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कोरोना वैक्सीन से फायदे की एक सीमा, संक्रमण से मौतों पर तत्काल रोक की उम्मीद नहीं

November 29, 2020

ऑस्ट्रेलिया के स्वास्थ्य मंत्री ग्रेग हंट ने हाल ही में कहा है कि सरकार ने आगामी मार्च से कोविड-19 की वैक्सीन के वितरण की तैयारी कर ली है। अमेरिकी बायोटेक फर्म मॉडर्ना का कहना है कि उसकी वैक्सीन की प्रभावी क्षमता 95 फीसदी है। मॉडर्ना की घोषणा से पहले फाइजर ने अपनी वैक्सीन की 90 प्रतिशत और रूस की स्पुतनिक वी वैक्सीन की प्रभावी क्षमता 92 फीसदी है, हालांकि इस वैक्सीन की प्रभावी क्षमता के दावे सीमित आधार पर किए गए हैं। अगले कुछ सप्ताहों और महीनों में दूसरी वैक्सीनों के ट्रायल के प्रारंभिक नतीजों के आने की उम्मीद है। एक प्रभावी वैक्सीन से कोविड-19 को नियंत्रित करने की संभावना दृढ़ हो जाने की उम्मीद है, लेकिन सब कुछ इतना आसान नहीं है। कोई भी वैक्सीन पूरी तरह उपयुक्त नहीं होगी और न ही इससे संक्रमण और मौतों पर तत्काल रोक लग जाने की उम्मीद की जा सकती है। फिर पहले चरण में जो वैक्सीनें आएंगी, उनकी भी अपनी सीमाएं हैं।

मुद्दा यह है कि किसी भी वैक्सीन के अच्छे या प्रभावी होने के क्या आधार हैं? हमें यह सोचने की भी जरूरत है कि एक व्यक्ति, रेगुलेटर और देश के तौर पर हम किसी वैक्सीन की कितनी कमियों को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं। लेकिन सुरक्षा सबसे जरूरी मुद्दा है। एक बड़ी संख्या में स्वस्थ लोगों को वैक्सीन दिए जाने की बात है। इसका मतलब यह है कि लाखों लोगों को टीका लगाने पर अगर कोई मामूली-सी भी कमी सामने आए, तो बड़ी संख्या में लोगों को उसका नुकसान झेलना पड़ेगा। वैक्सीन का इस्तेमाल बड़ी संख्या में लोग करेंगे। ऐसे में, कम लोगों पर छोटी अवधि के ट्रायल का नुकसान यह है कि इससे किसी खास वैक्सीन के मानव शरीर पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव के बारे में पता नहीं चल पाएगा। यह एक ऐसी समस्या है, जिसका सामना हमें देर-सवेर करना ही पड़ेगा। इससे बचने का एक ही उपाय है कि ट्रायल के दौरान बड़ी संख्या में लोगों को वैक्सीन दी जाए, फिर उसके प्रभाव का पता लगाने के लिए लंबा वक्त लगाया जाए, जिससे कि वैक्सीन से होने वाले संभावित नुकसान का पता स्पष्ट रूप से चल सके।

जाहिर है, हर दवा के साथ जोखिम जुड़ा हुआ होता है और व्यक्तिगत स्तर पर यह निर्णय लेना पड़ता है कि यह जोखिम उठाया जा सकता है या नहीं। हालांकि यह तर्क दिया जा सकता है कि कोविड-19 के भीषण खतरे की तुलना में वैक्सीन से जुड़े जोखिम शायद कम ही खतरनाक होंगे। लेकिन अमेरिकी तथा ऑस्ट्रेलियाई विनियामक प्राधिकरण के पास वैक्सीन की सुरक्षा से जुड़े व्यापक दिशा-निर्देश होने के बावजूद उन्होंने ऐसा कोई दिशा-निर्देश अभी तक जारी नहीं किया है कि कोरोना वायरस की वैक्सीन के तौर पर किस स्तर तक जोखिम उठाया जा सकता है। यही नहीं, इस मुद्दे पर सार्वजनिक बहस भी न के बराबर ही है।

आदर्श स्थिति तो यही है कि वैक्सीन लेने वाला हर व्यक्ति संक्रमण से सुरक्षित हो। लेकिन कोरोना वायरस की शुरुआती वैक्सीनों की प्रारंभिक रिपोर्टों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि वैक्सीन से फायदे की एक सीमा होगी। उदाहरण के लिए, ये वैक्सीन बीमारी की भीषणता को थोड़ा कम कर सकती हैं, या आबादी के एक छोटे-से हिस्से को ही वैक्सीन का लाभ मिल सकता है। अभी किसी भी वैक्सीन का ट्रायल इस स्तर पर नहीं हो रहा, जिससे इसका सुबूत मिले कि वैक्सीन के जरिये कोरोना से होने वाली मौत या दूसरी बीमारियों से ग्रस्त उम्रदराज लोगों में इसके संक्रमण को रोका जा सकता है। यानी इन वैक्सीनों से उम्रदराज लोगों तथा बीमारियों से ग्रस्त लोगों को सुरक्षा मिलने की कोई गारंटी नहीं है।

चूंकि सभी ट्रायलों में उम्रदराज और बीमार व्यक्तियों पर वैक्सीन का परीक्षण किया भी नहीं जा रहा, ऐसे में, कोई दावे के साथ यह नहीं कह सकता कि उन जरूरतमंद लोगों को वैक्सीन का लाभ मिलेगा ही। दूसरे शब्दों में कहें, तो वैक्सीन के क्लिनिकल ट्रायल का सैद्धांतिक रूप से भले लाभ हो, लेकिन वैक्सीन से उन समस्याओं का समाधान शायद न हो, जिनका सामना हम इन दिनों कर रहे हैं। यूएस फूड ऐंड एडमिनिस्ट्रेशन ने कहा था कि वह उन वैक्सीनों को मंजूरी देने के बारे में विचार कर रहा है, जो वैक्सीन का इस्तेमाल करने वाले कम से कम आधे लोगों में संक्रमण न होने दे या कोविड-19 की भीषणता कम करने में सफल हो। हालांकि ऑस्ट्रेलिया ने ऐसा कोई दिशा-निर्देश जारी नहीं किया है।

वैक्सीनों का रख-रखाव और उनका वितरण भी एक बड़ी समस्या है। फाइजर की वैक्सीन की ही बात करें, तो इसे एक निश्चित तापमान पर ही रखना पड़ेगा। ऐसे में, कम आय वाले देशों में, जहां स्वास्थ्य क्षेत्र का बुनियादी ढांचा जर्जर है, इस वैक्सीन का ज्यादा लाभ नहीं होने वाले। ऐसे में, अविकसित देशों के लिए दूसरी वैक्सीन ज्यादा उपयोगी साबित हो सकती है। हालांकि सैद्धांतिक तौर पर गरीब देशों में वैक्सीन की समय पर उपलब्धता की बात कही गई है, लेकिन वास्तव में ऐसा करने के लिए कोई कानूनी बाध्यता भी नहीं है। दरअसल वैक्सीन के मोर्चे पर ठोस कुछ न होने के कारण अभी कुछ और समय तक हमें मास्क और सामाजिक दूरी के पालन पर ही निर्भर रहना होगा।

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