– डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
इसे शुभ संकेत माना जाना चाहिए कि गूगल गुरु के जमाने में भी लोग किताबों को पढने-पढ़ाने में रुचि रखते हैं। दूसरी यह कि कोरोना ने आपसी जुड़ाव का नया प्लेटफार्म तैयार कर दिया है और यह प्लेटफार्म वर्चुअल दुनिया का है। इस वर्चुअल प्लेटफार्म से भी लोग बड़ी सक्रियता से जुड़ने लगे हैं। इसका जीता-जागता उदाहरण है, पिछले दिनों आयोजित दिल्ली के वार्षिक पुस्तक मेले के 26 वें संस्करण का।
आयोजकों का दावा है कि इस वर्चुअल प्लेटफार्म से 103 देशों के दो लाख से भी ज्यादा अध्येताओं ने हिस्सा लिया। फ्रैंकफर्ट पुस्तक मेले से भी अधिक लोगों ने इस मेले में वर्चुअल रूप से हिस्सा लेते हुए न केवल पुस्तक मेले की विभिन्न गतिविधियों से जुड़े अपितु दुनिया भर के पुस्तक प्रेमियों ने जमकर खरीदारी की। पुस्तक मेले की सफलता को इससे भी समझा जा सकता है कि प्रतिभागियों की मांग को देखते हुए मेले की अवधि एक दिन यानी एक नवंबर की आधी रात तक बढ़ाने का निर्णय करना पड़ा। वर्चुअल मेले में 100 से ज्यादा प्रतिभागियों ने डिजिटल प्लेटफार्म पर 9 हजार से अधिक पुस्तकें प्रकाशित कर जारी की। जाने-माने लेखकों से वर्चुअल प्लेटफार्म पर रुबरु होने का मौका मिला।
दरअसल कोरोना ने एक ओर जहां काफी कुछ हिलाकर रख दिया है वहीं लोगों के सामने नए अवसर भी प्रस्तुत किए हैं। एकबार तो लगने लगा था कि अब मेला-प्रदर्शनियों का दौर खत्म होने जा रहा है क्योंकि लंबे लॉकडाउन और उसके बाद युरोप में कोरोना के दूसरे दौर और हमारे देश व अमेरिका आदि में नित नए कोरोना संक्रमितों के मिलने से हालात अभी भी गंभीर बने हुए हैं। लगभग दस माह के लंबे समय के बावजूद कोरोना की काली छाया पूरी दुनिया पर है। कोरोना ने सबकुछ हिलाकर रख दिया है। सामाजिकता, मेल-मिलाप, संपर्कों के तरीके, खानपान, यायावरी और तो और सामाजिक धार्मिक पारिवारिक गतिविधियों को भी थाम दिया है। ऐसे में सामाजिक- मनोवैज्ञानिक अध्येताओं के सामने नए सामाजिक ताने-बाने की संरचना का गुरुतर दायित्व और आ गया है।
खैर इसपर चर्चा फिर कभी। अभी तो यह कि दुनिया के लोगों का आज भी पुस्तकों के प्रति प्रेम और रुचि वास्तव में शुभ संकेत माना जाना चाहिए। जिस तरह से गूगल गुरु ने सबकुछ शार्टकट करना शुरू कर दिया है वह अपने आपमें गंभीर चिंता का विषय है। गूगल गुरु से आप ऊपरी जानकारी तो ले सकते हैं पर उस जानकारी में कितनी सच्चाई है और कितनी समग्रता है, यह विचारणीय है। ऐसे में दिल्ली पुस्तक मेले की सफलता शुभ संकेत ही माना जाना चाहिए।
दरअसल आज भी पुस्तकप्रेमियों की कोई कमी नहीं है। लोगों की पढ़ने-पढ़ाने की आदत है। खासबात यह कि लिखे हुए पर लोगों का विश्वास है। हमारे यहां तो पुस्तक को साक्षात मां सरस्वती का अवतार माना जाता है। पुस्तक को ईश्वरीय अवतार माना जाता है। आज की पीढ़ी की तो कहा नहीं जा सकता पर पुरानी पीढ़ी के लोग तो आज भी पुस्तक के पांव लग जाने पर उसे सिर के लगाने की परंपरा देखने को मिल जाएगी। अपवित्र स्थान पर पुस्तक को रखने तक की मनाही हमारे समाज में रहती आई है। पुस्तक को सिर पर रखकर यात्रा निकालना हमारी परंपरा में रहा है। टीवी चैनलों पर चौबीसों घंटों समाचारों के बावजूद लोग बेसब्री से सुबह के अखबार की प्रतीक्षा करते हैं। यह यही तो दर्शाता है कि लोगों का लिखे पर अधिक विश्वास है।
हालांकि अब डिजिटल दुनिया का दौर भी अधिक चल निकला है। डिजिटल लाइब्रेरी से लेकर डिजिटल एडिशन धड़ल्ले से आने लगे हैं। इसमें दो राय नहीं कि टीवी चैनलों की आडियो-विजुअल के बावजूद लोग प्रिंट मीडिया के डिजिटल प्लेटफार्म को अधिक विश्वसनीय मानते हैं। इससे डिजिटल मीडिया की भी अधिक जिम्मेदारी हो जाती है।
दिल्ली पुस्तक मेले की सफलता नई राह खोलने वाली है। एक तो किताबों के संसार के प्रति लोगों की उतनी ही रुचि होना, सक्रिय होना और भागीदारी से साफ हो जाता है कि लोग अच्छा पढ़ना चाहते हैं। इसके साथ ही वर्चुअल दुनिया कारोबार में जिस तेजी से भागीदार बन रही है और जिस तरह से वीसी, वेबिनार आदि ने अपनी जगह बनाई है और बना रहे हैं यह भविष्य का संकेत है। इसे समझना होगा। लोग पढ़ना चाहते हैं, सुनना चाहते हैं और यही दुनिया को संस्कारित और ज्ञान की दृष्टि से समृद्ध करने में सहायक हो सकेगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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