कोर्ट ने नहीं दी अग्रिम जमानत, कहा- अग्रिम जमानत निर्दोष को फंसाने से रोकने के लिए
इंदौर। तीन बार तलाक-तलाक-तलाक बोलकर फरार हुए पति को सेशन कोर्ट ने अग्रिम जमानत नहीं देते हुए उसकी अर्जी खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि अग्रिम जमानत निर्दोष को फंसाने से रोकने के लिए होती है।
सूत्रों के मुताबिक फरियादी नाहिदा की शादी वर्ष 2011 में गोमतीनगर देवास के रहने वाले मुलजिम रिजवान पिता बाबू खान के साथ हुई थी, जिससे उसे एक पुत्र व पुत्री हैं। नाहिदा का इल्जाम है कि वर्ष 2018 से उसके पति का बर्ताव बिगडऩे लगा और वह दहेज की मांग करने लगा। उसके माता-पिता ने पति रिजवान को समझाया था, किन्तु बाद में फिर प्रताडि़त करने लगा। इस बीच उसकी तबीयत बिगड़ी तो वह डेढ़ साल पहले मायके आकर रहने लगी। इस दरमियान पति रिजवान के तलाक लिखे हुए तीन बार तलाक के खत उसे मिले, जबकि वह तलाक नहीं लेना चाहती है। इस बीच गत 1 दिसंबर को रिजवान खुड़ैल में अब उसके गांव आकर उसे तीन बार तलाक-तलाक बोलकर चला गया। महिला की रिपोर्ट पर खुड़ैल पुलिस ने दहेज यातना व मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकार का संरक्षण) अधिनियम, 2019 की धारा-4 के तहत केस दर्ज किया था।
इस मामले में मुलजिम रिजवान फरार है। उसने अग्रिम जमानत के लिए सेशन कोर्ट में जमानत अर्जी दी थी और कहा था कि वह पत्नी से छुटकारा चाहता है, इसलिए तलाक का केस लगा रखा है, किंतु पत्नी उसे झूठा फंसा रही है। वहीं नाहिदा ने जमानत देने का विरोध कर कहा था कि पति दूसरी महिला के संपर्क में है और उससे निकाह रचाने की फिराक में है। जज संदीपकुमार पाटिल ने यह कहकर अर्जी खारिज कर दी कि मामले में अभी मुलजिम की गिरफ्तारी बाकी है। तीन तलाक की कुप्रथा के विरुद्ध मध्यप्रदेश राज्य द्वारा 19 सितम्बर 2018 से प्रवृत्त मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकार का संरक्षण) अधिनियम, 2019 लागू किया है, जिसका मकसद मुस्लिम पुरुष द्वारा अपनी पत्नी को मनमाने तथा मनमौजी तरीके से तलाक दिए जाने की कुप्रथा का अंत करना है। खुद मुलजिम द्वारा तलाक हेतु कोर्ट में याचिका पेश की गई है, जिसमें तीन बार खत भेजने का जिक्र है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश हैं कि अग्रिम जमानत की शक्तियों का प्रयोग अपवाद स्वरूप मामलों में ही किया जाना चाहिए, जहां यह प्रतीत हो कि अभियुक्त को असत्य रूप से आलिप्त किया गया है और उसके द्वारा स्वतंत्रता का दुरुपयोग करने की संभावना नहीं है, लेकिन इस मामले में मुलजिम घटना की तारीख से ही फरार है। ऐसे में उसे जमानत दिया जाना न्यायोचित नहीं होगा।
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