विवाह पंचमी पर विशेष
– सुरेन्द्र कुमार किशोरी
दुनिया में जहां कहीं भी सनातनी धर्मावलंबी हैं, वहां मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की पूजा होती है। लेकिन बिहार में मिथिला एक ऐसा क्षेत्र है, जहां के लोग श्रीराम को जमकर गाली भी देते हैं। यहां उन्हें गाली देने की प्रथा सदियों पुरानी है। ऐसा नहीं है कि यहां उनकी पूजा नहीं होती है, मिथिला के घर-घर में श्रीराम पूजे जाते हैं। लेकिन मिथिला के लोग उन्हें दामाद (पाहुन) के तौर पर गाली भी देते हैं। शादी से संबंधित कोई भी रस्म हो, महिलाएं उनके नाम से गाली जरूर देती हैं। तभी तो यहां शादी-विवाह के समय घर-घर में गूंजता है ‘रामजी से पूछे जनकपुर के नारी, बता द बबुआ, लोगवा देत काहे गारी।’ लोग उन्हें अपने पाहुन (दामाद) के रूप में देखते हैं।
संपूर्ण मिथिला के लोग राम के भक्त हैं। भगवान राम की शादी मिथिला में होने के कारण यहां दामाद के उत्कृष्ट सत्कार की प्रथा है। दामाद को राम के सदृश और बेटी को सीता सदृश सम्मान दिया जाता है। मिथिला में छप्पन भोग का वास्तविक स्वरूप दामाद के भोजन के दौरान दिखता है। मिथिलांचल में दिवाली पर लक्ष्मी-गणेश के संग राम-सीता की भी पूजा की जाती है। विवाह के अवसर पर नव दम्पत्ति को सीता-राम की जोड़ी की संज्ञा दी जाती है। राम का जहां स्वयंवर में धनुष भंग की वीरता है, वहीं दामाद के रूप में धीरता है।
उत्तरी बिहार और नेपाल की तराई के इलाके को पौराणिक काल से मिथिला या मिथिलांचल के नाम से जाना जाता है। धार्मिक ग्रंथ रामायण, महाभारत, पुराण एवं जैन तथा बौद्ध ग्रन्थों में भी इसका उल्लेख है। मिथिला प्राचीन भारत में एक राज्य था और अपनी बौद्धिक परंपरा के लिये देश-विदेश में जाना जाता रहा है। बीच के कुछ दिनों तक यहां तीर भुक्ति (तिरहुत) की राजधानी स्थित थी। इसीलिए लोग इसे तिरहुत भी कहते हैं। मिथिला नरेश राजा जनक के काल में सीता जी का प्रादुर्भाव सीतामढ़ी के पास पुनौरा में तथा पालन-पोषण जनकपुर में हुआ था। इसलिए भारत और नेपाल के मिथिलावासी सांस्कृतिक दृष्टि से एक ही रहे हैं।
मिथिलावासी को भगवान राम के रूप में दामाद पाने का गौरव है। तभी तो यहां आज भी हर दूल्हे में राम की छवि देखी जाती है। मिथिलावासियों को दृढ़ विश्वास है कि अवध नरेश राम का नाम मिथिला की बेटी जनक दुलारी जानकी (सीता) के प्रताप से है। जनकपुर को लोग जगत जननी सीता का ननिहाल भी मानते हैं। लोगों का मानना है कि जो मिथिलावासी यहां नहीं आते, वह अगले जन्म में कौआ होते हैं। मिथिला वासियों की मान्यता है कि श्रीराम की जननी कौशल्या तो इस लोक को छोड़कर पतिलोक में चली गई लेकिन जानकी जी (सीता) की माता पृथ्वी जन कल्याण के लिए कल्पांतर तक यहीं रहेंगी।
मिथिला की धरती पर मनाए जाने वाले व्रत-त्योहारों की श्रृंखला में अगहन (मार्गशीर्ष) माह में मनाए जाने वाले विवाह पंचमी का विशेष महत्व है। मार्गशीर्ष महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी को भगवान श्रीराम और माता जानकी सीता का विवाह हुआ था। तभी से इस पंचमी को ‘विवाह पंचमी’ के रूप में भव्यता से मनाया जाता है। रामायण की तरह ही भगवान राम और माता सीता की कथाएं सैकड़ों वर्षों से प्रचलित हैं। इसी में दोनों के विवाह की कथा भी पौराणिक है। रामायण में भगवान श्रीराम और माता सीता की विवाह गाथा वर्णित है। पुराणों के अनुसार भगवान राम के रूप में अयोध्या के राजा दशरथ के घर विष्णु और माता सीता के रूप में मिथिला नरेश राजा जनक के घर लक्ष्मी पैदा हुए थे।
राजा जनक जब हल जोत रहे थे तो उन्हें एक नन्ही सी बच्ची मिली थी, यह कोई और नहीं माता सीता ही थी। एकबार सीता ने मंदिर में रखे उस धनुष को उठा लिया था, जिसे परशुराम के अलावा और कोई नहीं उठा पाया था। तब से राजा जनक ने यह घोषणा कर डाली कि जो कोई भी भगवान विष्णु के इस धनुष को उठाएगा उसी से सीता माता का विवाह होगा। मिथिला में स्वयंवर सभा लगाई गई तो कई राजाओं ने प्रयास किया, लेकिन कोई भी उस धनुष को हिला नहीं पाया। उसके बाद गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए भगवान श्रीराम ने धनुष को उठाया और उसपर प्रत्यंचा चढ़ाने लगे तो धनुष टूट गया। जिसके बाद भव्य आयोजन में माता सीता और भगवान श्रीराम का विवाह संपन्न हुआ था।
(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)
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