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    लव जिहाद के विरोध में योगी सरकार का कमजोर विधेयक

  • December 02, 2020

     

    : डॉ. निवेदिता शर्मा

    भारतीय साहित्‍य प्रेम आख्‍यानों से भरा पड़ा है। प्रेम होते समय यह नहीं देखता कि स्‍त्री-पुरुष के बीच कौन सा पंथ, धर्म, सम्‍प्रदाय है, प्रेम तो बस हो जाता है। पुरातन से लेकर आधुनिक साहित्‍य का कोई भी पन्‍ना उठा लें, वह यही कहता नजर आएगा कि प्रेम सिर्फ समर्पण का नाम है, ”जब प्‍यार करे कोई तो देखे केवल मन” । वस्‍तुत: ऐसे में जब कोई योजनाबद्ध तरीके से धार्मिक उन्‍माद में प्रेम का नाटक कर भावनाओं से खेलता है, तब यही प्रेम धोखा और षड्यंत्र बन जाता है।

    उत्‍तर प्रदेश की योगी सरकार ने इसी धोखे से बचाने के लिए ही ‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020’ लाया गया है, किन्‍तु इसके आने के पूर्व जैसी आवाज इलाहबाद उच्‍च न्‍यायालय से आई है, उसके बाद अवश्‍य ही यह सोचने पर विवश होना पड़ा है कि क्‍या सही में यह ‘अध्‍यादेश’ अपने वास्‍तविक स्‍वरूप में प्रेम का कुचक्र रचनेवालों को रोक पाने में सक्षम हो सकेगा? लव जिहाद के खिलाफ यूपी में सख्त कानून बनाने की सरकार की तैयारी के ठीक पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा कि किसी भी व्यक्ति को अपनी पसंद का जीवन साथी चुनने का अधिकार है, कानून दो बालिग व्यक्तियों को एक साथ रहने की इजाजत देता है, चाहे वे समान या विपरीत लिंग के ही क्यों न हों।

    न्‍यायालय ने कहा है कि उनके शांतिपूर्ण जीवन में कोई व्यक्ति या परिवार दखल नहीं दे सकता है । यहां तक कि राज्य भी दो बालिग लोगों के संबंध को लेकर आपत्ति नहीं कर सकता है । अदालत ने ये फैसला कुशीनगर थाना के सलामत अंसारी और तीन अन्य की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान सुनाया था ।

    यहां मूल बात यह है कि यहीं से राज्‍य और न्‍यायालय के बीच संविधान प्रदत्‍त मौलिक अधिकार और राज्‍य के अपने विशेष निर्धारित संविधान सम्‍मत अधिकारों के बीच लड़ाई शुरू हो जाती है। ऐसे में बड़ा प्रश्‍न है कि अध्‍यादेश कानून में कैसे तब्‍दील हो सकेगा और हो भी गया तो इस कानून में इतनी कमियां हैं कि अपराधी आराम से बचकर भाग निकलेगा।

    योगी सरकार का जो निर्णय है उसमें धोखे से धर्म परिवर्तन कराने पर 10 साल तक की सजा का प्रावधान है। धर्म परिवर्तन कराने के लिए जिलाधिकारी के समक्ष 2 महीने पहले ही सूचना देनी होगी। अगर इसका उल्लंघन करता कोई पाया गया तो 6 महीने से लेकर 3 साल तक जेल की सजा हो सकती है । जुर्माने की राशि 10,000 व उससे अधिक की रखी गई है। अध्यादेश को लागू भी कर दिया गया है ।

    यह अध्यादेश ऐसे धर्म परिवर्तन को एक अपराध की श्रेणी में लाकर प्रतिषिद्ध करेगा, जो मिथ्या निरूपण, बलपूर्वक, असम्यक प्रभाव, प्रपीड़न, प्रलोभन या अन्य किसी कपट रीति से या विवाह द्वारा एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तन के लिए किया जा रहा हो। यह अवयस्क महिला, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के सम्बन्ध में ऐसे धर्म परिवर्तन के लिए वृहत दण्ड का प्रावधान करेगा। सामूहिक धर्म परिवर्तन के मामले में कतिपय सामाजिक संगठनों का पंजीकरण निरस्त करके उनके विरुद्ध कठोर कार्यवाही की जायेगी।

    उपबन्धों का उल्लंघन करने पर कम से कम 01 वर्ष अधिकतम 05 वर्ष की सजा जुर्माने की राशि 15,000 रुपए से कम नहीं होगी, का प्राविधान किया गया है, जबकि अवयस्क महिला, अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की महिला के सम्बन्ध में धारा-3 के उल्लंघन पर कारावास कम से कम 02 वर्ष अधिकतम 10 वर्ष तक का होगा और जुर्माने की राशि 25,000 रुपए से कम नहीं होगी। सामूहिक धर्म परिवर्तन के सम्बन्ध में करावास 03 वर्ष से कम नहीं किन्तु 10 वर्ष तक हो सकेगा और जुर्माने की राशि 50,000 रुपए से कम नहीं होगी।

    अध्यादेश के अनुसार धर्म परिवर्तन के इच्छुक होने पर विहित प्रारूप पर जिला मजिस्ट्रेट को एक माह पूर्व सूचना देनी होगी। इसका उल्लंघन किये जाने पर 06 माह से 03 वर्ष तक की सजा और जुर्माने की राशि 10,000 रुपए से कम की नहीं होने का प्राविधान भी किया जा रहा है।

