वॉशिंगटन। हिंद महासागर पर राज करने के चीनी ड्रैगन के मंसूबे को अमेरिका ने करारा झटका दिया है। अमेरिकी नौसेना के प्रमुख केनेथ ब्रेथवेट ने कहा है कि वह हिंद महासागर में यूएस नेवी का एक नया कमांड बनाना चाहते हैं। इस कमांड के पास हिंद महासागर के साथ-साथ उससे लगे प्रशांत महासागर के इलाके में निगरानी का जिम्मा होगा। केनेथ ब्रेथवेट ने यह ऐलान ऐसे समय पर किया है जब भारत और अमेरिका की नौसेनाएं जापान तथा ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर अंडमान के पास हिंद महासागर में मालाबार युद्धाभ्यास कर रही हैं।
केनेथ ने कहा, ‘हम जापान के 7वें बेड़े पर केवल भरोसा नहीं कर सकते हैं। हमें अपने अन्य सहयोगियों और भागीदारों जैसे सिंगापुर और भारत को देखना होगा। यही नहीं अगर बहुत जरूरी हुआ तो वास्तव में एक बेड़ा रखना होगा।’ उन्होंने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नेवी का यह नया कमांड हमें एक अभेद्य प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करेगा, इसलिए हम एक ‘फर्स्ट फ्लीट बनाने जा रहे हैं।
दरअसल, चीन की बढ़ती भूराजनीतिक महत्वाकांक्षा से निपटने के लिए अमेरिकी सेना न केवल भारत के साथ बल्कि इस इलाके के अन्य देशों जैसे सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया के साथ अपने संबंधों को मजबूत कर रही है। इससे पहले अमेरिका की फर्स्ट फ्लीट वर्ष 1947 से 1973 तक पश्चिमी प्रशांत महासागर में अमेरिका के नौसैनिक ऑपरेशन का काम देखती थी। करीब 50 साल पहले अमेरिका ने फर्स्ट फ्लीट को भंग कर दिया था और उसकी जगह पर थर्ड फ्लीट का गठन किया था।
अभी तक जापान में स्थित अमेरिका के सातवें बेड़े के पास हिंद महासागर को देखने की जिम्मेदारी है। यही वही सातवां बेड़ा है जो वर्ष 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान भारत के खिलाफ रवाना हुआ था। यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि अमेरिकी नौसेना ने कब से इस बेडे़ को बनाने के लिए योजना बनाई है लेकिन बताया जा रहा है कि हिंद महासागर में ‘पहला बेड़ा’ तैनात करने के लिए पिछले कई महीने से योजना चल रही है। इस संबंध में केनेथ ने पूर्व रक्षा मंत्री मार्क से एस्पर से भी वार्ता की थी।
द ड्राइव की रिपोर्ट के मुताबिक अभी तक यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि इस पहले बेड़े का मुख्यालय कहां पर होगा। अमेरिकी नौसेना सिंगापुर के चांगी नेवल बेस पर वर्ष 1990 के दशक से मौजूद है। इस बेस पर अमेरिका के सातवें बेडे़ के जंगी जहाज मौजूद हैं। ऐसी संभावना जताई जा रही है कि अमेरिका के पहले बेड़े का गठन बहुत तेजी से सिंगापुर में किया जा सकता है। इसके अलावा यह भी कहा जा रहा है कि शुरू में यह पहला बेड़ा सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया और भारत के बेहद करीब स्थित डियागोगार्सिया के बीच गश्त लगाता रहे। इससे अमेरिकी नौसेना की ताकत हिंद महासागर में काफी बढ़ जाएगी।
हिंद महासागर में पैर पसार रही है चीनी नौसेना
चीन की नौसेना हिंद महासागर में बहुत तेजी से अपने पैर पसार रही है। इस साल मई महीने में ली गई सैटलाइट तस्वीरों से पता चलता है कि अफ्रीका के जिबूती स्थित चीनी नेवल बेस को आधुनिक बनाया गया है। पहले लॉजिस्टिक सपोर्ट के बनाए इस ठिकाने को अब नेवल बेस में तब्दील कर दिया गया है। इस अड्डे पर चीन का विमानवाहक पोत भी खड़ा हो सकता है। चीन मालदीव में भी एक कृत्रिम द्वीप को विकसित करने में लगा हुआ है। कई लोगों का दावा है कि चीन हिंद महासागर में भारत के प्रभाव को कम करने के लिए इस द्वीप को विकसित कर रहा है।
चीन के पाकिस्तान स्थित ग्वादर पोर्ट पर नेवल बेस बनाने की भी खबरें हैं। चीन बांग्लादेश के कॉक्स बाजार में भी एक नौसैनिक ठिकाना विकसित करने में मदद कर रहा है। जिबूती स्थित चीन का नेवल बेस हिंद महासागर में ड्रैगन की महत्वाकांक्षा को दर्शाता है। यह नौसैनिक अड्डा करीब 25000 वर्ग फुट के इलाके में पसरा है। यह अड्डा अपने आप में एक चीनी किले की तरह से है। इसमें करीब 10 हजार चीनी सैनिक रह सकते हैं। विश्लेषकों का मानना है कि इस अड्डे के जरिए चीन इलाके में खुफिया निगरानी करता है। चारों तरफ निगरानी के लिए वॉच टॉवर बनाए गए हैं और सुरक्षा के भारी इंतजाम किए गए हैं।
भारत के लिए बड़ा खतरा है चीनी नेवल बेस
करीब एक दशक पहले चीनी नौसेना ने समुद्री लुटेरों से बचाव के नाम पर हिंद महासागर में कदम रखा था। भारतीय विश्लेषकों का मानना है कि पहले ऐसा विचार था कि चीन अपने हितों और व्यापार की सुरक्षा के लिए ऐसा कर रहा है लेकिन राय बदल रही है। कई विश्लेषकों का मानना है कि चीन अब खुद को हिंद महासागर की एक बड़ी शक्ति के रूप में प्रॉजेक्ट करने में लगा हुआ है। चीन लगातार हिंद महासागर में पनडुब्बी और युद्धपोत भेज रहा है। पिछले साल सितंबर महीने में एक चीनी जहाज भारतीय समुद्री इलाके में घुस आया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को पश्चिमी प्रशांत महासागर में अपनी पहुंच बढ़ानी चाहिए जहां पर चीन का दबदबा है। इससे ड्रैगन को अपने कदम खींचने के लिए मजबूर होना पडे़गा।
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