– सियाराम पांडेय ‘शांत’
कोरोना के भयावह दौर के बीच अब बर्ड फ्लू का डर लोगों को सताने लगा है। क्या पशु-पक्षी भी कोरोना वायरस की चपेट में आ रहे हैं या यह केवल पक्षियों में होने वाला साधारण या असामान्य बुखार है। वैसे बर्ड फ्लू प्रभावित पक्षियों में जिस तरह के संकेत मिल रहे हैं, वे कोरोना से लगभग मिलते-जुलते हैं और यह स्थिति मनुष्यों की सुरक्षा के लिहाज से भी बहुत खतरनाक है। कफ, डायरिया, बुखार, सांस से जुड़ी दिक्कत, सिर दर्द, पेशियों में दर्द, गले में खराश, नाक बहना और बेचैनी जैसी समस्याएं इस रोग का लक्षण हैं। चिंताजनक बात यह है कि बर्ड फ्लू मृत या जिंदा पक्षियों से इंसानों में फैल सकता है।
पशु-पक्षियों और मनुष्य का रिश्ता काफी पुराना है। पशु-पक्षियों के विकार मनुष्यों को भी प्रभावित करते हैं। कोरोना वायरस भी चीन में चमगादड़ से फैला था और इसके बाद उसने अधिकांश देशों को अपनी खौफनाक गिरफ्त में ले लिया। अब अचानक देश में कौओं, बतखों, मुर्गों-मुर्गियों और अन्य पक्षियों के मरने का जो सिलसिला आरंभ हुआ है, उसने भारत ही नहीं, पूरी दुनिया की परेशानी बढ़ा दी है। इसे प्रकृति के संदेश के तौर पर देखा जाना चाहिए। प्रकृति का खुला संदेश यही है कि मानव जाति मांसाहार का परित्याग कर शाकाहारी जीवनचर्या अपनाए, यही उसके अपने व्यापक हित में है।
कोरोना वायरस का खतरा अभी टला नहीं है। इसकी रोकथाम के लिए इस्तेमाल होने वाली वैक्सीन कितनी कारगर होगी, यह समय के साथ पता चलेगा। इस रोग के जितने वैज्ञानिक और चिकित्सकीय अध्ययन सामने आए हैं। जितने रूप और प्रतिरूप सामने आए हैं, उससे आम आदमी भयभीत और भ्रमित ही हुआ है। इससे दुनिया के अधिकांश देश परेशान हैं। इससे संक्रमित होने वालों और मरने वालों का आंकड़ा भी काफी बड़ा है। ऐसे में जिस तरह बर्ड फ्लू ने भारत समेत कई देशों में दस्तक देना आरंभ कर किया है, उससे हर आम और खास का चिंतित होना स्वाभाविक है। कोविड-19 की तरह बर्ड फ्लू का वायरस भी 1996 में चीन से फैला था।
चीन के सेंट्रल हुनान प्रांत से खबर आई है कि वहां अत्यंत घातक बर्ड फ्लू की वजह से फरवरी 2020 में 1800 मुर्गियों को मार दिया गया था। चीन ने एक सरकारी बयान में स्वीकार किया था कि श्याओयांग शहर के एक पोल्ट्री फार्म में बर्ड फ्लू के लक्षणों के संदेह में 4,500 से अधिक मुर्गियों को मार दिया गया है। यह वायरस भी नाक, मुंह या आंखों के जरिए ही फैलता है।
2003-2004 में फ्लू की वजह से लाखों मुर्गों और जलपक्षियों की मौत हो गई। वर्ष 2008 में जनवरी से मई तक बर्ड फ्लू का सबसे बड़ा प्रकोप पश्चिम बंगाल में हुआ था जिसमें 42 लाख 62 हजार पक्षियों को मारा गया था इसके लिए 1229 लाख रुपए का मुआवजा दिया गया था। असम में वर्ष 2008 के नवम्बर-दिसम्बर में यह बीमारी 18 जगहों पर फैली थी जिसमें पांच लाख नौ हजार पक्षियों को मारा गया था और इसके लिए 1.7 करोड़ रुपए की क्षतिपूर्ति दी गई थी। देश में अबतक 49 बार अलग-अलग राज्यों में 225 जगहों पर यह रोग अपना असर दिखा चुका है।
मौजूदा बर्ड फ्लू की भयावहता का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि अबतक हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और केरल में 84775 पक्षियों की मौत हो चुकी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन उन देशों पर भी नजर गड़ाए हुए है जहां भारत से पहले बर्ड फ्लू ने अपना असर दिखाया था।
हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और केरल में तो पक्षियों में बुखार की पुष्टि भी हो चुकी है। हरियाणा और गुजरात में मरे पक्षियों के नमूनों की रिपोर्ट अभी आई नहीं है लेकिन पक्षियों के बुखार ने आम आदमी की पेशानियों पर बल ला दिया है। मध्य प्रदेश के इंदौर, मंदसौर, आगर, खरगोन,उज्जैन, देवास,नीमच और सीहोर में कौए मृत मिले हैं। इंदौर और मंदसौर की रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। सरकार ने सभी जिलों को बर्ड फ्लू को लेकर अलर्ट कर दिया है। हिमाचल प्रदेश के पौंग डैम वेटलैंड में 2 हजार से अधिक पक्षियों की मौत बेहद चिंताजनक है। राजस्थान के 6 जिलों में अबतक 522 पक्षियों की मौत हुई है जिसमें 471 कौवे हैं। केरल में बर्ड फ्लू से 12 हजार पक्षियों की मौत हो चुकी है। अलप्पुझा और कोट्टायम जिलों में बर्ड फ्लू के मामलों की पुष्टि के बाद 50 हजार बतखों को मारने का आदेश दिया गया है। उक्त राज्यों में पक्षियों को मारे जाने का सिलसिला तेज हो गया है।
हरियाणा के पंचकूला के बरवाला के रायपुर रानी क्षेत्र में पिछले दो दिन में दो फार्म में ही 70 हजार से ज्यादा मुर्गियों की मौत हुई है। फार्मों से लिए गए मृत मुर्गियों के सैंपल की जांच रिपोर्ट अबतक नहीं आई है। गुजरात के जूनागढ़ जिले के बांटवा गांव में 2 जनवरी को बतख-टिटहरी-बगुला समेत 53 पक्षी मृत पाए गए। इनकी जांच की जा रही है।
25 दिसंबर काे झालावाड़ में काैओं की माैत के बाद भाेपाल लैब की रिपाेर्ट में बर्ड फ्लू पाॅजिटिव हाेने के बाद अबतक 10 दिनाें में 250 से अधिक काैओं, कबूतरों, काेयलों, किंग फिशर और मेगपाई पक्षियाें की माैत हाे चुकी है।
गौरतलब है कि भारत में वर्ष 2006 से 2015 तक 28 बार बर्ड फ्लू अपनी दहशत का साम्राज्य कायम कर चुका है। इससे देश के अलग-अलग राज्याें में 74.30 लाख पक्षियाें काे माैत हाे चुकी है। देशभर के चिड़ियाघर बर्ड फ्लू को देखते हुए सावधानी की मुद्रा में आ गए हैं। पिंजराें में दवा का छिड़काव किया जा रहा है। विजिटर्स ट्रैक पर लाल दवा का छिड़काव करवाया जा रहा है। इससे पूर्व कई चिड़ियाघर बंद कर दिए गए थे। दिल्ली का चिड़ियाघर तो वर्ष 2017 में 85 दिन तक बंद रहा था, इससे चिड़ियाघर को करोड़ों का नुकसान हुआ था। इसबार भी अगर देश में बर्ड फ्लू का प्रसार बढ़ता है तो चिड़ियाधारों की बंद करने की जरूरत होगी ताकि चिड़ियाघर के अन्य जानवर और पक्षी ही नहीं, वहां पहुंचने वाले लोगों को बर्ड फ्लू के संक्रमण से बचाया जा सके।
परिंदे बार-बार बर्ड फ्लू की चपेट में क्यों आ रहे हैं, इसका व्यापक वैज्ञानिक अध्ययन कर इससे बचाव के उपाय किए जाने चाहिए। परिंदों को मार डालना ही समस्या का समाधान नहीं है। अगर बड़ी तादाद में परिंदे मार दिए जाएंगे तो संसार में जीव-जगत का संतुलन बिगड़ जाएगा। इसलिए पशु-पक्षियों को कैसे बचाएं, उनमें संक्रमण कैसे रोकें, चिंता इस बात की होनी चाहिए।
(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)
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