    वास्‍तव में यह पूरी जानकारी जान लेने के बाद लगता है कि अध्‍यादेश बहुत अच्‍छा है और कम से कम अब तो लव जिहाद की शिकार होनेवाली बेटियों को इसके कुचक्र से बचाया जा सकता है, लेकिन इतने अच्‍छे कानूनी पेच और भाषा का इस्‍तमाल करने के बाद भी बहुत से अहम बिन्‍दु यहां छूट गए हैं, जिनका सहारा लेकर अपराधी आसानी से छूट जाएगा। बच्‍चियां जिनके हित में यह कानून बना है वह बेचारी अपने को ठगा सा महसूस करेंगी।

    प्रश्‍न यह है कि प्रेम में धर्म परिवर्तन करना ही क्‍यों ? कानून या संविधान की भाषा में स्‍वतंत्रता का अधिकारी हर नागरिक का अपना निजि है, फिर जिस प्रकार हिंदू, बौद्ध, सिख और जैन के मध्य बिना धर्म परिवर्तन के विवाह होता है, उसी प्रकार अन्य धर्मों में भी बिना धर्म परिवर्तन के विवाह क्‍यों नहीं होना चाहिए? एक स्‍त्री का धर्म परिवर्तन खासकर मुस्‍लिम और ईसाई पंथ में क्‍या इतना जरूरी है कि उसके बिना उनके यहां काम नहीं चलनेवाला? आखिर उन्‍हें धर्म बदलवाने की इतनी जल्‍दी ही क्‍या है? पहले नई आई दुलहन को परिवार और रीति-रिवाज तो जान लेने दो। 03 या 04 साल के बाद यह लड़की की इच्छा पर है कि वह धर्म परिवर्तन करना चाहती है या नहीं । यदि विवाह के समय धर्म परिवर्तन होगा तो यह कठोर दंडनीय अपराध होना चाहिए, जिसके लिए कम से कम 6 साल की सजा हो और यह गैर जमानती होता ।

    योगी सरकार यहां चूकती नजर आई । उसे अपने इस अध्‍यादेश में स्‍पष्‍ट कर देना था कि प्रेम करना बुरा नहीं, लेकिन अपने सच्‍चे प्रेम के लिए धैर्य भी बनाए रखा जाए। इसलिए कानूनन दो धर्म के लोगों के बीच विवाह करते समय धर्म परिवर्तन करना पूर्ण रूप से अवैध करार किया जाता ।

    इसी प्रकार से अंतरधार्मिक विवाह में बालिका को पति की संपत्ति में अधिकार, विवाह विच्छेद के बाद भरण पोषण अधिनियम, संतान को उत्तराधिकार के नियम का पालन किए जाने का प्रावधान किया जाता। साथ ही अंतरधार्मिक विवाह में एक पत्नी के रहते हुए दूसरा विवाह पूर्णता निषेध होता। जब तक की पहली पत्नी से तलाक ना हो जाए या उसकी मृत्यु ना हो जाए । पत्नी की संशय मृत्‍यु होने के कारण उसके बच्चों की सुपुर्दगी निर्णय होने तक पत्नी के परिवार जन चाहे तो उन्‍हें दी जाती ।

    इतना ही नहीं इस कानून में जिक्र होता कि अंतरधार्मिक विवाह में विवाह या तो दोनों धर्मों की विवाह पद्धति के अनुसार हो या फिर कोर्ट मैरिज हो। विवाह के पश्चात उत्पन्न संतानों का धर्म क्या होगा यह निर्णय माता को दिया जाता।

    अनेक विकसित देशों में विवाह की दो प्रकार की आयु है, एक माता-पिता की सहमति से और दूसरी बिना समिति से । माता-पिता की सहमति से विवाह की आयु बालिका के लिए 18 वर्ष और बालक 21 वर्ष पूर्ण करने तक रखी गई है, जबकि यदि वे अपनी इच्‍छा से विवाह करना चाहते हैं तो बालिका-बालक दोनों का 21 वर्ष आयु पूर्ण करना अनिवार्य है। इसी तरह से योगी के इस अध्‍यादेश में होता कि यदि परिवार की सहमति के बिना 21 वर्ष पूर्ण होने के पहले विवाह किया जाए या शारीरिक संबंध बनाए जाने से बालिका गर्भ धारण करती है तब उसे गंभीर अपराध मानते हुए कम से कम 10 साल की (बिना जमानती) सजा का प्रावधान होता । इस कृत्‍य को कठोर दंडनीय अपराध की श्रेणी में रखा जाता ।

    इसी प्रकार के अवैध विवाह से उत्पन्न संतान को उसके जैविक पिता की सम्‍पत्‍त‍ि में अधिकार मिलता, साथ ही बालिका को भी कंपनसेशन के रूप में राशि देना तय किया जाता यह राशि 10 या 15 हजार ना होकर पॉस्‍को एक्ट की तरह होती। इसी के साथ योगी सरकार का यह अध्‍यादेश बेटियों को दो हिस्‍सों में बांटता नजर आता है, जबकि बेटी तो बेटी होती है। सामान्‍य और अजा-जनजा के बीच खाई क्‍या पहले से कम है जो उन्‍होंने अपने इस नए अध्‍यादेश में देश की बेटियों में ही भेद कर दिया है।

    योगी सरकार का कानून अपराध घटित होने के बाद दण्‍डित करने के लिए बना नजर आता है, जबकि लोकप्रशासन में कानून ऐसा होना चाहिए कि अपराध घटित ही ना हो। यहां यदि चरणबद्ध व्‍यवस्‍था बनाई जाएगी तभी अंतरधार्मिक विवाह की हकीकत सभी के सामने आ सकेगी अन्‍यथा यह विवाह प्रेम है या छलावा हम तमाम अध्‍यादेश और इससे जुड़े कानून बनाने के बाद भी कभी नहीं जान पाएंगे। बेटियां आगे भी छली जाती रहेंगी ।
    लेखिका संविधान की जानकार एवं समाज सेवी हैं।

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