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ये पॉलिटिक्स है प्यारे

October 26, 2020


भाजपा-कांग्रेस कन्फ्यूज..कब क्या बोले?
प्रदेश में जिस तरह से उपचुनाव लड़ा जा रहा है, उसमें रोज बड़े नेताओं के बयान और बदजुबानी ने भाजपा-कांग्रेस के उन कार्यकर्ताओं और छोटे नेताओं को भी बड़ा कन्फ्यूज कर रखा है जो लोगों के बीच जाते हैं। एक बात जैसे-तैसे मतदाताओं को समझाते हैं तो दूसरा मुद्दा सामने आ जाता है और पार्टी कहती है अब इस मुद्दे पर बात करो। दोनों ही पार्टी के नेताओं के पास विकास का मुद्दा है नहीं और जो बड़े नेता कह देते हैं, उसके अनुसार ही चुनावी कैम्पेन शुरू हो जाता है। ये चुनाव प्रचार का आखरी सप्ताह है। माना जा रहा है कि अब तो मुद्दों की भरमार होगी और रोज कार्यकर्ताओं के हाथ में अलग-अलग मुद्दे आएंगे।

मंडल अध्यक्ष ही कमजोर निकला
कमलनाथ के आइटम वाले बयान पर भाजपा को मौन रहना था। इन्दौर के नेताओं ने रीगल तिराहे पर मंच सजाया था। नगर अध्यक्ष गौरव रणदिवे समय से पहले वहां पहुंचे तो मंडल अध्यक्ष नदारद थे, जिनके मंडल में आयोजन था। जैसे ही मंडल अध्यक्ष वहां पहुंचे गौरव ने उनकी खिंचाई कर दी और कहा कि कार्यक्रम आपके क्षेत्र में हैं और आपको मेरे पहले यहां आकर व्यवस्थाएं देखना थीं। मंडल अध्यक्ष ने सफाई देना चाही, लेकिन वो गौरव को समझा नहीं पाए। वैसे जब से गौरव नगर अध्यक्ष बने हैं तब से समय को लेकर कुछ ज्यादा ही सख्त रहते हैं।

तुलसी पहलवान की किचन कैबिनेट सक्रिय
कांग्रेस से भाजपा में आए नेता भले ही चुनाव प्रचार में नजर नहीं आ रहे हो, लेकिन भाजपा प्रत्याशी तुलसी सिलावटकी पुरानी किचन कैबिनेट चुनाव में सक्रिय हैं और वो जनसंपर्क के दौरान सिलावट के आसपास भी नजर आ जाती है। वहीं कुछ ऐसे नेता भी हैं, जिन्होंने अपना पाला नहीं बदला है, लेकिन दोस्ती निभाने के लिए उन्होंने भी अपनी जवाबदारी संभाल रखी है और कुछ तो ऐसे हैं जो व्यक्तिगत रूप से सिलावट से जुड़े हैं। वैसे क्रिकेट की राजनीति से जुड़े एक शख्स की सक्रियता भी देखने को मिल रही है जो जनसंपर्क में सिलावट का पीछा नहीं छोड़ रह हैं।

दो नंबरी नेता भी घूम रहे गांव-गांव
भाजपा ने वैसे तो सभी को काम पर लगा रखा है, लेकिन पूरे चुनाव की कमान रमेश मेंदोला के हाथ में हैं और उनकी टीम को भी ऐसी जगह काम पर लगा रखा है, जहां कुछ गड़बड़ हो सकती है। पूर्व एमआईसी मेम्बर चंदू शिंदे की टीम पालिया और उसके आसपास के क्षेत्रों में नजर आ रही हैं। बताया जा रहा है कि यहां कुछ लोगों में नाराजगी थी, जिसे दूर कर दिया गया है और फिर दो नंबरी सब कला में माहिर हैं ही।

सेवा का मेवा मिला मेव को
2018 में बागी के रूप में चुनाव लड़कर करीब 28 प्रतिशत वोट भाजपा की झोली में जाने से रोकने वाले राजकुमार मेव को आखिरकार भाजपा में ले लिया गया है। क्यों लिया? इस सवाल का कोई सटिक जवाब तो नहीं है, लेकिन मंधाता सीट को मजबूती देने के लिए उन्हें लिया गया है। लंबे समय से वे संगठन में हस्तक्षेप रखने वाले एक बड़े नेता की परिक्रमा करते हुए देखे जा रहे थे और उन्हीं की अंगुली पकड़कर मेव को फिर से संगठन की सीढिय़ां चढऩे को मिल गई है। इसको लेकर अब वे लोग नाराज हैं जो मेव के बगावती होने के कारण हारे और भाजपा को यहां से अपनी सीट गंवाना पड़ी।

सदा साथ ही रह रहे हैं सदाशिव
कांग्रेस प्रत्याशी प्रेमचंद गुड्डू के साथ हमेशा सदाशिव ही साथ नजर आ रहे हैं। सुबह वे गुड्डू के घर पहुंच जाते हैं और आखिरी में जब गुड्डू की गाड़ी घर में घुसती है तो ही उतरते हैं। हालांकि पुरानी यारी हैं, लेकिन गांव के कांग्रेसी कह रहे हैं कि संगठन संभालने की बजाय गुड्डू के साथ घूमकर क्या हासिल किया जा सकता है, जबकि संगठन के जिलाध्यक्ष का काम तो पूरी विधानसभा में जाकर हकीकत पता करना है और जो नाराज हैं उन्हें मनाना है, लेकिन सदाशिव है कि मानते नहीं और गुड्डू के साथ गाड़ी में बैठ ही जाते हैं। बाकलीवाल जरूर समय-समय पर गुड्डू के साथ नजर आते हैं, जब वे शहरी क्षेत्र में होते हैं।

शहरी नेताओं की मुंह दिखाई
कमलनाथ पाल कांकरिया आए थे। इसका लाभ कांग्रेस को कितना मिलेगा तो ये तो वक्त ही बताएगा, लेकिन जिस तरह से इन्दौरी नेताओं ने कमलनाथ के पास और पीछे की लाइन में जमी कुर्सियों पर कब्जा कर लिया, उससे कमलनाथ को गांव के नेताओं को चेहरा दिखाने का मौका तक नहीं मिला। शहर के नेता कमलनाथ को घेरे रहे और यह बताने में कसर नहीं छोड़ी कि हम भी चुनाव में लगे हुए हैं। हालांकि बाद में जीतू पटवारी ने स्थिति को भांपा और पीछे बैठे ग्रामीण नेताओं को एक-एक कर कमलनाथ से मिलवाया।

दोनों प्रत्याशियों ने अपने-अपने मीडिया सेंटर, कॉल सेंटर और वॉर सेंटरों को सक्रिय कर दिया है। एक-एक प्रत्याशी के लिए वोट मांगे जा रहे हैं। फोन और एसएमएस मतदाताओं के पास जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि आने वाले दिनों में सोशल मीडिया के मार्फत हमले और तेज किए जाएंगे। आखिर गुड्डू और पहलवान के कैरियर के लिए ये चुनाव काफी अहम है और दोनों की राजनीतिक प्रतिष्ठा का प्रश्न हैं। दावे तो दोनों 25 हजार से जितने का कर रहे हैं, लेकिन जितेगा तो दोनों में से एक ही।

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