– सियाराम पांडेय ‘शांत’
‘मन की बात’ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खास बातें करते हैं। वे देश को निरंतर आगे बढ़ने तथा विषम परिस्थितियों में भी हौसला बनाए रखने की बातें करते हैं। उनके इस कार्यक्रम में समसामयिकता तो होती ही है, भूत और भविष्य की मौजूदगी और देश के अभ्युदय की चिंता भी समाहित होती है। उन्होंने कोरोना के प्रति देशवासियों को सावधान रहने के लिए आगाह तो किया ही, यह भी बताया कि कोरोना का टीका जल्द आने वाला है। ‘मन की बात’ कहने से एकदिन पहले ही वे अहमदाबाद, हैदराबाद एवं पुणे के दौरे पर गये थे और वहां उन्होंने कोरोना के तीन टीकों के विकास प्रक्रिया का जायजा लिया था। मतलब उन्होंने जो कुछ भी कहा है, नाप-तौल कर कहा है। उन्होंने शिक्षण संस्थाओं से जहां शिक्षण की नवोन्मेषी पद्धतियों को अपनाने का आग्रह किया, पूर्व छात्रों को भी खुद से जोड़ने और इसके लिए सकारात्मक मंच तैयार करने की बात कही। यही नहीं, उन्होंने पूर्व छात्रों से भी अपील की कि वे अपने संस्थानों की यथासंभव मदद करें। उन्हें आगे बढ़ाने में अपना योगदान करें।
प्रधानमंत्री भारतीय संस्कृति और जीवन पद्धति के पुराने सूत्रों को नवीनता प्रदान कर रहे हैं। उन्होंने गुरु नानक देव जी की जयंती पर सिख समुदाय को बधाई ही नहीं दी बल्कि उनकी प्रेरणा से शुरू की गई लंगर परंपरा को उल्लेखनीय समाजसेवा करार दिया है। करतारपुर साहब कॉरिडोर के पिछले साल खुलने की अगर चर्चा की तो देश के कई संग्रहालयों और पुस्तकालयों के डिजिटलीकरण प्रयासों की सराहना भी की। जिन तीन कृषि कानूनों पर किसानों का आंदोलन चल रहा है। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान दिल्ली बार्डर पर आंदोलित हैं, किसान जिन्हें बदलने की मांग कर रहे हैं, उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों को नए अधिकार और नए अवसर प्रदान करने वाला बताया है।
‘मन की बात’ कार्यक्रम में उन्होंने कहा है कि नए कृषि कानूनों से भारत में खेती और उससे संबद्ध चीजों के साथ नए आयाम जुड़ रहे हैं। हालिया कृषि सुधारों ने किसानों के लिए नई संभावनाओं के द्वार खोले हैं। किसानों की वर्षों से लंबित मांगों को पूरा करने का अपना वायदा सभी राजनीतिक दलों ने किया था लेकिन वे पूरी नहीं हो सकीं। संसद ने काफी विचार-विमर्श के बाद कृषि सुधारों को कानूनी स्वरूप दिया। इन सुधारों से न सिर्फ किसानों के अनेक बंधन समाप्त हुए हैं, बल्कि उन्हें नए अधिकार और अवसर भी मिले हैं। इस कार्यक्रम के जरिए उन्होंने विपक्ष को तो आईना दिखाया ही, आंदोलित किसान नेताओं को भी यह बताने का प्रयास किया कि उन्होंने लगता है, कृषि कानूनों का ठीक से अध्ययन नहीं किया। तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ हजारों किसान सर्द रात सड़क पर बिताने के साथ राष्ट्रीय राजधानी के सिंघू और टिकरी बॉर्डर पर जमे हुए हैं। किसानों के आंदोलन के चलते कई सड़कें और दिल्ली आने वाले रास्ते बंद हैं जबकि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने किसानों से बुराड़ी मैदान में आकर प्रदर्शन करने की अपील की है और कहा कि वे जैसे ही निर्धारित स्थान पर जाएंगे, उसी समय केंद्र वार्ता को तैयार है। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नए कानूनों को किसान हित का बताना इतना संकेत तो है ही कि केंद्र सरकार कृषि कानूनों पर कोई समझौता नहीं करने जा रही है। कदाचित यह किसानों को बरगला रहे दलों के लिए किसी झटके से कम नहीं होगा।
कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने देशवासियों को दिल खुश करने वाली खुशखबरी भी दी है कि 1913 में वाराणसी के एक मंदिर से चुराई गई देवी अन्नपूर्णा की प्राचीन प्रतिमा को कनाडा से भारत वापस लाया जा रहा है। प्रधानमंत्री ने माता अन्नपूर्णा की प्रतिमा को लौटाने के लिए कनाडा की सरकार का आभार व्यक्त करते हुए कहा है कि माता अन्नपूर्णा का काशी से बहुत ही विशेष संबंध है। अब उनकी प्रतिमा का वापस आना हम सभी के लिए सुखद है। आपदा में संस्कृति बड़े काम आती है, इससे निपटने में अहम भूमिका निभाती है। तकनीक के माध्यम से भी संस्कृति, एक, भावनात्मक ऊर्जा की तरह काम करती है।
कोरोना काल को उन्होंने सकारात्मक नजरिए से देखने के लिए कहा है। साथ ही इस बात का भी जिक्र करना वे नहीं भूले कि इस विषम कोरोनाकाल में ढेर सारे रचनात्मक कार्य भी हुए हैं। भारतीय संस्कृति और सांस्कृतिक धरोहरों को संजाने और उसे व्यवस्थित रूप से दुनिया के समक्ष लाने का भी काम हुआ है। कुछ दिन पूर्व ही विश्व धरोहर सप्ताह मनाया गया है। यह संस्कृति प्रेमियों के लिए पुराने समय में वापस जाने, उनके इतिहास के अहम पड़ावों का पता लगाने का एक शानदार अवसर है। नॉर्वे के स्लावबर्ड द्वीप में आर्कटिक वर्ल्ड आर्काइव परियोजना में बहुमूल्य धरोहरों का विवरण इस प्रकार से रखा गया है कि किसी भी प्रकार के प्राकृतिक या मानव निर्मित आपदाओं से प्रभावित न हो सकें। भारत की संस्कृति और शास्त्र, हमेशा से ही पूरी दुनिया के लिए आकर्षण के केंद्र रहे हैं। कई लोग तो, इनकी खोज में भारत आए और हमेशा के लिए यहीं के होकर रह गए तो कई लोग वापस अपने देश जाकर, इस संस्कृति के संवाहक बन गए। उन्होंने ब्राजील के जॉनस मैसेती के बारे में जानकारी साझा करते हुए कहा कि जॉनस को ‘विश्वनाथ’ के नाम से भी जाना जाता है। वह ब्राजील में लोगों को वेदांत और गीता सिखाते हैं। वे विश्वविद्या नाम की एक संस्था चलाते हैं जो पेट्रोपोलिस के पहाड़ों में स्थित है। नवनिर्वाचित सांसद डॉ. गौरव शर्मा द्वारा संस्कृत भाषा में शपथ लेने पर उन्होंने गौरव शर्मा को बधाई भी दी।
आत्मनिर्भर भारत योजना के क्रम में उन्होंने महर्षि अरबिंदो को याद किया। उन्होंने खुद की क्षमता पर भरोसा करने की बात कही। अरबिंदो ने विदेशों से सीखने का विरोध नहीं किया। यही आत्मनिर्भर भारत की वोकल फॉर लोकल भावना है। वे कहते थे कि राष्ट्र की शिक्षा स्टूडेंट के दिल-दिमाग की ट्रेनिंग होनी चाहिए। उन्होंने शिक्षा की जो बात तब कही थी, वह आज हम नई शिक्षा नीति के माध्यम से कर रहे हैं। प्रधानमंत्री यूं तो हर माह अपने मन की बात कहते हैं लेकिन इसबार उन्होंने जो कुछ कहा है, उसके अपने गहरे निहितार्थ हैं।
(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)
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