– सियाराम पांडेय ‘शांत’
वर्ष 1752 से ही भारत 01 जनवरी को आंग्ल नववर्ष मनाता चला आ रहा है। जब हम अंग्रेजों के अधीन थे तब तो बात समझ में आती है कि हमारी अपनी विवशता थी लेकिन अब हम परतंत्र नहीं हैं। हमारी आजादी को 73 साल हो गए लेकिन देश के एक भी नेता ने इस बात पर विचार नहीं किया कि इस देश का नववर्ष अपना हो। ऐसा नववर्ष जिससे गुलामी की गंध न आए। यहां की प्रकृति और प्रवृत्ति के अनुकूल हो। आजादी के 73 साल बाद भी अगर हम गुलामी के बोझ को ढो रहे हैं तो इससे अधिक विडंबनापूर्ण स्थिति और क्या हो सकती है?
भारत में एक नहीं, कई-कई नववर्ष मनाए जाते हैं लेकिन इसपर भी हमारे देश के बुद्धिजीवियों ने कभी विचार नहीं किया। नववर्ष के लिए एक जनवरी को ही मान्यता देना कितना उचित है? सकारात्मक सोच रखना और बात है लेकिन अपने राष्ट्रीय स्वाभिमान को महत्व देना भी जरूरी है। जब दुनिया के कई देश आज भी एक जनवरी को अपना नववर्ष नहीं मानते तो भारत की ऐसी क्या विवशता है कि अपने नववर्ष की तिथि बदलने पर चिंतन न करे। भारत में आज भी गुलामी को यादों को ढोया जा रहा है। वह भी तब जब यहां अलग-अलग प्रांतों में अपनी मान्यता और परंपरा के अनुसार अलग-अलग नववर्ष मनाए जाते हैं। जिन राज्यों में ईसाई समुदाय की ठीक-ठाक आबादी है, वहां भी अलग से नववर्ष मनाया जाता है।
दुनिया में पहली बार जूलियस सीजर के ग्रिगोरियन कैलेंडर के तहत 01 जनवरी को नया साल 15 अक्टूबर 1582 को मनाया गया था। यूरोप और दुनिया के अधिकतर देश 1 जनवरी से नया साल मनाते हैं। लेकिन यह भी उतना ही बड़ा सच है कि 500 साल पहले तक ईसाई बहुल देशों में 25 मार्च और 25 दिसंबर को नया साल मनाया जाता था।
भारत की बात करें तो पारसी धर्म का नया साल नवरोज उत्सव के रूप में अमूमन 19 अगस्त को मनाया जाता है। यह सिलसिला तीन हजार साल से चला आ रहा है। शाह जमशेदजी ने नवरोज मनाने की शुरुआत की थी, तब से पारसी समाज के लोग नवरोज मनाते चले आ रहे हैं। पारसी धर्म के भगवान प्रोफेट जरस्थ्रु का जन्म 24 अगस्त को हुआ था। नववर्ष पर खास कार्यक्रम नहीं हो पाते इस वजह से 24 अगस्त को पूजन और अन्य कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। पारसियों की जिंदगी में तीन दिन बेहद खास होते हैं। एक खौरदाद साल, प्रोफेट जरस्थ्रु का जन्मदिवस और तीसरा 31 मार्च। इराक से आए पारसी धर्मावलंबी 31 मार्च को भी नववर्ष मनाते हैं।
पंजाब में नया साल वैशाखी के रूप में मनाया जाता है, जो अप्रैल में पड़ती है। सिख नानकशाही कैलेंडर की मानें तो सिखों का नया साल होली के दूसरे दिन से आरंभ होता है। भारत में हिंदुओं की सबसे ज्यादा आबादी है। हिंदू नववर्ष चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होता है। इसे हिंदू नव संवत्सर या नया संवत भी कहते हैं। इसकी अपनी कई वजहें हैं। ऐसी मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने इसी दिन से सृष्टि का सृजन आरंभ किया था। इसी दिन से विक्रम संवत के नए साल की शुरुआत होती है। शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात् नवरात्र का पहला दिन यही है। सिखों के द्वितीय गुरु श्री अंगद देव जी का जन्म दिवस है। स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने इसी दिन आर्य समाज की स्थापना की एवं कृण्वंतो विश्वमआर्यम का संदेश दिया। सिंध प्रान्त के प्रसिद्ध समाज रक्षक झूलेलाल भी इसी दिन प्रगट हुए। युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन हुआ। वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरी होती है। फसल पकने का प्रारंभ यानि किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है। नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं अर्थात् किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के लिए यह शुभ मुहूर्त होता है।
अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह तिथि अप्रैल में आती है। इसे गुड़ी पड़वा, उगादी आदि नामों से भारत के कई क्षेत्रों में मनाया जाता है जबकि दीपावली के अगले दिन से जैन नववर्ष आरंभ होता है। इसे वीर निर्वाण संवत के नाम से जाना जाता है। इसी दिन से जैन धर्मावलंबी अपना नया साल मनाते हैं। कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में तेलगू नववर्ष हिन्दी के चैत्र माह के प्रथम दिन और अंग्रेजी के मार्च या अप्रैल में मनाया जाता है। मराठी और कोंकणी लोग चैत्र माह में नया साल मनाते हैं। इस दिन वे गुड़ी को अपने दरवाजों पर लगाते हैं। अप्रैल के मध्य में तमिल नववर्ष का आयोजन होता है। बोहाग बिहू को असम का नववर्ष माना जाता है। बोहाग बिहू अप्रैल के मध्य में पड़ती है। बंगाली नववर्ष अप्रैल महीने के मध्य में मनाया जाता है। वहां इसे पोहला बोईशाख यानी वैशाख माह का पहला दिन कहा जाता है। त्रिपुरा के पर्वतीय क्षेत्र के लोग भी पोहला बोईशाख को ही अपने नए साल के तौर पर मनाते हैं। गुजराती नववर्ष को बेस्तु वर्ष के नाम से जाना जाता है। गोर्वधन पूजा के दिन से गुजराती नव वर्ष की शुरुआत मानी जाती है।
विषु केरल में नववर्ष का दिन है। यह मलयालम महीने मेदम की पहली तिथि को पड़ता है। केरल में विषु उत्सव के दिन धान की बुआई का काम शुरू होता है। नवरेह को कश्मीर का नव चंद्रवर्ष कहा जाता है। वनरेह का अर्थ होता है चैत्र नवरात्र का पहला दिन। मदुरै में चित्रैय यानी चैत्र महीने में चित्रैय तिरूविजा को नए साल के रूप में मनाया जाता है। मारवाड़ी नया साल दीपावली के दिन होता है जबकि गुजराती नया साल दीपावली के दूसरे दिन होता है। इस दिन जैन धर्म का नववर्ष भी होता है, लेकिन यह व्यापक नहीं है। अक्टूबर या नवंबर में आती है। जैन ग्रथों के अनुसार महावीर स्वामी (वर्तमान अवसर्पिणी काल के अंतिम तीर्थंकर) को चर्तुदशी के प्रत्यूष काल में मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। चर्तुदशी का अन्तिम पहर होता है इसलिए जैन लोग दीपावली अमावस्या को मनाते हैं। संध्या काल में तीर्थंकर महावीर के प्रथम शिष्य गौतम गणधर को कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
इस्लामिक नववर्ष भी मुहर्रम के पहले दिन से शुरू होता है जो इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन पैगंबर मुहम्मद ने मक्का से अपने लोगों का नेतृत्व करते हुए मदीना प्रवास किया था। 01 जनवरी को नववर्ष के रूप में मान्यता देकर ईसाई समुदाय के ही लोग खुश हों, ऐसा नहीं है। उनकी हमेशा यही चाहत रही है कि 25 मार्च या 25 दिसंबर से नया साल मनाया जाए। ईसाई समाज मानता है कि 25 मार्च को एक विशेष दूत गैबरियल ने ईसा मसीह की मां मैरी को संदेश दिया था कि उन्हें ईश्वर के अवतार ईसा मसीह को जन्म देना है। 25 दिसंबर को ईसा मसीह का जन्म हुआ था। इसलिए ईसाई समुदाय से जुड़े लोग इन दो तारीखों में से किसी दिन नया साल मनाना चाहते थे। 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाया जाता है इसलिए अधिकतर का मत 25 मार्च को नया साल मनाने का था। लेकिन जूलियन कैलेंडर में की गई समय की गणना में कुछ कमी थी। सेंट बीड नाम के एक ग्रेगोरियन कैलेंडर को इटली, फ्रांस, स्पेन और पुर्तगाल ने 1582 में ही अपना लिया था, जबकि जर्मनी के कैथोलिक राज्यों, स्विट्जरलैंड, हॉलैंड ने 1583, पोलैंड ने 1586, हंगरी ने 1587, जर्मनी और नीदरलैंड के प्रोटेस्टेंट प्रदेश और डेनमार्क ने 1700, ब्रिटिश साम्राज्य ने 1752, चीन ने 1912, रूस ने 1917 और जापान ने 1972 में इस कैलेंडर को अपनाया। सन 1752 में भारत ब्रिटेन के अधीन था इसलिए भारत ने भी इस कैलेंडर को 1752 में ही अपनाया था। इथोपिया आज भी सितंबर में अपना नया साल मनाता है। चीन अपने कैलेंडर के हिसाब से भी अलग दिन नया साल मनाता है।
गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि सारे दिन, सारी तिथियां और समय उन्हीं के बनाए हुए हैं। जहां तक नववर्ष का सवाल है तो वह किसी भी दिन आरंभ किया जा सकता है। भारत ने एक जनवरी को नववर्ष मनाने का निर्णय बहुत मजबूरी में लिया था। अब उसे चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही अपने नववर्ष के रूप में आधिकारिक तौर पर मान्यता देनी चाहिए क्योंकि इस तिथि पर देश के अनेक प्रांतों और समाजों के लोग आज भी नववर्ष मना रहे हैं।
(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)
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