नई दिल्ली । भारतीय सशस्त्र बलों में डीएसआर के नाम से पहचानी जाने वाली रूसी ड्रैगुनोव स्नाइपर राइफल्स को अब जल्द ही ‘मेक इन इंडिया’ अभियान के तहत स्वदेशी तरीके से अपग्रेड किया जायेगा। बेंगलुरु की निजी कंपनी एसएसएस डिफेंस तीन दशक पुरानी राइफल्स को सेमी ऑटोमेटिक राइफल जैसा बनाएगी, जिससे लम्बी दूरी तक आसानी से एक साथ कई लक्ष्यों को निशाना बनाया जा सकेगा। अपग्रेड होने के बाद इन रायफल्स से नाइट फायरिंग भी हो सकेगी और इसके अलावा अन्य नई विशेषताएं होंगी।
दरअसल 1950 के दशक के अंत में एक सोवियत हथियार डिजाइनर येवगेनी ने ड्रैगुनोव स्नाइपर राइफल को डिजाइन किया था। यह एक गैस संचालित शॉर्ट स्ट्रोक पिस्टन राइफल है। 1963 में पूर्व सोवियत सशस्त्र बलों ने इस्तेमाल करने से पहले व्यापक परीक्षण किया था। 1970 के दशक के अंत तक इनका इस्तेमाल महाद्वीपों के कई देशों में युद्ध में भी किया गया था। इसके बाद भारतीय सेना ने भी रूसी कंपनी कलाश्निकोव से इन राइफल्स की बड़े पैमाने पर खरीद की थी। पुराने जमाने की यह रूसी राइफल्स अब नई तकनीक के जमाने में कमजोर पड़ने लगी हैं, इसलिए इन्हें अपग्रेड किये जाने का प्रस्ताव सेना की तरफ से रक्षा मंत्रालय के सामने रखा गया।
डीएसआर के सबसे बड़े उपयोगकर्ताओं में से एक भारतीय सेना के अधिकारी भी मानते हैं कि लगभग 800 मीटर तक की मारक क्षमता वाली इन राइफल्स के लिए समय के साथ मिशन के मापदंड और संचालन की प्रकृति बदल गई है। इसके बावजूद तीन दशक पुराने इन हथियारों का अब तक उन्नयन नहीं किया जा सका है। इन राइफल्स को रात के अंधेरे में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता क्योंकि वास्तव में इन डीएसआर में नाइट विजन माउंट जैसा कोई सिस्टम ही नहीं है। दिन में भी ज्यादा दूरी तक इस्तेमाल किये जाने की इनकी क्षमता नहीं है। तकनीक के मामले में पुरानी पड़ चुकी इन राइफल्स में लकड़ी के बटस्टॉक्स लगे हैं जिससे सटीकता के साथ निशाना लगाने में भी दिक्कत होती है।
सूत्रों के अनुसार एक डीएसआर की बैरल आसानी से 7,000 राउंड तक फायर कर सकती है जबकि अधिकांश से अब तक 3,000 से अधिक फायर नहीं किये गए हैं। यानी इन राइफल से फायर करने के क्षमता अभी खत्म नहीं हुई है लेकिन इसके बावजूद मौजूदा समय में यह एक स्नाइपर हथियार नहीं हो सकता है। सेना को कम से कम 1.2 किमी और उससे अधिक के प्रभावी रेंज वाले घातक स्नाइपर हथियार चाहिए जिसको देखते हुए इनके बदले जाने या इनका अपग्रेड किया जाना बेहद जरूरी है। भारतीय सेना को इस समय लम्बी दूरी तक मार करने वाली आधुनिक स्नाइपर राइफल की जरूरत है। सीमा पर तैनात उच्च प्रशिक्षित स्नाइपर्स के हाथों में सिर्फ 500 से 800 मीटर तक मध्यम दूरी वाली राइफल्स देना उनके लिए एक अखरोट को फोड़ने के बराबर है।
रूसी ड्रैगुनोव स्नाइपर राइफल (डीएसआर) को अपग्रेड करके पैदल सेना की मांग पूरी की जा सकती है, इसीलिए इनके उन्नयन कार्यक्रम का उल्लेख रक्षा मंत्रालय द्वारा अगस्त में रखी गई नकारात्मक आयात सूची में 58वें नंबर पर किया गया है लेकिन इसके लिए दिसम्बर, 2020 तक की अवधि निर्धारित की गई है। यानी दिसम्बर के बाद रूसी कंपनी से इनको अपग्रेड नहीं कराया जा सकता। इस बीच बेंगलुरु की कंपनी एसएसएस डिफेंस इन रूसी राइफल्स को स्वदेशी तरीके से अपग्रेड के लिए सामने आई है। सेना की उत्तरी कमान ने लगभग तीन दशक पुरानी 90 राइफल को अपग्रेड किये जाने का प्रस्ताव रखा है जबकि सेना का अनुमान है कि यह रायफल्स करीब 7,000 हैं।
एसएसएस डिफेंस का कहना है कि हमारी दृष्टि भारत को विश्व स्तरीय मातृभूमि सुरक्षा प्रणालियों के साथ सक्षम बनाने की है। हम सेना की तीन दशक पुरानी रूसी स्नाइपर राइफल्स और कार्बाइन को ‘मेक इन इंडिया’ अभियान के तहत स्वदेश में ही अपग्रेड करने पर काम कर रहे हैं। उनकी टीम भारतीय सेना की पुरानी राइफल्स को एक नए सामरिक बटस्टॉक और मोनोपॉड के साथ युद्ध में इस्तेमाल करने लायक तैयार करेगी। इनमें ऊपर और नीचे लगे हैंड गार्ड्स बदले जायेंगे, जिससे पकड़ने और इस्तेमाल करने में आसानी होगी। इसके अलावा पिस्टल ग्रिप, मजल ब्रेक, ऑप्टिक माउंट, एडाप्टर लगाने के बाद यह सेमी ऑटोमेटिक राइफल हो जाएगी, जिससे लम्बी दूरी तक आसानी से एक साथ कई लक्ष्यों को निशाना बनाया जा सकेगा।
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