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    साधु-संतों की सुरक्षा

  • October 12, 2020

    – सियाराम पांडेय ‘शांत’

    साधु-संतों की हत्या पर पक्ष-विपक्ष आमने-सामने आ गए हैं। साधु-संतों पर होने वाले जानलेवा हमलों से संत-समाज भी नाराज है। हमले एक ही राज्य में हो रहे हों, ऐसा भी नहीं है लेकिन लोग अपने-अपने चश्मे से इसे देख रहे हैं। हाथरस की घटना पर वहां जाने की विपक्ष में होड़ लगी थी। लेकिन राजस्थान जाने में किसी विपक्षी दलों की कोई रुचि नहीं थी जहां दो बहनों ओर एक महिला के साथ के साथ बलात्कार की घटना की वीभत्स घटना हुई। वहीं एक पुजारी की बर्बरता से जलाकर हत्या कर दी गई लेकिन वहां भाजपा को छोड़कर शायद ही कोई विपक्षी दल मुखर हुआ है। यह विरोध की लामबंदी है या लामबंदों का विरोध। बलात्कार और हत्या जैसे मामले में इस देश का नेतृवर्ग जबतक अपना चुनावी लाभ तलाशेगा, इस तरह की घटनाओं को रोक पाना बेहद मुश्किल होगा।

    उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के इटियाथोक इलाके के तिर्रे मनोरमा के श्रीराम जानकी मंदिर के पुजारी सम्राट दास पर जानलेवा हमले को लेकर राजनीतिक पारा चढ़ गया है। विपक्ष ने योगी सरकार पर सीधे तौर पर निशाना साधा है। कांग्रेस ने जहां भूमाफियाओं के साथ सरकार की मिलीभगत को इस घटना के लिए जिम्मेदार ठहराया है। वहीं समाजवादी पार्टी का कहना है कि यूपी में लगातार साधु- संतों और पुजारियों पर हमले हो रहे हैं। पुजारियों पर हमले हो रहे हैं लेकिन सरकार चुप है। कांग्रेस ने तो यहां तक आरोप लगाया है कि विगत दो साल में यूपी में साधु-संतों पर 20 हमले हुए हैं। कांग्रेस का आरोप है कि कुछ हत्याओं को पुलिस आत्महत्या बताकर कन्नी काट लेती है। साधु-संतों और पुजारियों के हमलों पर राजनीति करने वाले सपा और कांग्रेस को 1990 में सपा राज में अयोध्या में कारसेवकों पर हुई गोलाबारी तो याद ही होगी। इसमें कारसेवकों के साथ कितने साधु-संत हताहत हुए होंगे, इसका कुछ अंदाज तो उसे होगा ही।

    1966 के गौरक्षा आंदोलन में इंदिरा गांधी द्वारा गौरक्षकों पर गोली चलवाने की घटना की स्मृति तो होगी ही। उन्हें यह बताने में शायद परेशानी होगी कि इस गोलीकांड में कितने गौरक्षक और साधु-संत हताहत हुए होंगे लेकिन भारत का आम जनमानस जानता है कि यह संख्या हजारों में थी। साधु-संतों के प्रति कांग्रेस की अहिष्णुता देखनी हो तो नसबंदी के दौर को उसे जरूर याद करना चाहिए जब सरकार को नसबंदी का आंकड़ा बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने के लिए साधु-संतों और फकीरों तक की नसबंदी कर दी गई थी।

    विपक्ष को वर्ष 2000 में त्रिपुरा में स्वामी शांतिकाली जी महाराज की हत्या का भी संज्ञान लेना चाहिए जो एक ईसाई उग्रवादी संगठन नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा ने की थी। पालघर में दो और नांदेड़ में एक साधु की हत्या के बाद साधु-संतों की नाराजगी से यह देश अपरिचित नहीं है। राजस्थान के करौली में बहुत दिन नहीं हुए जब एक पुजारी की पेट्रोल छिड़ककर हत्या कर दी गई। मायावती ठीक कह रही हैं कि जंगलराज तो कांग्रेस शासित राज्यों में भी है लेकिन उसके नेताओं को अपने राज्यों में हो रहे अपराध शायद दिखते नहीं। इसे कहते हैं सुविधा का संतुलन जिसमें चित-पट दोनों ही अपना दिखता है।

