कोलकाता। बिहार में अल्पसंख्यक वोट काटकर पांच सीटों पर जीत दर्ज करने वाली ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) राज्य में 94 सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी। दिलचस्प बात यह है कि पश्चिम बंगाल में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी का अभी तक उपस्थिति भी दर्ज नहीं की है । महज चार से पांच महीने में विधानसभा का चुनाव होना है। इस बारे में पूछने पर एआईएमआईएम के राज्य संयोजक इमरान सोलंकी ने कहा कि जल्द ही ओवैसी पश्चिम बंगाल में औपचारिक तौर पर पार्टी को लॉन्च करेंगे। वह हैदराबाद जाकर असदुद्दीन ओवैसी समेत पार्टी के अन्य केंद्रीय नेताओं से मिल चुके हैं।
एआईएमआईएम के सूत्र ने बताया कि उनकी पार्टी ने राज्य में कम से कम 94 सीटों पर चुनाव लड़ने का मन बनाया है। इसके लिए उम्मीदवारों की सूची भी मिल रही है। हालांकि सोलंकी ने सीटों की संख्या तो नहीं बताया लेकिन इस बात की पुष्टि की कि राज्य के ज्यादातर जिलों में पार्टी नेताओं की पहचान की गई है। महत्वपूर्ण बात है कि एआईएमआईएम को बिहार में जिन पांच सीटों पर जीत मिली है उनमें से चार पश्चिम बंगाल के मुस्लिम बहुल इलाकों से सटे पूर्णिया और किशनगंज जिले में हैं। इसीलिए ओवैसी की नजर मुस्लिम बहुल त्रिकोण पर है। वह उत्तर और मध्य बंगाल के उत्तर दिनाजपुर, मालदा, मुर्शिदाबाद और बीरभूम जिले में मूल रूप से पैठ लगाने की योजना बना रहे हैं।
पार्टी के एक नेता ने बताया कि 2014 से ही पश्चिम बंगाल में अपनी जड़ें जमाने की शुरुआत ओवैसी की पार्टी ने कर दी थी। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मुर्शिदाबाद में मुस्लिम आबादी 66.27 फीसदी है। इसके अलावा मालदा, उत्तर दिनाजपुर और बीरभूम की आबादी में मुसलमान क्रमशः 51.27 फ़ीसदी, 49.92 फ़ीसदी और 37.06 फ़ीसदी हैं। राज्य की 294 विधानसभा सीटों में से 54 सीटें इन चार जिलों में हैं। ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस इन सभी सीटों को जीतने का लक्ष्य लेकर चल रही है। इसके अलावा उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना और हावड़ा जिले में भी कई क्षेत्र मुस्लिम आबादी वाले हैं जहां ओवैसी की नजर है। ममता बनर्जी को पहले से ही इस बात का आभास हो गया था इसलिए 2019 के लोकसभा चुनाव में ही ममता ने ओवैसी को बाहरी और भाजपा की बी टीम करार दिया था। लेकिन बिहार चुनाव में पांच सीटें जीतने के बाद ओवैसी ने ममता बनर्जी से हाथ मिलाने की पेशकश की थी।
हालांकि तृणमूल ने इसे बहुत अधिक महत्व नहीं दिया है। आंकड़ों पर गौर करें तो ओवैसी की पार्टी भले ही बंगाल में सीटें जीते या हारे लेकिन अगर चुनाव लड़ती है तो इससे ममता बनर्जी के वोट बैंक पर व्यापक असर पड़ेगा और इसका फायदा भाजपा को मिलेगा। दरअसल अल्पसंख्यक वोट बंगाल में अधिकतर क्षेत्रों में तृणमूल कांग्रेस तथा माकपा और कांग्रेस के बीच बंटा हुआ है। अधिक संख्या में अल्पसंख्यक समुदाय तृणमूल कांग्रेस को ही वोट करता है लेकिन अल्पसंख्यक वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा माकपा और कांग्रेस को भी मिलता है। ऐसे में अगर ओवैसी की एंट्री होती है तो अल्पसंख्यक वोट त्रिकोणीय तौर पर बंट जाएगा जिसका तात्कालिक लाभ भाजपा को मिलेगा। इसीलिए यह तय है कि अगर बंगाल में ओवैसी की पार्टी अधिक सीटों पर चुनाव लड़ती है तो इससे ममता बनर्जी की पार्टी की चुनावी कामयाबी सीधे तौर पर प्रभावित होगी। (एजेंसी, हि.स.)
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved