अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन ने शनिवार को ये अहम एलान किया कि 39 रोज बाद अमेरिका फिर से पेरिस समझौते में शामिल होगा। उन्होंने ये घोषणा पेरिस समझौता होने की पांचवीं सालगिरह के मौके पर एक ट्वीट कर की। उन्होंने कहा- ‘’आज से पांच साल पहले दुनिया ने इकट्ठा होकर जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते को अपनाया था। 39 रोज बाद अमेरिका इसमें फिर से शामिल होगा। हम दुनिया को और आगे बढ़ाने, तेजी से बढ़ाने और जलवायु संकट का सीधे मुकाबला करने के लिए एकजुट करेंगे।’’ पेरिस समझौते की पांचवीं सालगिरह पर विश्व नेताओं का वर्चुअल सम्मेलन हुआ। इसमें अमेरिकी राष्ट्रपति शामिल नहीं थे क्योंकि मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सत्ता में आने के बाद अपने देश को इस समझौते से हटा लिया था। जो बाइडन ने पिछले राष्ट्रपति चुनाव में अपने प्रचार अभियान के दौरान अमेरिका को फिर से इस समझौते का हिस्सा बनाने का इरादा जताया था। अब उन्होंने उसका औपचारिक एलान किया है।
उनकी घोषणा का मतलब है कि 20 जनवरी को जब वे राष्ट्रपति पद संभालेंगे, तो पहले ही दिन इस बारे में फैसला करेंगे। उत्सर्जन रोकने की दिशा में नहीं हुई प्रगति इस बीच, पेरिस समझौता होने के बाद जलवायु परिवर्तन रोकने की दिशा में कदम उठाने की घोषणाएं तो खूब हुई हैं, लेकिन इस दिशा में कोई खास प्रगति नहीं हुई है। शनिवार को हुए वर्चुअल शिखर सम्मेलन को 70 से ज्यादा देशों के नेताओं ने संबोधित किया। इसमें चीन समेत कई देशों के नेताओं ने अपने देश को कार्बन न्यूट्रल बनाने की समयसीमा बताई। कार्बन न्यूट्रल का मतलब विकास और ऊर्जा की ऐसी नीतियां अपनाना है, जिनसे कार्बन गैस का उत्सर्जन ना हो।
पेरिस समझौते पर 189 देशों ने दस्तखत किए थे। उसमें लक्ष्य तय किया गया था कि इस सदी के आखिर तक धरती का तापमान दो डिग्री से अधिक नहीं बढ़ने दिया जाएगा। तापमान का ये माप औद्योगिक युग शुरू होने के समय को आधार मानकर की जाती है। संधि में शामिल देशों ने कहा था कि उनकी कोशिश होगी कि तापमान में इस वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक ही रोक लिया जाए, लेकिन इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए जिन ठोस कदमों की जरूरत है, वे पिछले पांच साल में नहीं उठाए गए हैं। नतीजा यह है कि धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है और जलवायु परिवर्तन के नतीजे अधिक गंभीर होते जा रहे हैं। इसे देखते हुए पिछले साल संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुतारेस ने चेतावनी दी थी कि इस दशक का अंत आते-आते धरती का तापमान कम से कम तीन डिग्री सेल्सियश बढ़ चुका होगा।
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