऐसी मीडिया रिपोर्ट आई हैं जिनसे पता चलता है कि चीन के उद्योग बहुत दबाव में हैं। अमेरिका से सीधी टकराव के कारण चीन का निर्यात बहुत प्रभावित हुआ है और अब चीन घरेलू उपभोग को ध्यान में रखकर अपनी अर्थव्यवस्था का संयोजन कर रहा है। यदि अमेरिका की बाइडन सरकार भी चीन के प्रति पुराना रुख बरकरार रखती है और ट्रेड वार जारी रहता है तो चीन का सुपर पावर बनने का अवसर कमतर होता जाएगा।

तो क्या भारत की स्थिति चीन से बेहतर है। क्या भारत के पास सुपर पावर बनने की क्षमता और संभावना है। हाल के वर्षों में भारत अधिक उदारवादी अर्थव्यवस्था बन गया है। दुनिया के लगभग सभी प्रमुख एजेंसियों और अध्ययन संगठनों ने भारत के विकास का पूर्वानुमान सकारात्मक बताया है। हालांकि मार्च 2020 की शुरुआत में ही कोविड के आ जाने के बाद भारत का जीडीपी विकास दर बुरी तरह प्रभावित हुआ है। इसके बावजूद ऑप्टिमिज्म इंडेक्स में भारत एक आशावाद देश के रूप में शामिल है।

विशेषज्ञों का मानना है कि भारत अभी भी दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था होगा। हाल ही में जारी वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020-21 में भारतीय अर्थव्यवस्था में लगभग 9 प्रतिशत का संकुचन आएगा, लेकिन उसके बाद अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट आएगी और अंततः 2021 में भारत 5. प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर हासिल कर लेगा।

भारत को आर्थिक महाशक्ति बनाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी बेहद सक्रिय और कुछ हद तक उतावले भी हैं। 2025 तक भारत को पांच खरब डाॅलर की अर्थव्यवस्था बनाने का उनका पहला लक्ष्य सामने है। उसको हासिल करने के लिए मोदी सरकार ने एक के बाद एक कई सुधार कानूनों को लागू किया है। जिनमें इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड, 29 असमान और कभी-कभी विरोधाभासी श्रम कानूनों की जगह चार अधिक सुसंगत कानून, 1955 के आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत कृषि उपज, अनुबंध कृषि और परिवहन, भंडारण, कीमतों और वितरण पर नियंत्रण के कानून, रक्षा, नागरिक उड्डयन, रेलवे, कोयला, खनन और ई-कॉमर्स जैसे क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को उदार बनाने के लिए सुधारों की घोषणा, जीएसटी और कॉर्पोरेट कर में कमी शामिल हैं।

सुपर पावर अमेरिका बना रहे या चीन उसका स्थान ले ले, पर इतना अवश्य है कि भारत की विश्व अर्थव्यवस्था में अपनी एक अलग धाक और पहचान बनी रहेगी, क्योंकि भारत कई क्षेत्रों में अभी से बढ़त बनाए हुए है। 120 करोड़ ग्राहकों के साथ भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा दूरसंचार बाजार है। चीन के बाद उपभोक्ता बाजार भारत से बड़ा कोई और नहीं है। खाद्यान्न के मामले में भारत पूरी तरह आत्मनिर्भर है। भारत दुनिया का एक मजबूत मिलिट्री पावर है। वायु सेना की सूची में चौथे, नौसेनाओं की सूची में 7 वें स्थान पर थल सेना रैंकिंग में भी भारत चौथे स्थान पर है। भारत अब दुनिया के सबसे बड़े हथियार आयातक देश से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है और कई देशों को हथियार निर्यात भी कर रहा है। इनफोर्मेशन टेक्नोलाॅजी हो या स्पेश साइंस अब भारत का नाम बड़े देशों में लिया जाता है।

भारत युवाओं का देश है और राजनीतिक रूप से पूरी तरह से स्थिर भी। भारत के पास अवसर भी है और संभावनाएं भी, चीन और अमेरिका की तरह आर्थिक महाशक्ति बनने का।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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