भोपाल। मध्य प्रदेश के आदिवासी क्षेत्र झाबुआ का कड़कनाथ मुर्गा अपने स्वाद और विशेष गुणों की वजह से देशभर में प्रसिद्ध है। कोरोना काल में इसी कड़कनाथ ने मुर्गीपालन कर रहे दर्जनों लोगों को कड़की से उबार दिया है। स्थिति यह है कि कड़कनाथ के चूजों के लिए तीन माह तक का इंतजार करना पड़ रहा है। क्षेत्र के कई किसानों-ग्रामीणों ने कोविड के पहले कर्ज लेकर एक-एक हजार कडकनाथ रखने के लिए केंद्र बनाए थे। कोरोना और लॉकडाउन की वजह से इन्हें लागत निकलने की भी उम्मीद नहीं थी, क्योंकि लोग चिकन आदि से दूरी बना रहे थे। लेकिन कड़कनाथ की मांग कोविड काल में कम होने के बजाय और बढ़ गई। कड़कनाथ पालने वाले ग्रामीणों ने न सिर्फ अपना कर्ज चुका दिया बल्कि आर्थिक रूप से भी वे समृद्ध हो रहे हैं। बता दें कि कड़कनाथ मुर्गा 800 रुपये व मुर्गी 700 प्रति नग मिलते हैं। एक दिन का चूजा 65, 7 दिन का 70 व 15 दिन का चूजा 80 रुपये में मिलता है। मांग बढऩे के बाद 120 रुपये तक एक चूजे की कीमत पहुंच गई है।
यूसुफ के बाद धोनी को भी भाया
क्रिकेटर यूसुफ पठान खुद गुजरात के बड़ौदा से नियमित अंतराल पर झाबुआ आते हैं और कड़कनाथ मुर्गे व चूजे लेकर जाते हैं। अब भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्रसिंह धोनी ने भी दो हजार कड़कनाथ चूजों की मांग की है। क्षेत्र का एक किसान कुछ माह में कडकनाथ के चूजे प्रदाय करेगा। इसके अलावा लगातार देश के कई स्थानों से प्रतिदिन मांग आती है।
झाबुआ के कड़कनाथ को मिला है जीआई टैग
मुर्गे की कड़कनाथ नस्ल मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले में ही पाई जाती है। बीच में छत्तीसगढ़ व मप्र के बीच कड़कनाथ को अपना बताने की लड़ाई भी चली, लेकिन तथ्यों व जानकारियों की पड़ताल के बाद आखिरकार झाबुआ को इसका जीआई यानी ज्योग्राफिकल इंडिकेशन टैग मिला था। कृषि विज्ञान केंद्र, झाबुआ के जिला समन्वयक डॉ. इंदरसिंह तोमर ने बताया कि दूसरी नस्ल के मुर्गे-मुर्गियों की तुलना में कड़कनाथ मुर्गा स्वास्थ्य व स्वाद की दृष्टि से बेहतर है। इसमें प्रोटीन के साथ ही विटामिन बी-1, बी-2, बी-6 और बी-12 भी भरपूर मात्रा में होता है। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, जबकि कोलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ता।
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