– डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
भोजन सामग्री की बर्बादी को लेकर आई रेबो बैंक की हालिया रिपोर्ट बेहद चिंतनीय और खबरदार करने वाली है। एक ओर दुनिया के देशों में कुपोषण और भुखमरी की गंभीर स्थिति है तो दूसरी ओर कोरोना के कारण भोजन सामग्री के संग्रहण के चलते भोजन सामग्री की बर्बादी की तस्वीर सामने आ रही है। रिपोर्ट में कोरोना के कारण दुनिया के देशों में भोजन सामग्री की बर्बादी की ओर इशारा किया गया है। हालांकि इसमें ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और यूरोपीय देशों में भोजन सामग्री के अत्यधिक संग्रहण और बाद में उनके खराब हो जाने के आंकड़े प्रस्तुत किए गए हैं। इसे कोरोना के साइड इफेक्ट के रूप में देखा जा सकता है। क्योंकि कोरोना ने केवल संक्रमण और मौत के आंकड़े ही नहीं बढ़ाए अपितु दुनिया को पूरी तरह हिलाकर रख दिया।
कोरोना के कारण लंबे समय तक आर्थिक गतिविधियां ठप रही तो दूसरी ओर अन्य गतिविधियां प्रभावित हुई। लोगों के रोजगार छिने है और तनख्वाह में भारी कटौती में कसर नहीं छोड़ी गयी। बेरोजगारी बढ़ी तो सरकारी गोदामों में भरे खाद्यान्नों को आमजन को उपलब्ध कराने की पहल की गई है। कोरोना के कारण दहशत का माहौल बना और डिप्रेशन के मामले बढ़ रहे हैं। पूरा एक साल होने को आया पर कोरोना का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा। अब तो कोरोना की दूसरी लहर का दौर शुरू होने से लोगों में दहशत फैल रही है।
इसमें दो राय नहीं कि कोरोना के कारण दुनिया के देशों में लॉकडाउन की स्थितियां आई और ऐसे में लोगों को घरों पर रहने को विवश होना पड़ा। जब सबकुछ थम गया तो लोगों के सामने खाने-पीने का सामान घर पर रखने की आवश्यकता हुई। लॉकडाउन को देखते हुए यह सब जरूरी भी था। लोगों ने आवश्यकता से अधिक भोजन सामग्री खरीद कर संग्रहित की और वह तेजी से खराब होने लगी। अकेले ऑस्ट्रेलिया की ही बात की जाए तो वहां 10.3 बिलियन पाउंड की खाद्य सामग्री खराब हो गई। रेबोबैंक की रिपोर्ट के अनुसार ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका भोजन की बर्बादी के मामले में सबसे आगे रहे। हालांकि इसके लिए लोगों को दोष इस मायने में नहीं दिया जा सकता कि जिस तरह का लॉकडाउन और कोरोना के कारण स्थितियां बन रही थीं, लोगों के सामने घरों में कैद रहना ही एकमात्र विकल्प था। ऐसे में राशन सामग्री की पर्याप्त उपलब्धता जरूरी हो गया। कोरोना की भयावहता और लॉकडाउन की अनिश्चितता के चलते लोगों ने अधिक सामग्री खरीदी।
भोजन सामग्री की बर्बादी का एक बड़ा कारण नई-नई रेसिपी या नित नए प्रयोग भी रहा है। यदि आंकड़ों का विश्लेषण किया जाए तो लॉकडाउन के दौरान हमारे यहां भी लोगों ने जरूरत से अधिक खाद्य सामग्री खरीदी। लोगों में भय था कि पता नहीं खाद्य सामग्री मिलेगी भी नहीं या खाद्य सामग्री की किल्लत से दो चार होना पड़े। हालांकि यूरोपीय देशों, ऑस्ट्रेलिया व अमेरिका में कोरोना की दूसरी लहर की दहशत में लोगों ने अधिक सामग्री खरीदी और उसमें से बड़ी मात्रा में सामग्री खराब हो गई। कोरोना के कारण भोजन सामग्री की बर्बादी के लिए सीधे-सीधे किसी को दोष नहीं दिया जा सकता लेकिन भुखमरी व कुपोषण के चलते इतनी अधिक सामग्री का खराब होना चिंता का सबब अवश्य बनता है।
जिस तरह लोगों को कोरोना के प्रति अवेयर किया जा रहा है और लोग अवेयर हो रहे हैं, उसी तरह लोगों को भोजन सामग्री को लेकर असुरक्षा की भावना को खत्म करने के लिए सरकारों और गैरसरकारी संगठनों को आगे आना होगा। लोगों में यह विश्वास पैदा करना होगा कि विषम से विषम स्थिति में भी लोगों के लिए भोजन सामग्री की उपलब्धता में कोई कमी नहीं आएगी। परिस्थितियों को देखते हुए सरकार स्वयं आगे आकर लोगों के घरों तक भोजन सामग्री पहुंचाएगी। ऐसा किया भी गया है। देश के कई प्रदेशों में लॉकडाउन के दौरान न केवल जरूरतमंदों को निःशुल्क भोजन सामग्री पंहुचाई गई अपितु उनकी उपलब्धता भी सुनिश्चित की गई। केवल भय और असुरक्षा के कारण लोग भोजन सामग्री का संग्रहण कर रहे हैं, जिसे लोगों में विश्वास पैदा कर दूर किया जा सकता है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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