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    एमएसपी की व्यवस्था हमेशा रहेगी और मंडियां भी बंद नहीं होंगी तब फिर इस आन्‍दोलन का क्‍या मतलब ? : किसान संघ

  • January 07, 2021

    भोपाल । कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन का आज 43वां दिन है। किसान गुरुवार को दिल्ली के चारों तरफ ट्रैक्टर मार्च निकाल रहे हैं। किसानों का कहना है कि सरकार ने मांगें नहीं मानीं तो 26 जनवरी को भी ट्रैक्टर परेड होगी। दूसरी ओर किसानों और सरकार के बीच 4 जनवरी की मीटिंग बेनतीजा रहने के बाद अब अगली बातचीत 8 जनवरी को है जिसमें कि फिर से कृषि कानूनों को वापस लेने और न्यूनतम समर्थन मूल् (एमएसपी) पर अलग कानून बनाने की मांग पर बात होगी। यह 9वें दौर की बैठक होगी। इससे पहले सिर्फ 7वें दौर की मीटिंग में किसानों की 2 मांगों पर सहमति बन पाई थी, बाकी सभी बैठकें बेनतीजा रहीं हैं । ऐसे में भारतीय किसान संघ के राष्ट्रीय संगठन मंत्री दिनेश कुलकर्णी ने हिन्‍दुस्‍थान समाचार से बातचीत की है और उन्‍होंने बताया है कि कैसे किसान आन्‍दोलनों और किसानों के हित में भारतीय किसान संघ (बीकेएस) अगुआ रहता आया है।

    बीकेएस के राष्‍ट्रीय संगठन मंत्री श्री कुलकर्णी ने कहा है कि मूल विषय कृषि कानूनों में का सुधार है, इसमें यह मांग कहां से आ गई कि पहले इसे रद्द करो, उसीके बाद सही बात होगी । भारतीय किसान संघ इसके पूरी तरह विरोध में है। सरकार ने कानून बनाया है, यह सरकार का अधिकार है, कानून सभी के हितों को ध्‍यान में रखकर ही बनाए जाते हैं, हां, यदि उनमें कुछ कमी है, तो उन्‍हें दूर करने के लिए बातचीत ही एक समाधान है, यह नहीं हो सकता कि आप देश व्‍यापी बंद का आह्वान करें । सड़क पर जाम लगाकर तमाम लोगों के जीवन को संकट में डाल दें फिर कहें कि हमारी मांगें पूरी हो, चाहे जो मजबूरी हो। जब सरकार कह रही है कि एमएसपी की व्यवस्था हमेशा रहेगी और मंडियां भी बंद नहीं होंगी तब फिर इस आन्‍दोलन का क्‍या मतलब है ?

    आन्‍दोलन से बहुराष्ट्रीय कंपनियां ढूंढने लगी अपना लाभ, जीएम फसल पर जोर
    उन्होंने कहा कि इसकी आड़ में कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपनी स्‍वार्थसिद्ध‍ि में लग गई हैं। इस आन्‍दोलन से आनुवंशिक रूप से परिवर्धित (जेनेटिकली मॉडिफाइड) यानी जीएम बीजों से उगाई जाने वाली फसलों को इजाजत देने की मांग उठ रही है, जिस पर भारत में रोक है। इससे साफ हो जाता है कि कुछ विदेशी कंपनियों ने किसानों को अपना मोहरा बनाकर इस आन्‍दोलन को अपने फायदे के लिए इस्‍तेमाल करना शुरू कर दिया है। यह आन्‍दोलन राजनीतिक हो गया है, जबकि इसे पूरी तरह से किसानों का आन्‍दोलन ही होना चाहिए था ।

    किसान संघ के राष्ट्रीय संगठन मंत्री दिनेश कुलकर्णी का कहना है कि कृषि उपज मंडियों में किसानों से जो टैक्‍स लिया जाता है उसके खिलाफ आवाज उठाने सबसे पहले यदि कोई संगठन आगे आया तो वह भारतीय किसान संघ है , अनाज या सब्जी या फिर अन्‍य कुछ भी हो, किसान उपज पर टैक्‍स लेना वास्‍तव में प्राकृतिक जस्टिस के खिलाफ है । उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र सरकार में हमारे प्रयासों से टैक्‍स की नई व्‍यवस्‍था जो लागू हुई है, उसमें किसान से यह ना लेकर व्यापारी से लि‍या जाने लगा है। महाराष्ट्र सरकार की तरह अन्‍य राज्‍यों को भी किसानों से टैक्‍स लेना पूरी तरह से बंद कर देना चाहिए। उन्‍होंने हिस से कहा कि हमारा यह स्पष्ट मानना है कि संपूर्ण देश में किसानों से कमीशन और टैक्‍स लेना बंद हो ।

