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    पाक में हिंदुओं की दुर्दशा पर यह कैसी चुप्‍पी ?

  • October 26, 2020

    – अनिल निगम

    पाकिस्तान में हिंदू बहू-बेटियां बेहद असुरक्षित हैं। मीडिया में ऐसी खबरें आती रही हैं। हाल ही में पाकिस्तान की संसद में भी यह बात स्वीकार की गयी है कि वहां हिंदुओं का जबरदस्ती धर्मांतरण कराया जा रहा है। हिंदू लड़कियों को धर्म बदलने और मुस्लिम युवकों से विवाह के लिए कई तरह के लालच दिए जाते हैं। सवाल यह है कि भारत सरकार के निर्णयों पर सवाल उठाने वाले और पाकिस्तान में सुशासन की दुहाई देने वाले भारतीय नेता इस मुद्दे पर चुप क्यों हैं? क्या उनका यह कर्तव्य नहीं कि वे इस मसले पर पाकिस्तान के खिलाफ राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आवाज बुलंद करें? क्या उनके लिए भारत और पाकिस्तान में धर्मनिरपेक्षता और शोषण के मायने अलग-अलग हैं?

    पाकिस्तान में हिंदू समुदाय की लड़कियों का अपहरण, बलात्कार और धर्म परिवर्तन के बाद मु‍स्लिम लड़के से निकाह बड़ी समस्या है। वहां के प्रधानमंत्री इमरान खान ने वर्ष 2018 में चुनाव के दौरान लोगों से वादा किया था कि अगर वे सत्ता में आते हैं तो हिंदू लड़कियों का जबरदस्ती धर्म परिवर्तन रोकने के हरसंभव प्रयास करेंगे। हालांकि इमरान खान का वादा पूरी तरह से झूठा साबित हुआ, यह बात पाकिस्तानी संसद की हाल की स्वीकारोक्ति से स्पष्ट हो चुकी है। पाक की संसदीय समिति ने माना कि सरकार धार्मिक अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करने में पूरी तरह विफल रही है। संसदीय समिति ने हाल ही में जबरिया धर्म परिवर्तन मामलों के संबंध में सिंध प्रांत के अनेक इलाकों का का दौरा किया था। समिति ने सीनेटर अनवारुल हक काकर की अध्यक्षता में उक्त क्षेत्र का दौरा किया और अपनी रिपोर्ट में कहा कि हिंदू लड़कियों का न केवल जबरन धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है बल्कि उनके साथ अनाचार की घटनाएं भी हो रही हैं।

    दरअसल, पाकिस्तान में हिंदू धर्म को मानने वालों की संख्या कुल जनसंख्या का 2 फीसदी है। पाकिस्तान में इन अल्पसंख्यक हिंदुओं के साथ अत्याचार की बात भारतीय मीडिया ही नहीं कह रहा है। वर्ष 2010 में पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट कहा था कि हिंदू लड़कियों का अपहरण कर उनके साथ बलात्कार किया जाता है और बाद में उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया जाता है। आयोग ने यह भी कहा था कि ऐसी घटनाएं सिंध प्रांत में ही नहीं बल्कि देश के अन्य भागों-थार, संघार, जैकोबाबाद आदि इलाकों में भी हो रही हैं।

    अत्याचार की बढ़ती घटनाओं के चलते पाकिस्तान में धर्मांतरण रोकने के लिए कानून बनाने की मांग की जाती रही है। वर्ष 2016 में सिंध विधानसभा में धर्म परिवर्तन पर रोक लगाने का बिल भी पास हुआ था लेकिन कट्टरपंथी संगठनों के विरोध के चलते उसे लागू नहीं किया जा सका। एक रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान में हर महीने लगभग दो दर्जन लड़कियों को अगवाकर उनका धर्मांतरण कराया जाता है। हालांकि वहां के कट्टरपंथी इस बात को स्वीकार नहीं करते। लेकिन पाकिस्तान का मानवाधिकार आयोग कट्टरपंथियों की दलील को झूठा बता रहा है जिसमें वे दावा करते हैं कि लड़कियां अपनी मर्जी से मुसलमान लड़कों से शादियां कर रही हैं और वे अपने परिवार में वापस नहीं लौटना चाहती हैं।

    सर्वविदित है कि भारत में मुसलमान सहित सभी अल्पसंख्यकों को अपने धर्म को मानने और पूजा-अर्चना की पूर्ण आजादी है। किसी भी धर्मानुयायी का जबरन धर्म परिर्वतन कराना गैरकानूनी है। अगर ऐसा कोई करता है तो कानून में कड़े दंड का प्रावधान किया गया है। यही नहीं भारतीय संविधान में सभी धर्म, जाति एवं समुदाय के लोगों को बिना भेदभाव के समान अधिकार प्रदान किए गए हैं।

    इसके बावजूद विभिन्‍न विपक्षी दल कट्टरपंथियों को मोहरा बनाकर अपनी सियासी रोटियां सेंकने से बाज नहीं आते। भारत में नागरिकता संशोधन विधेयक कानून, तीन तलाक कानून, धारा 370 जैसे मसलों पर भारत के मुस्लिम कट्टरपंथियों ने केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। अब मेरा सवाल ऐसे कट्टरपंथियों से है कि ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर कबतक चुप रहेंगे? मेरा उनसे आग्रह है कि पाकिस्‍तान में बहू-बेटियों के साथ हो रहे रोंगटे खड़े कर देने वाले अत्‍याचार के मुद्दे पर अपनी चुप्‍पी तोड़ें और वे न केवल पाकिस्तानी सरकार की आलोचना करें बल्कि उसके खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत सरकार के साथ सुर में सुर मिलाकर पाकिस्तान की करतूतों का पर्दाफाश करें।

    (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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