भोपाल। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के सिर पर 3 लाख 81 हजार 641 लंबित मामलों का भारी-भरकम बोझ है। जाहिर तौर पर नवंबर, 2020 तक की स्थिति का उक्त आंकड़ा पिछले एक माह से अधिक अवधि में और भी बढ़ गया होगा। वहीं कुल स्वीकृत पदों के मुकाबले वर्तमान न्यायाधीशों की संख्या आधी है। इसी वजह से न्याय-दान प्रक्रिया अपेक्षित गति नहीं पकड़ पा रही है। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की मुख्यपीठ जबलपुर और खंडपीठ इंदौर व ग्वालियर में लंबित मुकदमों के हिसाब से पदस्थ न्यायाधीशों की कमी एक बड़ी समस्या बनी हुई है। यही वजह है कि पुराने मामले निराकृत नहीं हो पाते और नए मामले दायर हो जाते हैं। नवंबर, 2020 के अंत में लंबित सिविल मामलों की संख्या 2 लाख 36 हजार 204 थी। जबकि क्रिमिनल मामलों की संख्या 1 लाख 45 हजार 437 रही। जबकि सिविल के निराकृत होने वाले मामलों की संख्या महज 1 हजार 624 व क्रिमिनल के निराकृत मामलों की संख्या महज 5 हजार 120 रही। नवंबर, 2020 की शुरुआत में सिविल के लंबित मामले 2 लाख 34 हजार 949 और क्रिमिनल के लंबित मामले 1 लाख 44 हजार 815 थे। जबकि इस अवधि में सिविल के 2 हजार 879 और क्रिमिनल के 5 हजार 742 नए मामले दायर हुए। इस तरह इनकी संख्या 8 हजार 621 के रूप में इजाफे के साथ कुल लंबित मामलों की संख्या उछाल मारकर अधिक हो गई।
मार्च, 2020 से सीमित सुनवाई से भी कम रहा निराकरण
विधिवेत्ताओं के मुताबिक मार्च, 2020 से कोविड के खतरे के कारण हाई कोर्ट का कामकाज महज सीमित सुनवाई के जरिये हुआ। वीडियो कॉफ्रेंसिंग से महत्वपूर्ण मामले सुने गए। जबकि पुराने मामले बहुत कम सुनवाई में आए। लिहाजा, लंबित मामलों की संख्या में इजाफा होता चला गया।
कब भरेंगे न्यायाधीशों के 53 स्वीकृत पद
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की मुख्यपीठ जबलपुर और खंडपीठ इंदौर व ग्वालियर के लिए न्यायाधीशों के कुल 53 पद स्वीकृत हैं। लंबे समय से सभी पद भरे जाने का इंतजार किया जा रहा है लेकिन वर्तमान में कुल 27 यानी आधे से भी कम पद भरे हुए हैं, शेष रिक्त। इनमें से सात न्यायाधीश 2021 में सेवानिवृत्त हो जाएंगे। ऐसे में मौजूदा न्यायाधीशों की संख्या घटकर 20 रह जाएगी। हालांकि यदि इस बीच पहली तिमाही या छहमाही में नए न्यायाधीश नियुक्त कर दिए जाते हैं, तो स्थिति नियंत्रित हो सकती है।
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