भोपाल। बारह साल से चला आ रहा मध्य प्रदेश को बासमती धान उत्पादक राज्य का दर्जा देने का मामला सुलझता नजर आ रहा है। कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने जीआई टैग (भौगोलिक संकेतक) देने को लेकर उठाई आपत्ति वापस लेने का निर्णय लिया है। अब केंद्रीय कृषि मंत्रालय इस पर कार्रवाई करेगा। वहीं, मध्य प्रदेश भी सुप्रीम कोर्ट में दायर विशेष अनुमति याचिका वापस ले सकता है। शरबती गेहूं को भी जीआइ टैग देने का प्रस्ताव मंजूरी के साथ एपीडा ने कृषि मंत्रालय को भेज दिया है। प्रदेश के 14 जिलों में बड़ी संख्या में बासमती धान की खेती होती है पर जीआइ टैग नहीं होने से इसे मध्य प्रदेश की बासमती के नाम से नहीं बेचा जा सकता। इसका फायदा उठाकर व्यापारी किसानों से कम दरों पर बासमती धान खरीदकर उसका चावल दूसरे राज्यों के नाम पर निर्यात करते हैं। वर्ष 2008 में यह मुद्दा पहली बार उठा और तत्कालीन शिवराज सरकार ने बासमती धान को मान्यता दिलाने के प्रयास किए, लेकिन सफलता नहीं मिली। तब से ही मामला विवादित है। अगस्त 2020 में पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मध्य प्रदेश की बासमती धान को जीआइ टैग दिलाने के प्रयासों पर आपत्ति दर्ज कराई। इस पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए पंजाब की कांग्रेस सरकार को मध्य प्रदेश के किसानों की विरोधी करार देते हुए प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था। साथ ही एतिहासिक दस्तावेजों के हवाले से बताया था कि सिंधिया स्टेट के रिकॉर्ड में दर्ज है कि 1944 में प्रदेश के किसानों को बीज की आपूर्ति की गई थी। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ राइस रिसर्च, हैदराबाद ने उत्पादन उन्मुख सर्वेक्षण रिपोर्ट में दर्ज किया है कि मध्य प्रदेश में 25 साल से बासमती का उत्पादन किया जा रहा है।
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