पन्ना। समूचे मध्य प्रदेश में संभवतः एक मात्र पन्ना जिले में ही हीरा कार्यालय स्थापित है जिसकी आज यह दुर्दशा है कि कार्यालय में एक मात्र लिपिक एवं भृत्य पदस्थ है उसी के सहारे कार्यालय चल रहा है। यही नहीं मैदानी अमला भी आधा भी नहीं है और न ही एक भी हीरा निरीक्षक पदस्थ है। जिस कारण से हीरा माफियाओं की चांदी कट रही है।
जानकारी के अनुसार सूबे के पन्ना की हीरा खदान क्षेत्रों में निरीक्षण के अभाव में एक चौथाई हीरा भी कार्यालय में जमा नहीं हो पाता लगभग 80 प्रतिशत हीरा काला बाजारी की भेंट चढ़ रहा है। पन्ना जिले मे स्थित हीरा कार्यालय की विभागीय संरचना के अंतर्गत मैदानी स्तर पर काम करने के लिए पूर्व में दो हीरा निरीक्षकों सहित 30 सिपाही हवलदारों का स्टॉफ कार्य करता था जो कि हीरा कार्यालय के अधीन दो सर्किलों पन्ना सर्किल तथा इटवां सर्किल के अंतर्गत शासकीय खदान क्षेत्रों और निजी खदान क्षेत्रों की निगरानी कार्य की जिम्मेदारी संभालते रहे, परंतु शासन स्तर पर जिले के एकमात्र हीरा कार्यालय की विभागीय संरचना को बेहतर करने की जगह पूर्व में जो विभागीय कर्मचारी काम करते थे, उनके खाली होते पदों को भरने का काम नहीं किया गया और न ही शासन स्तर पर कर्मचारियों की पदस्थापना की गई। जिस वजह से विभागीय स्थिति कमजोर होती चली जा रही है हीरा विभाग में फील्ड स्तर पर खदानों की निगरानी करने के लिए दो निरीक्षकों में से दोनो पद खाली हो गये हैं।
बता दें कि पूर्व में जो 30 सिपाहियों और हवलदारों का स्टॉफ कार्य करता था, इस समय मात्र 4 सिपाही मैदानी स्तर पर काम करने के लिए शेष रह गये हैं। ऐसी स्थिति में खदान क्षेत्रों की सही तरीके से निगरानी हो रही है। यह अपने आप में ही एक बडा सवाल है। मैदानी स्तर पर हीरा निरीक्षक और सिपाही हवलदारों के पदों के समाप्त हो जाने के साथ ही फील्ड स्टॉफ के लिए हीरा कार्यालय के तहत संचालित होने वाले पन्ना सर्किल और इटवां सर्किल के कार्यालय भी बंद हो चुके हैा।
पन्ना सर्किल का कार्यालय पहाड़ीखेरा में किराये के भवन में तथा इटवां सर्किल का कार्यालय हीरा विभाग के अपने भवन में संचालित होता था जो कि अब बंद हो गये हैं। मैदानी स्तर पर हीरा कार्यालय के स्टॉफ की शून्यता जैसी स्थिति होने की वजह से खदान क्षेत्रों की निगरानी नहीं हो रही है और बड़ी वजह यह है कि पन्ना जिले मे जो अवैध रूप से हीरे का उत्खनन होता है , साथ ही साथ निकलने वाले हीरे हीरा कार्यालय में न जमा होकर तस्करों के हांथ में पहुंच रहे हैं।
माईनिंग अधिकारी के पास हीरा अधिकारी का प्रभारः-
जिले मे हीरा कार्यालय के प्रमुख के रूप में हीरा अधिकारी का पद हैं, परंतु जिले मे स्थित इकलौते हीरा कार्यालय में हीरा अधिकारी की पदस्थापना नहीं है और हीरा अधिकारी कार्यालय का प्रभार खनिज अधिकारी को सौंपा गया है जो कि आम तौर पर इस कार्यालय में उपलब्ध नहीं होते और हीरे से संबंधित विभिन्न कार्यो, निगरानी, अवैध रूप से हीरा उत्खनन के मामलों पर की जाने वाली कार्यवाहियों का व्यवस्थित तरीके से संचालन नहीं हो पा रहा है।
जिला कलेक्ट्रेट कार्यालय में वर्तमान में संचालित हो रहे इस हीरा कार्यालय में काम करने के लिए मात्र दो ही स्टॉंफ के कर्मचारी उपलब्ध है जिनमें एक हीरापाल तथा एक कार्यालय लिपिक के भरोसे पूरा हीरा विभाग संचालित हो रहा है। तुआदारों को जब हीरा प्राप्त होता है तो उसके द्वारा जमा किये जाने वाले की वैल्यू का आंतरिक मूल्यांकन करने से लेकर तमाम कामकाज हीरापाल द्वारा संचालित किया जाता है। हीरा कार्यालय में पदस्थ एक मात्र हीरापाल की ही कार्यो को लेकर तमाम जिम्मेदारी हो गई है। ऐसे में कार्यालय स्तर से जो कामकाज होने चाहिए उन पर प्रभाव पड रहा है। यदि हीरा कार्यालय में पदस्थ एकमात्र वेल्युवर किन्हीं कारणों की वजह से अवकाश पर चला जाता है तो हीरा कार्यालय का कामकाज पूरी तरह से ठप्प हो जाता है।
जिला प्रशासन ने छोटे से कमरे में समेट दिया पूरे कार्यालय कोः-
यही नहीं एकमात्र हीरा कार्यालय की जिला प्रशासन द्वारा भी इतनी घोर उपेक्षा की जा रही है कि सबसे कम जगह वाले एक छोटे कमरे इस कार्यालय को समेट दिया गया। यदि भविष्य में हीरा अधिकारी पदस्थ होते है तो न तो उनके बैठने के लिए अतिरिक्त कमरा हैं और न ही कर्मचारियों के लिए एक छोटे से कमरे में पूरे कार्यालय को समेट दिया गया है जो जिला प्रशासन की अदूरदर्शिता को प्रदर्शित करता है। एजेंसी
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