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    राहुल गांधी राष्ट्रपति भवन तक मार्च करेंगे, 2 करोड़ हस्ताक्षर के साथ राष्ट्रपति से मुलाकात

  • December 24, 2020

    नई दिल्ली. दिल्ली बॉर्डर समेत इसके आसपास के इलाकों में तीनों कृषि कानूनों (Farm law 2020) के खिलाफ किसानों का प्रदर्शन (Farme Protest) 28वें दिन भी जारी है. किसानों की मांग है कि केंद्र सरकार तीनों कानूनों को वापस ले. इसी बीच राहुल गांधी (Congress) के नेतृत्व में कांग्रेस का प्रतिनिधिमंडल गुरुवार (24 दिसंबर) को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (President Ramnath kovind) से मुलाकात करेगा. राहुल गांधी की अगुवाई वाले प्रतिनिधिमंडल की तरफ से राष्ट्रपति को कृषि कानूनों के विरोध में देशभर से इकट्ठा किए गए 2 करोड़ लोगों के हस्ताक्षर भी सौंपे जाएंगे.

    कांग्रेस सांसद के सुरेश ने कहा कि राष्ट्रपति से मुलाकात करने से पहले राहुल गांधी कृषि कानूनों को लेकर कल सुबह 10.45 बजे विजय चौक से लेकर राष्ट्रपति भवन तक मार्च करेंगे. इस दौरान राहुल के नेतृत्व में अन्य कांग्रेसी सांसद भी इसमें भाग लेंगे. इससे पहले भी विपक्षी दलों ने कृषि कानूनों पर अपनी चिंताओं से अवगत कराने के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात की थी. इस मुलाकात में कांग्रेस नेता राहुल गांधी, एनसीपी प्रमुख शरद पवार, टीआर बालू, भाकपा के महासचिव डी राजा और येचुरी शामिल हुए थे.

    इस बैठक के बाद राहुल गांधी ने कहा था, ”राष्ट्रपति के साथ मुलाकात में हमने कृषि कानूनों को रद्द किए जाने का अनुरोध किया, ये कानून बिना चर्चा के पारित किए गए हैं.” उन्होंने कहा कि जिस तरह से कृषि विधेयक पारित किए गए, हमें लगता है कि यह किसानों का अपमान है, इसलिए वे ठंड के मौसम में भी प्रदर्शन कर रहे हैं. हमने राष्ट्रपति से कहा कि कृषि कानूनों को वापस लिया जाना बेहद महत्वपूर्ण है.

    सिंघु बॉर्डर पर ‘संयुक्त किसान मोर्चा’ के तमाम संगठनों के बीच चली लम्बी बैठक के बाद किसान नेता युद्धवीर सिंह ने कहा, जानबूझ कर सरकार इस मामले को लटकाना चाहती है और किसान का मनोबल तोड़ना चाहती है लेकिन हम संशोधन पर तैयार नहीं हैं. उन्होंने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा, ‘सरकार आग से खेल रही है इसके परिणाम देखने को मिल सकते हैं.’ वहीं किसान नेता शिवकुमार काका ने कहा, इस कानून में सबसे बड़ी समस्या ये है कि सरकार कॉर्पोरेट को किसानी में प्रवेश कराना चाहती है. ये कानून (Farm Law) अमेरिका में लागू हुए वहां खेती-किसानी दो प्रतिशत रह गयी.

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