नागदा । विश्वविख्यात पद्मश्री डॉ. यशपाल जैन की स्मृतियां उज्जैन जिले के एक छोटे से कस्बे नागदा से जुड़ी हैं। इस शहर को 10 अक्टूबर को उस महान आत्मा की याद करती है ।
गांधीवादी विचारक पद्मश्री यशपाल जैन जिले के विजयगढ़ कस्बे से सटे गांव बीझलपुर में एक सितंबर 1912 को जन्मे थे। इस हस्ती ने 10 अक्टूबर 2000 को 88 वर्ष की उम्र में अपनी बेटी अनंदा पाटनी के घर नागदा शहर आए थे यही पर उन्होंने अपने जीवन की अंतिम सांस ली थी। यहां चंबल तट पर पद्मश्री डा. यशपाल पंचतत्व में विलीन भी हुए । उस दिन यह छोटा सा कस्बा समूचे विश्व में जाना गया था। आज की युवा पीढ़ी भले इस बात से अनभिज्ञ होगी कि जाने-माने लेखक, गांधीवादी डॉ. जैन का गहरा रिश्ता नागदा से रहा है।
ग्रेसिम स्टाफ कॉलोनी में ठहरते
डॉ. यशपाल जैन के दामाद के.के पाटनी ग्रेसिम उद्योग में अधिकारी के पद पर कार्यरत थे। बेटी अनंदा से उन्हें बड़ा लगाव था। अक्सर वे यहां आया करते थे। लगभग 20 वर्ष पहले अंनदा पाटनी यहां ग्रेसिम महिला मंडल में काफी सक्रिय थी। जब भी डा. जैन आते आपके आगमन पर शहर में कार्यक्रम हुआ करते थे। अब अनंदा पाटनी का परिवार भी यहां से चला गया।
गांधीवादी प्रकाशन संस्था से आजीवन जुड़े रहे
गांधीवादी विचारक पद्मश्री यशपाल जैन भी जिले के विजयगढ़ के गांव बीझलपुर में जन्मे थे। यशपाल जैन ने मानवीय मूल्यों पर अडिग रहकर कहानियों, कविताओं, संस्मरण, बोध कथाओं, निबंधों और आत्म वृतांत से ¨हदी साहित्य के भंडार को समृद्ध किया।
डॉ. यशपाल जैन गांधीवादी प्रकाशन संस्था से आजीवन जुड़े रहें। महात्मागांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, लालबहादुर शास्त्री के जीवित संपर्क में रहे। अपने जीवन में लगभग 42 से भी अधिक देशों की यात्रा कर गांधीवाद का अलख जगाया। विश्व के कई विश्व विद्यालयों में उनके साहित्य पर शोध हुए। लगभग 20 पुस्तकों के वे रचयिता थे। साहित्य के माध्यम से मानवीय मूल्यों को स्थापित करने में जिंदगी गुजार दी। भारत सरकार ने 1990 में उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से अलंकृत किया गया। 10 अक्टूबर 2002 को नागदा में उनका निधन हो गया।
ग्रेसिम स्मृति में उठाए कदम
डॉ. यशपाल जैन अपने दामाद के.के पाटनी की कोठी पर अक्सर कई दिनों तक ठहरा करते थे। यह कोठी आज भी ग्रेसिम स्टाफ कॉलोनी में स्थित है। बेहत्तर होगा ग्रेसिम प्रबंधन ऐसी महान आत्मा की स्मृति को चिरस्थायी रखने के लिए कोई स्थायी कदम उठाए। एजेंसी
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