    23 अगस्त 2008 में उड़ीसा के कंधमाल में स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती और उनके चार शिष्यों की हत्या की गई थी। उस दौरान इसके पीछे ईसाई मिशनरियों और माओवादियों का कनेक्शन सामने आया था। बुलंदशहर और बागपत में संतों की हत्याएं हृदयविदारक हैं, इस सिलसिले को अविलंब खत्म होना चाहिए। अगस्त 2018 में मध्य प्रदेश में 10 दिनों में 6 साधु, 1 पुजारी और 3 सेवादारों की हत्या कर दी गई थी। 13 अगस्त, 2018 को अलीगढ़ के एक मंदिर में 75 वर्षीय साधु व उनके साथी की हत्या कर दी गई थी। 16 अगस्त को ओरैया के मंदिर में तीन साधुओं की हत्या कर दी गई थी। 19 अगस्त को हरियाणा के करनाल स्थित एक मंदिर में मंदिर में 1 पुजारी, 1 साधु व 2 सेवादारों की हत्या और हत्या की गई थी। 20 अगस्त, 2018 को प्रयाग में एक साधु की हत्या की गई थी।

    सवाल यह है कि साधु-संत अराजक तत्वों और बदमाशों के टारगेट पर क्यों हैं। राजस्थान के करौली में एक पुजारी की निर्मम हत्या के बाद पूरे देश में बहस छिड़ गई है कि क्या हिंदुस्तान में साधु-संत सुरक्षित नहीं हैं? तमिलनाडु के प्रसिद्ध पंडित मुसनीश्वर मंदिर के एक पुजारी की अज्ञात हमलावरों ने मंदिर परिसर में घुसकर डंडों और अन्य हथियारों से पीट-पीटकर बेहद क्रूरता से हत्या कर दी। पुलिस ने बताया है कि मृतक पुजारी जी. मुथुराजा था जो अंधराकोट्टम हैमलेट का रहने वाला था।

    अच्छा होता कि उत्तर प्रदेश समेत सभी राज्यों की सरकारें इस बावत मंथन करतीं और साधु-संतों, पुजारियों, सेवादारों आदि की सुरक्षा के समुचित प्रयास करती। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी को इतना तो समझना ही होगा कि साधु सपना देखकर गड़ा धन निकालने की राय ही नहीं देते वे समाज को सही राह भी दिखाते हैं। उन्हें संयमित जीवन जीने की शिक्षा भी देते हैं। साधु-संत इस देश की संस्कृति को बचाने में भी सहायक हैं।

    काश, राजनीतिक दल सतही विरोध की राजनीति की बजाय साधु-संतों, पुजारियों और सेवादारों की सुरक्षा की कोई व्यापक रणनीति बनाते। गोंडा में पुजारी सम्राटदास पर हमले के पीछे 120 बीघे जमीन का विवाद है। भूमाफिया उसपर कब्जा चाहता है। इस वजह से इस मंदिर में पहले भी भूमाफिया के हमले हुए हैं। यहां पुलिस सुरक्षा भी दी गई थी। अब पुलिस की जगह यहां होमगार्ड सुरक्षा कर रहे हैं। हमले के मूल में कहीं सेक्योरिटी हासिल करने की रणनीति तो नहीं है। विचार तो इस बिंदु पर भी किया जाना चाहिए। एक ओर तो अपराधियों के मानमर्दन की बात हो रही है, दूसरी ओर अपराधियों की बढ़ती सक्रियता बेहद चिंताजनक है। सरकार को इस ओर भी ध्यान देना होगा।

    (लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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