भोपाल । इतिहास बहुत कुछ बोलता है। ऐतिहासिक इमारतों का आप जितनी बार अवलोकन करेंगे, वह उतनी बार आपको अपने वैभव के साथ नए विचारों से अवगत कराती हैं और आगे बढ़ने की प्रेरणा भी देती हैं। मध्यप्रदेश में इन दिनों भले ही पुरातत्व विभाग की हालत खराब हो, पर्याप्त बजट के अभाव के साथ नई भर्ती प्रक्रिया नहीं होने से संरक्षण के लिए आवश्यक मानव संसाधन न हो, लेकिन उसकी मदद करने के लिए अब यहां स्थानीय स्तर पर नगरीय निकाय आगे आ रहे हैं। शुरुआत में राजधानी भोपाल में जिस तरह से नगर निगम ने ”सदर मंजिल” को उसका ऐतिहासिक वैभव लौटाया है, वह अपने आप में अन्य निकायों के लिए जरूर मील का पत्थर साबित होगा।
दरअसल, राजधानी की ऐसी ऐतिहासिक इमारतों का संरक्षण भी अब नगर निगम करेगा, जिनका विवादों के कारण अब तक संरक्षण नहीं हो पा रहा था। इसके लिए शासकीय के साथ निजी इमारतों को संवारने का कार्य भी वह करेगा। कारण कि शहर में कई ऐसी ऐतिहासिक इमारतें हैं, जिन पर या तो कब्जे हैं या मालिकाना हक को लेकर कोर्ट में विवाद में चल रहा है। लिहाजा, देखरेख के अभाव में बेशकीमती इमारतें जर्जर होकर समाप्ति की ओर जा रही हैं।
इन बेशकीमती पुरातत्व महत्व की धरोहरों को लेकर हिन्दुस्थान समाचार से बातचीत में ननि के मुख्य कार्यपालन अधिकारी (सीईओ) आदित्य सिंह ने बताया कि स्मार्ट सिटी परियोजना के अंतर्गत सदर मंजिल के जीर्णोद्धार का कार्य लगभग पूरा हो चुका है। इसके अतिरिक्त हम पुरातत्व विभाग, टूरिज्म और सभी अन्य विभागों के साथ लगातार चर्चा कर रहे हैं, जिससे अन्य पुरातत्व परिसरों पर कार्य के लिए हमें अनुमति मिले। साथ ही निजी स्तर पर जहां पुरातत्व महत्व की इमारत है, वहां रह रहे सभी लोगों से हम बातचीत करने जा रहे हैं, ताकि इमारत का सही ढंग से संरक्षण संभव हो। भोपाल में हमने अभी अनेक गेट एवं भवन चिन्हित किए हैं, अगले चरण में इन्हीं पर फोकस है। पुरातत्व विभाग से चर्चा करके उनकी अनुमति मिलते ही हम अपना कार्य शुरू कर देंगे।
राजस्थान के विशेष कारीगरों ने दिया है इसे नया रूप
यहां सदर मंजिल का पूरा पुनरुद्धार कार्य राजस्थान के कारीगरों द्वारा कराया गया है, उन्होंने अपने काम को इतनी बारीकी से अंजाम दिया है, जिससे पूरी इमारत अपने पुराने भव्य रूप में लौट आई है, लगता है कि इसका निर्माण अभी कल ही की बात है। इसके पुनर्निमाण में मैथी, सरखी, जूट, चूना, उड़द की दाल, गुड़ और मार्बल पाउडर का इस्तमाल हुआ है। पूर्व में भी इमारत इन्हीं सब के मिश्रण से बनी थी। राशि के स्तर पर 10 करोड़ रुपये से सदर मंजिल का रिनोवेशन कराया गया है। 5 वॉट से लेकर 75 वॉट तक के करीब 200 बल्ब यहां लगाए गए हैं।
आनेवाले समय में जल्द इसका उपयोग कंवेंशन सेंटर अथवा होटल की तरह किया जाएगा। इसके एक हिस्से में भोपाल पर केंद्रित म्यूजियम बनाने की योजना बनाई गई है। जिसमें कि भोपाल के कल से लेकर वर्तमान तक की यात्रा से परिचित कराया जाएगा। नगर निगम की ओर से जल्द इसके लिए ऑफर आमंत्रित किए जाएंगे।
इसलिए खास है ये इमारत
स्वतंत्र भारत में वर्ष 1953 में देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा के मुख्यमंत्रित्व काल में इस दरबार हॉल में भोपाल शहर की नगर पालिका स्थापित की गई थी। यहाँ की वास्तुकला देखने लायक़ है। सदर मंजिल की पच्चीकारी दिल्ली के लाल क़िला स्थित दीवाने ख़ास के अनुरूप है। सदर मंजिल का आर्किटेक्चर पश्चिमी और एशियाई शैली की वास्तुकला के संयोजन का बेहतरीन उदाहरण है। समय के साथ इसके कुछ हिस्से पूरी तरह समाप्त हो गए थे, इन्हें कुछ पुराने फोटोग्राफ्स के आधार पर फिर से बनाया गया है। अनेक ब्रिटिश वायसराय और देश की स्वतंत्रता के बाद महत्त्वपूर्ण राज नेताओं का यहाँ आगमन होता रहा है।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 1898 ई. में सदर मंजिल की शानदार इमारत का निर्माण तत्कालीन नवाब शाहजहां बेगम द्वारा कराया गया था। भोपाल स्थित अनोखा सदर मंजिल शामला की पहाडियों पर 200 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है। सदर मंजिल जिस स्थान पर बनी है, उसे प्रागैतिहासिक काल से संबंधित माना जाता है। वर्ष 1901 ई. में नवाब शाहजहां बेगम की मृत्यु के बाद उनकी एकमात्र पुत्री नवाब सुल्तानजहां बेगम जब नवाब भोपाल बनीं, तब उन्होंने सदर मंजिल को रियासत के दरबार हॉल के रूप में परिवर्तित कर दिया था। इस मंजिल में भारत के विभिन्न राज्यों की जनजातीय संस्कृति की झलक दिखाई देती थी जोकि अब नए कलेबर में और ही भव्य होने जा रही है।
अकेले भोपाल शहर में ही 200 से अधिक हैं ऐतिहासिक धरोहरें
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल शहर में अभी तक सिर्फ नौ ऐतिहासिक धरोहरें संरक्षित हैं, जबकि यदि इनकी संख्या गिनना शुरू करें तो यह पुरानी धरोहरों की संख्या अकेले शहर में ही 200 को पार कर जाएगी। शौकत महल और जीनत महल इस्लामिक, अरेबियन और भारतीय संस्कृति की अद्भुत नक्काशी और कलाकृति पूर्ण इमारते हैं लेकिन अभी इन पर निजी संपत्ति का दावा है इन महलों का निर्माण भोपाल की पहली बेगम नवाब कुदसिया से करवाया था। इसी प्रकार की अन्य कई पुरानी इमारतें और मुख्य धरोहर हें जिन पर लोगों ने अपना कब्जा जमा रखा है। अब इन सभी को उनके पुराने स्वरूप में लाने के लिए सरकार की प्रबल इच्छा शक्ति चाहिए, क्योंकि इसमें बहुत बड़ी राशि खर्च होगी। (हि.स.)
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