    अब राजनेताओं के साथ खालिस्तानी, अर्बन नक्सली भी आए आगे
    देश में चल रहे इस किसाना आन्‍दोलन को लेकर भी श्री कुलकर्णी ने अपनी खुलकर बात रखी, जिसमें उनका साफ कहना है कि किसान संघ लगातार किसानों की पीड़ा को अनुभव करता आया है किंतु उस पीड़ा को कुछ लोग भुनाने की कोशिश कर रहे हैं, प्रारंभ में इस आन्‍दोलन में केवल राजनीतिक लोग आगे आए थे, अब तो खालिस्तानी, अर्बन नक्सली भी आगे आ रहे हैं, हालांकि किसान आंदोलन में शामिल लोग इस बात को नकार रहे हैं कि ऐसे लोग हमारे साथ हैं किंतु यह सच्चाई आज किसी से छुपी नहीं रही है। उन्‍होंने कहा कि जो भी अभी सरकार के साथ वार्ता करने जा रहे हैं, वे अपने अड़ियल रुख पर अड़े हैं, जबकि होना यह चाहिए कि सरकार जब कानून में सुधार के लिए पूरी तरह तैयार हो चुकी है, फिर कानून वापिस लेने की जिद्द का क्‍या मतलब है ?

    किसान की पूरी खरीदी हो जीएसटी मुक्‍त
    श्री कुलकर्णी ने कहा कि किसान संघ केंद्र सरकार से यह मांग करता है कि किसान को उपज के लिए जो भी उपकरण बिजली खाद एवं बीज सहित सामग्री लगती है, वह जीएसटी मुक्‍त हो, क्‍योंकि एक तरफ उससे इस सब पर जीएसटी वसूली जाती है तो दूसरी तरफ उस जीएसटी को अपने खाते में वापिस लेने का कोई रास्‍ता नहीं होता, खेती वैसे ही आज तक लाभ का धंधा नहीं बन सकी है, ऊपर से गरीब किसान से जीएसटी वसूलना कहीं से भी सही नहीं ठहराया जा सकता है। जीएसटी के नाम पर पूरे देश में हर रोज करोड़ों की राशि केंद्र सरकार ले रही है, जिसे तुरंत रोका जाना चाहिए।

    एमएसपी अनिवार्य है
    उन्‍होंने 2016 की शांता कुमार कमेटी का जिक्र करते हुए कहा कि एमएसपी केवल 6 प्रतिशत किसानों को फायदा पहुंचाता है, जो ‘कुलीन’ हैं और यही कुलीन किसान विपक्षी दलों के इशारे पर विरोध कर रहे हैं, ये छोटे किसान नहीं हैं. कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी) में सुधार और किसानों की उपज की खरीद काफी समय से लंबित थी, कमेटी ने नरेंद्र मोदी सरकार को सुझाव दिया था कि कृषि को व्यवहारिक बनाने के लिए समिति की सिफारिशों पर ज्यादा काम किया जाए, मसलन, किसानों को उर्वरक सब्सिडी का सीधा हस्तांतरण और भारतीय खाद्य निगम का पुनर्गठन। इसमें क्‍या गलत है? यदि 6 की जगह 10% किसानों के लाभ को भी मान लिया जाए तो भी यह स्‍पष्‍ट है कि देश में 90% छोटी जोत के किसान हैं, जिन्‍हें एमएसपी का फायदा आज भी नहीं मिल रहा है, ऐसे में निजि मंडी की कल्‍पना कुछ गलत नहीं है। हम यही चाहते हैं, देश में भले ही खूब मंडिया खुल जाएं किंतु उसमें किसान से टैक्‍स नहीं वसूला जाए। सरकार एमएसपी सब जगह लागू करे ताकि किसान को कम से कम उसकी उपज का दाम तो सही मिल सके।

    एफपीओ के लिए 300 किसानों की अनिवार्यता खत्‍म हो
    उनका कहना यह भी था कि किसानों को उचित लाभ नहीं मिलने के कारण से मार्च 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की कृषि-नीति में ऐतिहासिक परिवर्तन लाने की घोषणा की थी, इस घोषणा के अनुसार भारत की कृषि-नीति का मुख्य लक्ष्य 2022 तक अनाज का उत्पादन बढ़ाकर किसानों की आमदनी दुगुनी करना है। मोदी सरकार इलैक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय मंडी स्थापित करने पर काम करने के साथ ही इस योजना में देश की एक-तिहाई विनियमित थोक मंडियों को सूचीबद्ध किया है इसे और अधिक संभव बनाने के लिए स्थानीय या क्षेत्रीय स्तर पर कृषक उत्पादक संगठनों (FPOs) के गठन की आवश्यकता है, ताकि एक हज़ार से भी अधिक किसान, मंडियों तक अपनी पहुँच बना सकें और बेहतर दाम प्राप्त कर सके। अभी इसमें 300 की संख्‍या होने पर सरकार सहायता देती है, हमारा कहना है कि किसान 50 का ग्रुप बनाकर काम कर सकते हैं, सरकार को उन्‍हें भी पूरी सहायता देनी चाहिए। ये 300 की संख्‍या इसके लिए क्‍यों अनिवार्य होनी चाहिए? छोटे एफपीओ बनाकर भी काम शुरू किया जा सकता है, सरकार को यह समझना होगा।

