भोपाल। प्रख्यात पत्रकार मामाजी माणिकचंद्र वाजपेयी एक कर्मयोगी , राष्ट्रभक्त , अहंकार शून्य , सागर-सी गहराई और आकाश-सी ऊँचाई रखने वाले व्यक्तित्व थे। मामा जी का जीवन राग-द्वेष से सर्वथा मुक्त था , वह सभी को समान भाव से देखते थे , इसलिए आज भी लाखों कार्यकर्ताओं और सैकड़ों पत्रकारों के लिए मामाजी का समर्पित जीवन प्रेरणापुंज है। यह बात आज मिंटो हॉल में आयोजित मामाजी के जीवन पर आधारित डाक टिकट विमोचन कार्यक्रम में मुख्यमंत्री चौहान ने कही । सीएम ने गीता से आदर्श मनुष्य के गुणों को श्लोक के माध्यम से उद्धृत करते हुए कहा कि आपातकाल की संघर्ष-गाथा और अन्य ग्रंथों के माध्यम से मामाजी ने अलग पहचान बनाई। उन्होंने अनेक प्रतिभाओं को निखारा। वे सहज, सरल, समर्पित और स्वाभिमानी थे।
सीएम ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री भारतरत्न स्व. अटलजी भी मामाजी का बेहद सम्मान करते थे। मामाजी के स्वर्गवास के समय अटल जी बहुत द्रवित हुए थे। मुझे याद है उस समय मैं मुंबई में अटलजी के साथ था और मुख्यमंत्री बन गया था , उस समय अटलजी को ग्वालियर लाने की जिम्मेदारी मुझे दी गई , रास्ते में झर-झर आंसू मैंने अटल जी के बहते हुए देखें , अंतर्मन जैसे रीत गया , स्व . अटलजी को इतनी भावुकता से रोते हुए मैंने पहली बार देखा था। इससे भी समझा जा सकता है कि मामाजी के प्रति लोगों के मन में कितनी श्रद्धा है।
मामाजी के नाम से मध्यप्रदेश सरकार द्वारा ध्येयनिष्ठ पत्रकारिता के लिए स्थापित राष्ट्रीय पुरस्कार पुन: प्रारंभ किया जाएगा। पूर्व सरकार द्वारा यह पुरस्कार बंद कर दिया गया था। मध्यप्रदेश सरकार राजेन्द्र माथुर जी के नाम से भी पत्रकारिता पुरस्कार को जारी रखते हुए मामाजी के नाम से प्रारंभ पुरस्कार को पूर्व की तरह प्रदान करेगी। उक्त बातें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने रविवार को मिंटो हॉल में जनसंपर्क विभाग द्वारा मामाजी माणिकचंद्र वाजपेयी जन्मशताब्दी वर्ष के अंतर्गत डाक टिकट अनावरण समारोह को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए कहीं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए हरियाणा , त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल प्रो. कप्तान सिंह सोलंकी ने कहा कि मामाजी ने पूरा जीवन समाज के लिए जिया। वे प्रेरणा के केन्द्र थे। उन्होंने संगठन को महत्वपूर्ण सेवाएं दीं। आपातकाल में कारावास गये। उन्होंने बताया कि उनके जीवन की दिशा तय करने में भी मामाजी का योगदान था। वे मामाजी ही थे जिन्होंने ग्वालियर संघ कार्यालय में उनके लिए रहने की व्यवस्था की जिसके कारण आगे बढ़ सके।
उन्होंने कहा कि वास्तव में जैसा मैं सोचता हूं वैसा कई कार्यकर्ता सोचते होंगे। मुझे आज बहुत प्रसन्नता है कि भारत सरकार ने मामाजी के जीवन को याद किया और उन पर डाक टिकट जारी कर उनके विचारों को मान्यता प्रदान की है। उन्होंने इस बात के लिए प्रदेश की वर्तमान शिवराज सरकार को धन्यवाद दिया कि उन्होंने पुन : सत्ता में आते ही ध्येय निष्ठ पत्रकारिता के लिए दिया जानेवाला राष्ट्रीय पुरस्कार पुन : देने का निर्णय लिया है।
वहीं, उनका कहना था कि समाज जीवन में सामान्यतः तीन प्रकार के व्यक्ति देखने को मिलते हैं एक वह जो स्वयं के लिए जीते हैं , दूसरे प्रकार के अपने व परिवार के लिए जीने वाले होते हैं और तीसरे में ऐसे लोग आते हैं जो अपने और और को समाज का माध्यम बना कर समाज जीवन के लिए अपना जीवन जीते हैं वास्तव में मामाजी उन व्यक्तियों में से थे जो हम सब के लिए समाज के लिए जीकर प्रेरणा के स्तोत्र बने हैं।
