नई दिल्ली । अमेरिका से लीज पर दो सी-गार्जियन ‘अनआर्म्ड’ प्रीडेटर ड्रोन लेने के बाद अब भारतीय नौसेना हिन्द महासागर क्षेत्र में अपनी निगरानी क्षमताओं को बढ़ाना चाहती है। इसके लिए तत्काल 10 शिपबोर्न ड्रोन खरीदने जा रही है, जिसके लिए उसे केंद्र सरकार की मंजूरी मिल गई है। 1300 करोड़ की लागत से यह ड्रोन ग्लोबल टेेंडर के जरिए खरीदे जाएंगे। इसके बाद नौसेना जल्द ही इन्हें निगरानी और टोही गतिविधियों के लिए अपने बड़े युद्धपोतों पर तैनात करेगी।
हाल ही में रक्षा मंत्रालय ने रक्षा खरीद पॉलिसी-2020 में बदलाव करके तीनों सेनाओं के लिए लीज पर हथियार लेने का प्रावधान किया था। उसी के तहत नौसेना ने अमेरिका से दो सी-गार्जियन ‘अनआर्म्ड’ ड्रोन एक साल के लिए लीज पर लिये हैं। अब तीनों सेनाएं अमेरिका से ऐसे 18 और ड्रोन लेने की तैयारी कर रही हैं। लीज एग्रीमेंट के तहत अमेरिकी कंपनी केवल रखरखाव और तकनीकी मुद्दों में नौसेना की मदद करेगी लेकिन ड्रोन्स के ऑपरेशन्स पूरी तरह से नौसेना के पास होंगे। नवम्बर के दूसरे सप्ताह में भारत पहुंचे ड्रोन्स को नौसेना के तमिलनाडु स्थित आईएनएस राजाली बेस पर तैनात किया गया है। इसी बेस पर अमेरिका से लिए गए नौसेना के टोही विमान पी-8आई भी तैनात हैं।
नवम्बर में दिल्ली में भारत और अमेरिका की टू-प्लस-टू मीटिंग के दौरान दोनों देशों ने बीईसीए यानी बेसिक एक्सचेंज एंड कॉपरेशन एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए थे, जिसका मकसद अमेरिका से ड्रोन लेना ही था। अमेरिका से दो सी-गार्जियन ‘अनआर्म्ड’ ड्रोन लीज पर देने के बाद भारतीय नौसेना ने हिन्द महासागर क्षेत्र में अपनी निगरानी क्षमताओं को बढ़ाने के लिए तत्काल 10 शिपबोर्न ड्रोन खरीदने के लिए रक्षा मंत्रालय को एक प्रस्ताव भेजा था, जिसे हाल ही में सरकार ने स्वीकृति दे दी है। नौसेना ने यह प्रस्ताव फास्ट ट्रैक मोड में रखा था, इसीलिए मंजूरी जल्दी मिली है।
नौसेना की योजनाओं के अनुसार इन शिपबोर्न ड्रोन्स को बड़े आकार के युद्धपोतों पर तैनात किया जाएगा, जिससे हिन्द महासागर के भारतीय जल क्षेत्र में चीनी और अन्य विरोधियों की गतिविधियों का पता लगाने में मदद मिलेगी। भारतीय नौसेना अमेरिका से और सी गार्डियन ड्रोन का अधिग्रहण करने के लिए अलग से एक परियोजना पर काम कर रही है, जिससे मेडागास्कर से लेकर मलक्का स्ट्रेट तक निगरानी का विस्तार हो सकेगा।
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