    हर जिले में हो कृषि न्‍यायालय गठित
    श्री कुलकर्णी ने इस दौरान यह भी कहा कि किसानों से संबंधित आए दिन कई जमीन से जुड़े विवाद होते रहते हैं, लेकिन इनके निराकरण के लिए वही पुरानी घिसी पिटी राज्‍यों में व्यवस्था है, एसडीएम कार्यालय निर्णय देता है । कई निर्णय सालों से पेंडिंग हैं इसलिए स्वतंत्र रूप से लेबर कोर्ट, कंज्यूमर कोर्ट की तरह एग्रीकल्चर यानी किसान न्यायालय की स्थापना हर जिला केंद्र पर राज्‍य सरकारों को करना चाहिए। यह हमारी मांग सरकार से है, वह सिविल कोर्ट की बात कर रही है, फास्ट ट्रैक कोर्ट की बात कर रही है तब सरकार एग्रीकल्चर न्यायालय की बात क्यों नहीं कर रही? वास्तव में किसानों का बहुत बड़ा धन वकीलों पर और आपसी लड़ाई में कचहरी आने-जाने व अन्‍य खर्चों में ही समाप्‍त हो रहा है, यदि अलग से एग्रीकल्चर कोर्ट स्थापित होंगे तो निर्णय जल्दी आएंगे और किसानों का बहुत धन बचेगा। यह बहुत बड़ा विरोधाभास है कि एक तरफ सरकारें कह रही हैं कि कृषि को लाभ का धंधा बनाएंगे दूसरी तरफ किसान का पैसा इधर-उधर कई माध्यमों से बेकार बहा चला जा रहा है। उन्‍होंने कहा कि जब उसके पास पैसा ही नहीं बचेगा तो कैसे संभव है कि उसके जीवन के लिए यह लाभ का धंधा बन सकेगी । वास्‍तव में इस विरोधाभास को दूर करने के लिए हर राज्य सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे।

    उन्होंने बताया कि हमारी मांग को महाराष्ट्र सरकार ने बहुत हद तक मान लिया है, हम उम्मीद कर रहे हैं कि वहां जल्द ही जिला स्तर पर आपको कृषि न्यायालय देखने को मिलेंगे। इसी प्रकार हरियाणा के सीएम खट्टरजी ने भी हमारी प्रारंभिक बात को स्वीकार किया है और वे भी अपने यहां जल्द कृषि न्‍यायालय स्‍थापित करने जा रहे हैं ।

    उच्‍चस्‍तरीय किसान संगठनों के साथ कमेटी गठन का स्‍वागत है
    इसी के साथ भारतीय किसान संघ के राष्‍ट्रीय संगठन मंत्री श्री कुलकर्णी का कहना था कि उच्चतम न्यायालय के फसल एवं अन्‍य कृषि मुद्दों को लेकर एक उच्‍चस्‍तरीय किसान संगठनों के साथ कमेटी बनाने के सुझाव का किसान संघ स्वागत करता है। देशभर के मान्यता प्राप्त संगठनों को इस में जगह मिलनी चाहिए। हमने विचार के लिए बैठने से लेकर कृषि मुद्दों व किसान हित में सड़क पर उतरने से कभी परहेज नहीं किया है, यदि आगे भी सड़क पर उतरना होगा तो हम किसान मुद्दों पर हमेशा की तरह सड़क पर उतरेंगे, लेकिन फिलहाल सड़क पर उतरने की नहीं किसान हित में सरकार जब सभी बातें मानकर कृषि कानूनों में सुधार के लिए तैयार है तो इन सुधारों को जमीन पर उतारने की हमें अधिक जरूरत महसूस होती है। अभी हम उम्मीद कर रहे हैं केंद्र सरकार और राज्यों की सरकारें ठीक उसी प्रकार हमारी बात और मांगों को समझेंगी जैसा कि हरियाणा या महाराष्‍ट्र की सरकारों ने समझा है।

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