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    रिमोट तकनीक से पता चलेगा राजस्थान के 8 जिलों की धरती में कितना पानी

  • December 22, 2020

    जयपुर। राजस्थान के बीकानेर, चूरू, श्रीगंगानगर, जालोर, पाली, जैसलमेर, जोधपुर और सीकर जिले के 65 हजार 500 स्क्वायर किलोमीटर क्षेत्र में भूजल की स्थिति का पता लगाने के लिए अब आधुनिक तकनीक का सहारा लिया जाएगा। इसके लिए इन जिलों में हेली बोर्न जियोफिजिकल सर्वे तकनीक के साथ साइंटिफिक स्टडीज करवाई जाएगी। यह काम हैदराबाद की सीएसआईआर-एनजीआर करेगी। केंद्रीय जलशक्ति मंत्रालय इस काम की मॉनिटरिंग करेगा। इस काम की शुरुआत करने के लिए केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की मौजूदगी में नई दिल्ली में उत्तर पश्चिमी भारत के सूखाग्रस्त क्षेत्र में हाई रिजोल्यूशन एक्विफर मैपिंग और प्रबंधन के लिए केंद्रीय भूजल बोर्ड और सीएसआईआर-एनजीआर के बीच एमओयू पर हस्ताक्षर हो चुके हैं।

    शेखावत ने बताया कि रिमोट तकनीक से इस सर्वेक्षण की शुरुआत गुजरात, राजस्थान और हरियाणा के सूखाग्रस्त एक लाख वर्ग किलोमीटर इलाकों से की जाएगी। पहले वर्ष में इस काम पर 54 करोड़ रुपए खर्च होंगे। इसके बाद देशभर में 4 लाख वर्ग किलोमीटर में इस तकनीक से भूजल की उपलब्धता का अध्ययन किया जाएगा। नई तकनीक से जो परिणाम सामने आएंगे, उससे यह साफ होगा कि कहां-किस तरह के जल संरक्षण की जरूरत है। एक लाख वर्ग किलोमीटर से जो डाटा मिलेंगे, उन्हें ग्राम पंचायत स्तर तक पहुंचाया जाएगा।

    उन्होंने बताया कि अभी तक केंद्रीय जल आयोग जिस पद्धति से जमीन के अंदर पानी का पता लगाता है, उसमें काफी समय लगता है। जबकि पानी की स्थिति तेजी से चिंताजनक बनती जा रही है। जल प्रबंधन पर तेजी से काम करने के लिए उसकी जानकारी भी जल्द से जल्द जुटानी होगी। डाटा के साथ नई तकनीक का साथ लेकर जल प्रबंधन तेज गति से कर सकेंगे। उन्होंने बताया कि राजस्थान, महाराष्ट्र सहित देश के तमाम हिस्सों में जल संरक्षण पर सरकार, गैर सरकारी संगठन और व्यक्ति विशेष ने अच्छे काम किए हैं। सरकारी स्तर पर एक जैसे उपाय किए जाने की वजह से कई जगह सफलता उतनी नहीं मिली, जितनी मिलनी चाहिए थी। इससे उत्साह कम होता है।

    केंद्रीय मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि अब हमारे पास किसी भी हतोत्साहित होने वाले काम करने की गुंजाइश नहीं है। हमें तकनीक के साथ सफलता के लिए काम करना है। शेखावत ने बताया कि 65 हजार करोड़ रुपये मनरेगा में पानी को रोकने के लिए खर्च किए गए हैं, लेकिन जहां पैसे खर्च हुए हैं, वहां की जरूरत से ज्यादा कुछ अन्य जगहों पर भी जरूरत थी।

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