चार सप्ताह बाद होगी सुनवाई.. तब तक जारी रहेगा स्टे… ट्रस्ट ने भी विस्तृत जवाब के लिए मांगा समय
इन्दौर। हाईकोर्ट आदेश के बाद शासन-प्रशासन ने इंदौर सहित देशभर में मौजूद अरबों-खरबों की बेशकीमती खासगी ट्रस्ट की सम्पत्तियों को कब्जे में लेने की कार्रवाई शुरू कर दी थी, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने स्टे दे दिया था। अब शासन की ओर से लगभग 300 पन्नों में अलग-अलग जवाब प्रस्तुत किए गए हैं, जिसमें ट्रस्ट द्वारा किए गए घोटालों और धार्मिक-एतिहासिक महत्व की सम्पत्तियों को किस तरह से ठिकाने लगाया गया उसका ब्यौरा दिया गया है, जिस पर अब ट्रस्ट की ओर से भी जवाब के लिए समय मांगा गया है। लिहाजा 4 हफ्ते बाद सुप्रीम कोर्ट में इसकी सुनवाई होगी। सुप्रीम कोर्ट स्टे के चलते राज्य आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो ने भी ट्रस्ट के घोटालों की शुरू की गई जांच-पड़ताल को फिलहाल स्थगित कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने स्टे खारिज करने की मांग फिलहाल नामंजूर कर दी।
सबसे पहले अग्निबाण ने ही खासगी ट्रस्ट के साथ-साथ अहिल्याबाई होल्कर चैरिटेबल जैसे ट्रस्टों के जरिए किए जा रहे बड़े भू-घोटालों को सिलसिलेवार उजागर किया, जिसके चलते कुछ वर्ष पूर्व शासन ने इसकी जांच शुरू करवाई और तत्कालीन मुख्यमंत्री के सचिव मनोज श्रीवास्तव ने जांच कर एक विस्तृत प्रतिवेदन भी सौंपा, जिसमें इंदौर सहित देशभर में मौजूद ट्रस्ट की जमीनों, मंदिरों, धर्मशालाओं, घाटों की जानकारी के साथ ही उनका संरक्षण-संधारण किस तरह हो, इसके सुझाव भी दिए। इसके बाद अभी पिछले दिनों इंदौर हाईकोर्ट की डबल बेंच ने एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया, जिसमें शासन-प्रशासन को निर्देश दिए कि देशभर में मौजूद खासगी ट्रस्ट की सभी सम्पत्तियों को अपने कब्जे में लिया जाए, जिसके चलते सभी जिला कलेक्टर इस कार्रवाई में जुट गए और शासन ने राज्य आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो को भी घोटालों की जांच का जिम्मा सौंप दिया। बाद में खासगी ट्रस्ट की ओर से हाईकोर्ट आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, जहां से पिछले दिनों हाईकोर्ट आदेश पर स्टे के आदेश जारी हुए। लिहाजा सम्पत्तियों को कब्जे में लेने की प्रक्रिया रूक गई। अब सुप्रीम कोर्ट से ही अंतिम निर्णय होना है। लिहाजा शासन-प्रशासन की ओर से लगभग 300 पन्नों का जवाब सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया गया है, जिसके जवाब के लिए ट्रस्ट की ओर से समय मांगा गया। ट्रस्ट का यही कहना है कि अधिकारी भी ट्रस्ट में शामिल हैं और उनकी सहमति से ही सम्पत्तियों को बेचा गया। अब सुप्रीम कोर्ट ने चार हफ्ते बाद जनवरी के दूसरे हफ्ते का समय दे दिया है। उसके बाद सुनवाई होगी। इंदौर हाईकोर्ट की खंडपीठ ने 5 अक्टूबर को फैसला दिया था, जिसे ट्रस्ट की ओर से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, तब तक कई सम्पत्तियों को कब्जे में लेने की प्रक्रिया शासन निर्देश पर जिला कलेक्टरों ने शुरू कर दी थी। इंदौर कलेक्टर ने भी कई सम्पत्तियों को कब्जे में लेकर इस पर शासन के स्वामित्व वाले बोर्ड लगवा दिए। शासन की ओर से सुप्रीम कोर्ट में जवाब प्रस्तुत किया गया है। अब उस पर याचिकाकर्ताओं की ओर से जवाब प्रस्तुत किए जाएंगे। हालांकि शासन-प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट से स्टे खारिज करने की भी मांग की थी, जिसे फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने ठुकरा दिया है। यानी आगामी सुनवाई तक स्टे जारी रहेगा। उल्लेखनीय है कि देशभर के विभाजन के बाद मध्यप्रदेश शासन को इंदौर के होलकर स्टेट की देशभर में फैली मंदिरों और उनकी संपत्तियों के रखरखाव के लिए शासन द्वारा एक खासगी ट्रस्ट बनाकर उसे प्रतिवर्ष 2 लाख 91 हजार 952 रुपए दिए जाने का फैसला लिया गया। इस ट्रस्ट में शासन की ओर से संभागायुक्त एवं लोक निर्माण विभाग के अधिकारी के रूप में दो ट्रस्टी तथा केन्द्र सरकार की ओर से एक ट्रस्टी की नियुक्ति की गई, जबकि निजी ट्रस्ट के रूप में इंदौर की पूर्व महारानी उषाराजे होलकर मल्होत्रा एवं उनके पति को ट्रस्टी बनाया गया। इस ट्रस्ट की डीड 22 जून 1962 को पंजीकृत कराई गई। उक्त ट्रस्ट डीड मेें स्पष्ट उल्लेख है कि यह ट्रस्ट मध्यप्रदेश शासन की सम्पत्तियों की देखरेख के लिए बनाया गया है। उक्त ट्रस्ट के पंजीयन के समय 23-09-1969 को ट्रस्ट के ही सचिव जगदाले द्वारा लिखा गया कि उक्त ट्रस्ट की संपत्तियां मध्यप्रदेश शासन की हैं और ट्रस्ट केवल रखरखाव के लिए बनाया गया है, इसलिए रजिस्ट्र्रार आफ पब्लिक ट्रस्ट द्वारा 10 अगस्त 1971 को पारित एक आदेश द्वारा उक्त ट्रस्ट को शासनाधीन मानते हुए मध्यप्रदेश लोक न्यास अधिनियम 1951 की धारा 36-1 ए के अंतर्गत पंजीकरण से छूट दे दी गई थी।
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