नई दिल्ली। प्राप्त जानकारी के अनुसार अधिकारियों ने गुरुवार को संसदीय समिति को बताया कि EPFO के पास 23 लाख से अधिक पेंशनर हैं जिन्हें हर महीने 1000 रुपये पेंशन मिलती है।
निजी क्षेत्र में काम करने वालो के लिए ये एक महत्वपूर्ण खबर है जिसका सीधा असर उनकी जेब पर पड़ सकता है। Labour Ministry के उच्च अधिकारियों ने लेबर से जुड़ी संसदीय समिति को यह सुझाव दिया है कि EPFO जैसे पेंशन फंड को व्यावहारिक बनाए रखने के लिए मौजूदा व्यवस्था को खत्म किया जाना चाहिए । उन्होंने आगे कहा की defined benefits के बजाय defined contributions की व्यवस्था अपनाई जाना चाहिए। यानी PF मेंबर्स को उनके अंशदान यानी कंट्रीब्यूशंस(Contribution ) के मुताबिक बेनिफिट (Benefit ) मिले।
सूत्रों के मुताबिक अधिकारियों ने गुरुवार को संसदीय समिति को बताया कि ईपीएफओ के पास 23 लाख से अधिक पेंशनर हैं जिन्हें हर महीने 1000 रुपये पेंशन मिलती है। जबकि पीएफ में उनका अंशदान इसके एक चौथाई से भी कम था। उनकी दलील थी कि अगर defined contributions की व्यवस्था नहीं अपनाई गई तो सरकार के लिए लंबे समय तक इसे सपोर्ट करना व्यावहारिक नहीं होगा।
सूत्रों ने TOI को बताया था कि मिनिमम पेंशन 2000 रुपये करने से 4500 करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा। अगर इसे 3000 रुपये कर दिया गया तो सरकार पर 14595 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।
साथ ही गुरुवार को हुई बैठक में अधिकारियों ने स्वीकार किया कि स्टॉक मार्केट में निवेश किया गया EPFO का बड़ा हिस्सा खराब निवेश साबित हुआ। कोविड-19 महामारी के कारण इकॉनमी में आई सुस्तीके कारण इस निवेश पर निगेटिव असर पड़ा और नेगेटिव रिटर्न मिला। जबकि अधिकारियों ने बताया कि ईपीएफओ के 13.7 लाख करोड़ रुपये के फंड कॉर्पस में से केवल 5 फीसदी यानी 4600 करोड़ रुपये मार्केट में निवेश किया गया है। वैसे सरकार यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रही है कि ईपीएफओ फंड को जोखिम वाले उत्पादों और स्कीमों निवेश करने से बचा जा सके।
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