इंदौर। कोरोना के चलते आयोग से लेकर दलों को भी यह अंदेशा था कि शायद मतदान कम होगा, लेकिन 28 सीटों पर ही 70 प्रतिशत से ज्यादा औसत मतदान हुआ है, बल्कि कई सीटों पर तो अब तक के रिकॉर्ड टूटे और 80 से 84 प्रतिशत तक बम्पर मतदान हुआ है। हालांकि वर्तमान शिवराज सरकार को अधिक संकट नहीं है, क्योंकि भाजपा को 8 सीटें ही बहुमत के लिए चाहिए, लेकिन राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इस बार ग्वालियर-चम्बल संभाग में बसपा ने जबरदस्त सेंधमारी की है, जो कि सिंधिया का गढ़ माना जाता है। इसके चलते कांग्रेस और भाजपा के समीकरण बिगड़ सकते हैं और सीटों की संख्या में भी फेरबदल संभव है। बसपा एक से अधिक सीटें भी हासिल कर सकती है। हालांकि 15-16 सीटें भाजपा को आने की उम्मीद उसके नेता ही आंक रहे हैं। वहीं कांग्रेस 20 सीटों को जीतने का दावा कर रही है।
इसमें कोई शक नहीं कि मध्यप्रदेश विधानसभा की कुल 230 सीटों से ज्यादा रोमांचकारी चुनाव 28 सीटों पर हुए हैं। ये चुनाव परिणाम कांग्रेस-भाजपा के कई दिग्गजों की राजनीति भी 10 नवम्बर के बाद तय करेंगे। इसमें मुख्य रूप से कांग्रेस से भाजपा में आए चुनाव लड़ रहे पूर्व विधायकों की किस्मत तो तय होगी ही, वहीं सबसे बड़ा दांव ज्योतिरादित्य सिंधिया ने लगाया है, जो अपने राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी चुनौती का सामना कर रहे हैं। भाजपा ने उनके साथ आए सभी पूर्व विधायकों को टिकट दी है और दो को तो बिना विधायक बने मंत्री भी बना दिया था। ग्वालियर-चम्बल संभाग की 16 सीटें सिंधिया के प्रभाव क्षेत्र की है, जहां पर उन्हीं के सारे समर्थकों को चुनाव लड़ाया गया। लेकिन जानकारों का कहना है कि मतदान के बाद जो समीकरण सामने आ रहे हैं उसमें बसपा द्वारा वोट बैंक में सेंध लगाई गई है। प्रचार-प्रसार में भले ही बसपा नजर ना आए, लेकिन जातिगत समीकरणों के चलते बसपा कांग्रेस और भाजपा का खेल बिगाड़ सकती है। कोरी, वाल्मीकि, खटीक, जाटव, बलाई समाज को साधने का काम बसपा ने किया है। ग्वालियर, चम्बल संभाग में जातिगत समीकरण बड़े महत्वपूर्ण रहते हैं, जो हर चुनाव को प्रभावित भी करते हैं। यही कारण है कि जबराजोरा से लेकर कई सीटें त्रिकोणीय मुकाबले में फंस गई और डबरा से सिंधिया की कट्टर समर्थक इमरती देवी की भी हार-जीत कम मतों से होने की संभावना व्यक्त की जा रही है। सांवेर उपचुनाव में हालांकि भाजपा ने 4-5 दिनों में तगड़ी घेराबंदी की और संघ ने भी मैदान संभाला, जिसके चलते भाजपा प्रत्याशी की जीत पार्टी तय मान रही है। हालांकि पूर्व की तरह 25-30 हजार की बजाय अब 5-10 हजार से हार-जीत होने की बात की जा रही है, दूसरी तरफ कांग्रेस प्रत्याशी भी अधिक मतदान को अपने पक्ष में मान रहे हैं। दरअसल सांवेर सहित सभी सीटों पर हुए ज्यादा मतदान में दलों और प्रत्याशियों को दुविधा में डाल दिया है। वे यह समझ नहीं पा रहे हैं कि ज्यादा मतदान विरोध यानी गुस्से का है या समर्थन का, क्योंकि भारत के मतदाता जीताने के बजाय हराने वाला वोट डालने के लिए भी मशहूर रहे हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि 14 से 15 सीटें तो भाजपा जीत सकती है। वहीं बसपा भी 1 से अधिक सीटों पर विजय हासिल कर सकती है और कांग्रेस 8 से 10 सीटें तो आसानी से ले आएगी। हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और उनकी टीम 20 सीटों पर जीत के दावे कर रही है और उनका मानना है कि जनता ने चुनाव लड़ा, जिसके परिणाम स्वरूप कोरोना के बावजूद जबरदस्त मतदान हुआ और नोट का जवाब जनता ने वोट से दिया है, जिसका खुलासा 10 नवम्बर को हो भी जाएगा। वैसे तो भाजपा सरकार को अधिक खतरा नहीं है, क्योंकि 107 सीटें अभी उसके पास है और 8 सीटों की ही जरूरत है, जबकि कांग्रेस को बहुमत के लिए सभी 28 सीटें जीतना पड़ेगी, जो कि असंभव है।
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