उन्होंने कहा कि संघ एक ऐसा संगठन है जिसमें वृहद कार्यकर्ता खासकर प्रचारक पूरी तरह समाज के लिए जीते हैं , राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में ऐसी व्यवस्था है कि ना घर परिवार ना खाता ना बही , जिसका ऐसा जीवन है वह संघ का प्रचारक है। मामा जी भी ऐसे ही एक व्यक्तित्व थे , जिन्होंने राष्ट्र जीवन के लिए अपना संपूर्ण जीवन दिया और मुझ जैसे न जाने कितने लोगों का निर्माण किया है।
इस अवसर पर मुख्य वक्ता भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री व वरिष्ठ साहित्यकार श्री श्रीधर पराड़कर ने अपने मुख्य वक्तव्य में कहा कि मामा जी के जीवन में अनेक पहलू देखने को मिलते हैं , एकदम साधारण , वैचारिक दृष्टि से पूर्ण , व्यवहार में सहज रूप रूप दिखाई देता है , जो हम कहानियों में पढ़ते हैं , गणेश शंकर विद्यार्थी , लोकमान्य तिलक के बारे में कि वे कैसे श्रेष्ठ पत्रकार और संपादक रहे , वास्तव में वैसे ही हमारी आंखों के सामने व्यक्ति हुए हैं जिन्हें देखकर कहा जाए कि पत्रकार को कैसा होना चाहिए तो आचरण के स्तर पर भी मामाजी के रूप में हमें वे प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं। उनके सानिध्य का ही पराक्रम है कि आज मुझे राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित करने के साथ ही यहां इस मंच से बोलने का अवसर मिला है।
उन्होंने कहा कि मामाजी ने विशिष्ट कृतियों से अपने असाधारण कृतित्व का परिचय दिया। 1937 में मध्य भारत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई , उसके 65 वर्ष बाद विचार किया गया कि यहां संघ कार्य कैसे शुरू हुआ , इस पर लिखा जाए , लेकिन जब 2003 में उसके ऊपर लिखना था तो डगर आसान नहीं थी , बहुत से लोग बुजुर्ग हो चुके थे , स्मृति लोप के बीच तथ्यों को सही ढंग से प्रस्तुत करना भी एक बड़ी चुनौती थी , तब जिस प्रकार से उनका मार्गदर्शन मिला वह अनुभव अद्भुत है। कोई संसार की किताब नहीं होगी जिसमें कि 7000 लोगों के साक्षात्कार लेकर उसे तैयार किया गया हो। ” ज्योति जला निज प्राण की ” इसी प्रकार से मध्य भारत की संगठन गाथा पर लिखी गई स्वतंत्रता और देश-विभाजन से विस्थापित हुए समुदायों व स्वयंसेवकों के सेवा कार्य पर लिखी गई पुस्तक है। यह पुस्तक पूर्ण करने का कार्य इसलिए ही संभव हो सका क्योंकि मामा जी उसका संपादन का कार्य देख रहे थे। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि जैसे 1857 के बारे में स्वतंत्र वीर सावरकर नहीं लिख जाते तो आज हमारे पास अनेक महत्वपूर्ण तथ्य नहीं होते , इसी प्रकार से यदि मामाजी ने प्रयास नहीं किया होता तो हमारे सामने यह ” ज्योति जला निजप्राण की ‘ ‘ जैसी अद्वितीय पुस्तक आज नहीं होती।
उन्होंने कहा कि मामा जी के व्यक्तित्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मामा जी का सम्मान करते हुए भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेईजी को अपने संबोधन में यह कहना पड़ा था कि मैं मामा जी के चरण स्पर्श करना चाहता हूं। वास्तव में मामाजी असाधारण व्यक्तित्व थे।
कार्यक्रम के प्रारंभ में मुख्य पोस्ट मास्टर जनरल श्री जितेन्द्र गुप्ता ने भी अपने विचार रखे। वहीं , मुख्यमंत्री चौहान , प्रो. सोलंकी , श्री पराड़कर ने संयुक्त रूप से डाक टिकट का अनावरण किया।इसी दौरान राघवेन्द्र शर्मा की पुस्तक ‘ भारत के परमवीर ‘ का विमोचन भी हुआ।
इस अवसर पर प्रमुख सचिव जनसंपर्क शिवशेखर शुक्ला , आयुक्त जनसंपर्क डॉ. सुदाम खाड़े , संचालक जनसंपर्क आशुतोष प्रताप सिंह ने अतिथियों का स्वागत किया। एजेंसी
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