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नरक के भय से मुक्ति दिलाती है नरक चतुर्दशी

November 13, 2020

– श्वेता गोयल

दीवाली के पांच महापर्वों की श्रृंखला में दूसरा पर्व है ‘नरक चतुर्दशी’, जो कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। ‘रूप चतुर्दशी’, ‘काल चतुर्दशी’ ‘नरक चौदस’, ‘छोटी दीपावली’ इत्यादि विभिन्न नामों से जाना जाने वाला यह पर्व हालांकि सदैव दीवाली से एकदिन पहले ही मनाया जाता रहा है किन्तु इस वर्ष चतुर्दशी तथा अमावस्या एक ही दिन होने के कारण यह पर्व दीवाली के साथ उसी दिन मनाया जा रहा है।

जैसा इस पर्व के नाम से आभास होता है कि इसका संबंध भी किसी न किसी रूप में नरक अथवा मृत्यु से है। यम को मृत्यु का देवता और संयम का अधिष्ठाता देव माना गया है। इसीलिए इस दिन यमराज और धर्मराज चित्रगुप्त का पूजन करते हुए उनसे प्रार्थना की जाती है कि उनकी दयादृष्टि से हमें नरक के भय से मुक्ति मिले। इस पर्व को लेकर मान्यता यही है कि इस अवसर पर यमराज का पूजन करने और व्रत रखने से नरक की प्राप्ति नहीं होती।

यह पर्व मनाए जाने के संबंध में एक मान्यता नरकासुर नामक अधर्मी राक्षस के वध से भी जुड़ी है। द्वापर युग में नरकासुर के आतंक से देवताओं के अलावा धरती पर भी तमाम सम्राट थर-थर कांपते थे। ताकत के नशे में चूर नरकासुर अपनी शक्तियों का दुरूपयोग करते हुए स्त्रियों पर अत्याचार करता था। उसने 16000 मानव, देव एवं गंधर्व कन्याओं को बंदी बना रखा था। उससे मुक्ति दिलाने के लिए तमाम देवों और ऋषि-मुनियों ने योगेश्वर श्रीकृष्ण से अनुरोध किया। उनके अनुरोध को स्वीकार करते हुए श्रीकृष्ण ने सत्यभामा के सहयोग से नरकासुर का संहार कर देवताओं के साथ-साथ समस्त पृथ्वी लोकवासियों को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई और उसके बंदीगृह से 16000 कन्याओं को मुक्त कराकर उन्हें यथोचित सम्मान दिया। नरकासुर से मुक्ति पाने की खुशी में सभी लोकों में खुशियां मनाते हुए यह पर्व मनाया गया। माना जाता है कि तभी से नरक चतुर्दशी पर्व मनाए जाने की परम्परा शुरू हुई।

चैत्र मास की पूर्णिमा को हनुमान जयंती मनाई जाती है और दीवाली से एकदिन पहले ‘नरक चतुर्दशी’ वाले दिन भी ‘हनुमान जयंती’ मनाई जाती है। मान्यता है कि रामभक्त हनुमान का जन्म इसी दिन हुआ था। वामन अवतार में भगवान विष्णु ने राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगते हुए इसी दिन तीनों लोकों सहित बलि के शरीर को भी अपने तीन पगों में नाप लिया था। धनतेरस, नरक चतुर्दशी तथा दीवाली के दिन दीपक जलाए जाने के संबंध में एक मान्यता यह भी है कि इन दिनों में वामन भगवान ने अपने तीन पगों में सम्पूर्ण पृथ्वी, पाताल लोक, ब्रह्माण्ड व महादानवीर दैत्यराज बलि के शरीर को नाप लिया था और इन तीन पगों की महत्ता के कारण ही लोग यम यातना से मुक्ति पाने के उद्देश्य से तीन दिनों तक दीपक जलाते हैं तथा सुख, समृद्धि एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति हेतु मां लक्ष्मी का पूजन करते हैं। यह भी कहा जाता है कि बलि की दानवीरता से प्रभावित होकर भगवान विष्णु ने बाद में पाताल लोक का शासन बलि को ही सौंपते हुए उसे आशीर्वाद दिया कि उसकी याद में पृथ्वीवासी लगातार तीन दिनों तक हर वर्ष उनके लिए दीपदान करेंगे।

नरक चतुर्दशी का संबंध स्वच्छता से भी है। इस दिन लोग अपने घरों का कूड़ा-कचरा बाहर निकालते हैं। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि इस दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व तेल एवं उबटन लगाकर स्नान करने से पुण्य मिलता है। नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करना शुभ माना गया है और सायंकाल के समय यम के लिए दीपदान किया जाता है।

आशय यही है कि संयम-नियम से रहने वालों को मृत्यु से जरा भी भयभीत नहीं होना चाहिए। इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान करने का आशय आलस्य का त्याग करने से है और इसका सीधा संदेश यही है कि संयम और नियम से रहने से उनका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा और उनकी अपनी साधना ही उनकी रक्षा करेगी।

(लेखिका शिक्षिका हैं।)

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